मंगलवार को केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने भारतीय सेना में ‘अग्निपथ’ नाम की योजना का एलान किया, जिसके तहत छोटी अवधि के लिए नियुक्तियाँ की जाएंगी.
अलग-अलग रैंक और प्रतीक चिह्न लगाने वाली इस योजना का मुख्य उद्देश्य देश में बेरोज़गारी कम करने के साथ ही रक्षा बजट पर वेतन और पेंशन के बोझ को भी घटाना है. हालाँकि, सेना में अहम पदों पर रह चुके कुछ लोगों ने इस योजना पर चिंता जताई है.
आज प्रेस रिव्यू में सबसे पहले अंग्रेज़ी अख़बार द टेलिग्राफ़ की इस ख़बर को पढ़िए.
सेना में अहम पद पर रह चुके बिरेंदर धनोआ ने ट्वीट किया, “पेशेवर सेनाएं आमतौर पर रोज़गार योजनाएं नहीं चलाती…. सिर्फ़ कह रहा हूँ.”
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अख़बार ने सैन्य अनुभव वाले कुछ लोगों के हवाले से लिखा है कि इस योजना ने कई चिंताएं पैदा कर दी हैं. अव्वल तो इससे समाज के ‘सैन्यीकरण’ का ख़तरा है.
यानी जब एक बड़ी संख्या में हथियार चलाने के लिए प्रशिक्षित किए गए युवा नौकरी की अवधि पूरी होने पर वापस लौटेंगे तब क़ानून-व्यवस्था से जुड़ी समस्या खड़ी हो सकती है. अभी तक एक फ़िट जवान की ड्यूटी 10 से 15 साल के लिए होती है.
दूसरी सबसे बड़ी चिंता ये है कि इस योजना की वजह से भारतीय सेना में ‘नौसिखिए’ जवानों की संख्या बढ़ जाएगी, जो शत्रु देशों की ओर से मिलने वाली चुनौतियों का सामना करने में असमर्थ होंगे.
अभी तक प्रशिक्षण की अवधि एक साल की है. नई योजना के तहत भर्ती होने वाले अग्निवीरों को युद्ध के मोर्चे पर भी तैनात किया जा सकता है और उनकी भूमिका किसी अन्य सैनिक से अलग नहीं होगी.
तीसरी सबसे बड़ी चिंता ये है कि इस योजना के कारण सशस्त्र बलों की सदियों पुरानी रेजिमेंटल संरचना बाधित हो सकती है.
मंगलवार को रक्षा मंत्री और तीनों सेना प्रमुखों ने अग्निपथ योजना की घोषणा की. इससे कुछ देर पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सुरक्षा पर बनी कैबिनेट कमिटी ने इस योजना को मंज़ूरी दी थी.
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वेतन और पेंशन के बोझ में कमी लाना मक़सद?
अख़बार ने सरकारी सूत्रों के हवाले से कहा है कि इस योजना का मक़सद लगातार बढ़ रहे वेतन और पेंशन के बोझ को कम करना है.
रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी ने अख़बार को बताया, “इस योजना के तहत सरकार पेंशन के साथ ही अन्य भत्तों पर बचत करेगी. अग्निवीरों के लिए वेतन के लुभावने मोटे पैकेज, पूर्व सैनिकों का दर्जा और स्वास्थ्य स्कीम में अंशदान की ज़रूरत नहीं होगी.”
रिटायर्ड लेफ़्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया ने इस योजना पर लिखा, “सशस्त्र बलों के लिए ख़तरे की घंटी. इसका पायलट प्रोजेक्ट लाए बिना ही लागू कर दिया गया. समाज के सैन्यीकरण का खतरा. हर साल क़रीब 40 हज़ार युवा बेरोज़गार होंगे. ये अग्निवीर हथियार चलाने में पूरी तरह प्रशिक्षित नहीं होंगे. अच्छा विचार नहीं है. इससे किसी को फ़ायदा नहीं होगा.”
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लेफ्टिनेंट जनरल पी. आर. शंकर ने इस परियोजना को ‘किंडरगार्टन आर्मी’ बताया. उन्होंने कहा कि ये योजना लाना अच्छा विचार नहीं. उन्होंने सावधानी बरतने की वकालत की.
एक आर्टिकल में उन्होंने लिखा, “ये योजना बिना पर्याप्त कर्मचारी और क्षमता के शुरू की जा रही है. इसके तहत कम प्रशिक्षित युवा किसी सबयूनिट का हिस्सा बनेंगे और फिर बिना किसी भावना के ये अपनी नौकरी सुरक्षित रखने की दौड़ में शामिल हो जाएंगे.”
उन्होंने लिखा, “इस सैनिक से ब्रह्मोस/पिनाका/वज्र जैसे हथियार प्रणाली को चलाने की उम्मीद की जाएगी, जिसे वो संभाल नहीं सकता है और पाकिस्तान-चीनियों के सामने अपनी रक्षा करने की भी आशा की जाएगी. हम भले ही अभिमन्यु बना रहे हों लेकिन वो चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकल पाएगा.”
