Lalan Singh offered Suresh Sharma to join JDU: जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने श्री कृष्ण सिंह की जयंती के दिन बिहार की राजनीति में भूमिहारों का बड़ा चेहरा माने जाने वाले सुरेश शर्मा को जेडीयू में आने के ऑफर दिया है। हालांकि सुरेश शर्मा ने फिलहाल उनके ऑफर को ठुकरा दिया है और बीजेपी में बने रहने की बात की है। आइए इस राजनीतिक घटनाक्रम के मायने समझते हैं।
पटना/मुजफ्फरपुर: बिहार इन दिनों चुनावी लहर पर सवार है। यह लहर राज्य में हो रहे उप चुनाव की वजह से नहीं, बल्कि देश को प्रधानमंत्री देने का केंद्र बना बिहार के कारण बन गया है। यही वजह भी है कि वोटों की सेंधमारी का खेल अभी से ही शुरू हो गया है। लिहाजन श्री कृष्ण सिंह की जयंती के दिन, वह भी भूमिहारों के गढ़ मुज्जफरपुर से, जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ने भूमिहारों के वोट बैंक में सेंधमारी का प्रयास करते हुए चारा बीजेपी के बड़े नेता सुरेश शर्मा के ईद गिर्द फेंका है। लेकिन यह यूं ही नहीं, बल्कि जेडीयू का इसके पीछे एक बड़ा मकसद छुपा है।
भूमिहारों के वोट बैंक में सेंधमारी क्यों?
राज्य में एक माहोल तो यह बनते जा रहा कि भूमिहारों के प्रति एनडीए में मान सम्मान कम हुआ है। इसके पीछे यह चर्चा भी रही कि नीतीश कुमार और सुशील मोदी बैकवर्ड पॉलिटिक्स को आगे बढ़ाने के लिए भूमिहारों की हक मारी करने से भी बाज भी नहीं आए।
यही वजह भी है कि एनडीए की ओर से की जा रही उपेक्षा का फायदा उठाते हुए आरजेडी ने ‘ए टू जेड’ फॉर्मूला के तहत भूमिहारों को टिकट भी दिया। और आरजेडी को इसका फायदा भी हुआ। कई सीटें जीती भी।
अब जब एनडीए से जेडीयू अलग होकर महागंठबंध की सरकार बनाई तो जाहिर है जिस बीजेपी से भूमिहार नाराज हैं, उसकी गोलबंदी के लिए ललन सिंह ने बस एक प्रयोगधर्मी की तरफ चारा फेंका है। तात्कालिक वजह यह है कि राज्य में दो उपचुनाव हैं। इस मौके पर भूमिहारों के बीच यह संदेश जाएगा कि बीजेपी के भीतर भूमिहारों की कोई कद्र नहीं तो उनमें रिटेलिएशन का भाव आए और बीजेपी के विरुद्ध वोट करें। और इस बहने ललन सिंह अपने बयान का लिटमस टेस्ट भी कर लेंगे।
आखिर क्या है वह सेंधमारी के शब्द!
दरअसल, श्री कृष्ण सिंह की जन्मतिथि पर आयोजित एक कार्यक्रम में ललन सिंह ने यह साफ कहा कि बीजेपी को भूमिहार नेता पच नहीं रहा है। यही वजह है कि मुजफ्फरपुर के नेता और पूर्व मंत्री सुरेश शर्मा को बीजेपी के नित्यानंद राय और भूपेंद्र यादव ने हराने का षड्यंत्र रचा। इसके पीछे राज यह था कि रामसूरत राय उस क्षेत्र से मंत्री बन सकें। इतना भर ही नहीं, बल्कि उपेक्षा और साजिश के इस दंश से छुटकारा के लिए सुरेश शर्मा को जेडीयू में शामिल कर सम्मान पाने का आमंत्रण भी दे दिया।
दरअसल, सुरेश शर्मा के बहाने ललन सिंह ने पूरे भूमिहार समाज के भीतर यह संदेश भेजने में कामयाब हो गए कि बीजेपी में भूमिहार नेताओं को सम्मान नहीं है। हालांकि वोट की सेंधमारी का खेल अमित शाह ने शुरू किया है।
राज्य में लोकसभा चुनाव का माहोल बनाने की शुरुआत नीतीश कुमार और अमित शाह ने कर दी थी। नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी के विरुद्ध विपक्षी एकता की मुहिम चला कर और अमित शाह ने सीमांचल और सिताबदियारा की यात्रा कर। जिस तरह से अमित शाह ने बीजेपी के आधार वोट से अलग वाले जातीय वोट को हिंदुत्व के घेरे में गोल बंद करने की मुहिम बिहार में छेड़ दी। अब अगली यात्रा नालंदा का है। प्रतिउत्तर में ललन सिंह बीजेपी के उस आधार वोट भूमिहार पर निशाना साधा है जो अपनी पूरी आक्रामकता के साथ बीजेपी के साथ रहा है।
कौन हैं सुरेश शर्मा!
हालांकि सुरेश शर्मा के पार्टी बदलने का इतिहास पुराना है। सुरेश शर्मा एक कांग्रेसी नेता रहे हैं। जो एलपी शाही के काफी करीबी माने जाते थे। लेकिन बीजेपी में उन्हें चुनाव लड़ाने का आश्वासन मिला तो वे बीजेपी में शामिल हो गए। बीजेपी ने भी किए वादा को पूरा किया और उन्हें 1994 में वैशाली से लोकसभा चुनाव में उतारा। हालांकि वे चुनाव में लवली आनंद से हार गए।
राजनीतिक गलियारा का सच?
राजनीति गलियारों का सच कुछ और है। चर्चा यह है कि ललन सिंह का इंटरेस्ट सुरेश शर्मा में नहीं है, बल्कि भूमिहार वोट बैंक में सेंधमारी की है। इस वजह से उन्होंने सुरेश शर्मा के उस प्रसंग को मीडिया के हवाले किया ताकि यह संदेश पूरे बिहार में जाए और भूमिहार जेडीयू के रथ पर सवार हो जाएं। सुरेश शर्मा अगर निशाने पर होते कुछ जिम्मेवारी देने की बात कहते तभी सुरेश शर्मा का बीजेपी प्रेम भी दिखता।
सुरेश शर्मा ने क्या कहा?
बहरहाल, सुरेश शर्मा ने ललन सिंह का ख्याली प्लाव कहा। जिस बीजेपी ने हमे कई पदों से सम्मानित किया अब इस उम्र में कही भी छोड़ कर नहीं जाऊंगा। ललन सिंह का दस्तक गलत दरवाजे पर पड़ गया है।
सुरेश शर्मा ने अपने बयान से तो यह साबित तो कर दिया कि ललन सिंह का तीर खाली गया। लेकिन बीजेपी के भीतर भूमिहारों की उपेक्षा का को जो तीर चलाया है वह कितना कारगर होगा वह तो समय का म्यान में है जिसका टेस्ट होना बाकी है।