पिछले 24 घंटे से टू-फिंगर टेस्ट एक बार फिर चर्चा में है। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया है। कोर्ट ने साफ कहा है कि टेस्ट करने वाला अब मिसकंडक्ट का दोषी माना जाएगा। आखिर क्या होता है टू-फिंगर टेस्ट और रेप पीड़िता के साथ अब तक क्यों किया जाता रहा।
नई दिल्ली : टू-फिंगर टेस्ट अब और नहीं… सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश देते हुए इस अनुचित प्रथा को महिलाओं की गरिमा के खिलाफ करार दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि रेप पीड़िताओं की जांच के लिए ‘टू-फिंगर टेस्ट’ की प्रथा आज भी समाज में प्रचलित है। कोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्यों को निर्देश दिया कि ऐसा आगे से न हो। जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने झारखंड हाई कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें रेप और हत्या के दोषी को बरी कर दिया गया था। पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के एक दशक पुराने फैसले ने ही इस टेस्ट को महिला की गरिमा और निजता का उल्लंघन करार दिया था। दरअसल, दरिंदगी का शिकार हुई महिला से टेस्ट के नाम पर एक ऐसी प्रथा चल निकली थी, जो पीड़िता को दोबारा भीतर से झकझोर देती थी। जी हां, यह टेस्ट ही कुछ ऐसा है। इसे टू-फिंगर टेस्ट कहते हैं। यौन उत्पीड़न और बलात्कार की शिकार हुई महिला के बारे में यह जानने के लिए ‘टू-फिंगर’ प्रक्रिया अपनाई जाती रही है कि वह सेक्स की अभ्यस्त है या नहीं।
रेप पीड़िता की गरिमा पर हमला
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बलात्कार पीड़िताओं से संबंधित ‘टू-फिंगर’ जांच पर सख्त नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। इससे यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाएं फिर से पीड़ित होती हैं और यह उनकी गरिमा पर एक कुठाराघात है। शीर्ष अदालत ने आगे कहा कि यह कहना पितृसत्तात्मक और लैंगिकतावादी है कि किसी महिला के अपने साथ बलात्कार होने की बात पर सिर्फ इसलिए विश्वास नहीं किया जा सकता कि वह सेक्सुअली एक्टिव है।
देश की सबसे बड़ी अदालत ने साफ कहा है कि ‘टू-फिंगर’ टेस्ट करने वाले किसी भी व्यक्ति को कदाचार का दोषी ठहराया जाएगा। SC ने झारखंड सरकार की याचिका पर बलात्कार और हत्या के दोषी शैलेंद्र कुमार राय उर्फ पांडव राय नामक व्यक्ति को बरी करने के झारखंड हाई कोर्ट के फैसले को पलट दिया और उसे गुनहगार करार देने के एक निचली अदालत के फैसले को कायम रखा।
गुप्तांग संबंधी टेस्ट
पीठ ने कहा कि एक दशक पुराने शीर्ष अदालत ने इस टेस्ट को महिलाओं की गरिमा और निजता का उल्लंघन बताया था। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि यह अब भी हो रहा है। कोर्ट ने कहा, ‘महिलाओं का गुप्तांग संबंधी टेस्ट उनकी गरिमा पर अटैक है। यह नहीं कहा जा सकता कि यौन संबंधों के लिहाज से सक्रिय महिला के साथ दुष्कर्म नहीं किया जा सकता।’ कोर्ट ने कहा कि क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंड ऐक्ट 2013 में साफ कहा गया है कि पीड़िता के कैरेक्टर का साक्ष्य या उसका किसी शख्स के साथ पिछले सेक्सुअल एक्सपीरियंस का इस केस से कोई लेनादेना नहीं है।
शीर्ष अदालत ने केंद्र और राज्य सरकारों के अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे राज्यों के पुलिस महानिदेशकों और स्वास्थ्य सचिवों से यह सुनिश्चित करने को कहें कि ‘टू-फिंगर’ टेस्ट अब नहीं हो। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने यौन हिंसा के मामलों में स्वास्थ्य प्रदाताओं के लिए 19 मार्च 2014 को दिशा-निर्देश जारी किए थे जिसमें ‘टू फिंगर’ टेस्ट को प्रतिबंधित किया गया था।
टू-फिंगर टेस्ट इसलिए घिनौना?
इस प्रक्रिया के तहत मेडिकल प्रोफेशनल यह जांचते हैं कि महिला के हैमेन को नुकसान पहुंचा है या नहीं, जिससे पता लगाया जा सके कि यौन हमला था या सहमति से इंटरकोर्स।
‘मेडिकल कॉलेजों के सिलेबस से भी हटे’
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों को निर्देश दिया कि सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों के पाठ्यक्रम से टू-फिंगर टेस्ट पर स्टडी मटीरियल को हटाने के लिए कदम उठाए जाएं। पीठ ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से यह सुनिश्चित करने को कहा कि रेप या यौन हमले से बचाए गए लोगों का यह टेस्ट न किया जाए। इस टेस्ट के खिलाफ जागरुकता पैदा की जाए और गाइडलाइंस बने।