एक सेवानिवृत्त लेफ़्टिनेंट जनरल ने टेलिग्राफ़ को बताया, “ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिन लोगों ने इस योजना को लाने का फ़ैसला किया है, उन्हें सेना के बारे में कोई जानकारी नहीं. न तो उन्होंने और न ही उनके बच्चों ने कभी भी सेना में सेवा दी होगी.”
उन्होंने देश में बेरोज़गारी को देखते हुए कहा कि हज़ारों अग्निवीर चार साल तक सशस्त्र बलों में सेवा देंगे, इन्हें हथियार चलाने की ट्रेनिंग मिलेगी और इसके बाद जब ये नौकरी से लौटेंगे तब देश में एक अलग तरह की आंतरिक सुरक्षा से संबंधित समस्या पैदा हो जाएगी.
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क्या है अग्निपथ योजना?
‘अग्निपथ’ के तहत सेना में युवाओं को चार साल तक काम करने के लिए मौक़ा मिलेगा. इसें जॉइन करने वाले 25 फ़ीसदी युवाओं को बाद में रिटेन किया जाएगा. यानी 100 में से 25 लोगों को पूर्णकालिक सेवा का मौक़ा मिलेगा.
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि इस योजना से रोज़गार के अवसर बढ़ेंगे और देश की सुरक्षा मज़बूत होगी. रक्षा मंत्री ने युवाओं से अग्निवीर बनने की अपील की. अग्निवीर चार साल की सेवा के बाद रिटेन किए गए 25 फ़ीसदी सैनिकों को कहा जाएगा.
इस दौरान नेवी चीफ़ एडमिरल आर. हरि कुमार ने कहा कि इस योजना के तहत चार साल के लिए क़रीब 45000 युवाओं को भर्ती किया जाएगा. उन्होंने कहा कि सेना के अग्निवीरों में महिलाएं भी शामिल होंगी.
अग्निपथ के तहत भर्ती किए गए युवाओं को आगे रिटेन होने के लिए छह महीने की ट्रेनिंग से गुज़रना होगा.
इनका वेतन 40 हज़ार रुपए के क़रीब होगा. इस योजना का एलान करते हुए सेना प्रमुख जनरल मनोज पांडे ने कहा कि इस योजना को सभी संबंधित पक्षों के साथ विस्तृत चर्चा और विचार विमर्श के बाद लाया गया है. अगले 90 दिनों यानी तीन माह के अंदर अग्निपथ योजना के तहत भर्तियां शुरू हो जाएंगी. नए अग्निवीरों की उम्र साढ़े 17 साल से 21 साल के बीच होगी.
रक्षा मंत्रालय ने कहा है, ”अग्निपथ’, थल सेना, वायु सेना और नेवी में भर्ती होने के लिए एक अखिल भारतीय योग्यता-आधारित भर्ती योजना है. यह योजना युवाओं को सशस्त्र बलों के नियमित संवर्ग में सेवा करने का अवसर प्रदान करेगी. अग्निवीरों को प्रशिक्षण अवधि सहित 4 वर्ष की सेवा अवधि के लिए एक अच्छे वित्तीय पैकेज के साथ भर्ती किया जाएगा. चार साल के बाद 25% तक अग्निवीरों को केंद्रीयकृत और पारदर्शी प्रणाली के आधार पर नियमित किया जाएगा. 100% उम्मीदवार नियमित संवर्ग में भर्ती के लिए बतौर वॉलन्टियर आवेदन कर सकते हैं.”
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प्रयागराज हिंसा: नाबालिगों पर कार्रवाई नहीं करेगी यूपी पुलिस
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में बीते शुक्रवार नमाज़ के बाद छिड़ी हिंसा के मामले में अभियुक्त बनाए गए नाबालिगों पर यूपी पुलिस कार्रवाई नहीं करेगी.
अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू की ख़बर के अनुसार, मंगलवार को पुलिस ने कहा कि बीते शुक्रवार हुई हिंसा के मामले में नाबालिग अभियुक्तों के साथ नरमी बरती जाएगी. प्रयागराज एसएसपी अजय कुमार ने कहा कि किसी भी मासूम शख्स को गिरफ़्तार नहीं किया जाएगा.
एसएसपी ने कहा कि वो सिर्फ़ उन लोगों को गिरफ़्तार कर रहे हैं या करेंगे जो वास्तव में हिंसक विरोध में शामिल थे, जो कट्टर अपराधी हैं.
इस बीच पूरे राज्य में शुक्रवार को हुई हिंसा के मामले में अब तक कुल 350 लोगों को गिरफ़्तार किया जा चुका है. इनमें से सबसे अधिक 92 गिरफ़्तारियां प्रयागराज में और उसके बाद 84 गिरफ़्तारियां सहारनपुर में हुई हैं.
प्रयागराज में चार नाबालिग़ों को भी गिरफ़्तार किया गया है. 10 जून को हुई हिंसा के मामले में दर्ज एफ़आईआर में पुलिस ने आरोप लगाया है कि हिंसक भीड़ ने उनपर पत्थर फेंकने और नारेबाज़ी के लिए नाबालिग लड़कों को आगे कर दिया था.
पुलिस अधिकारी ने कहा, “जिन लोगों को उकसाया गया या जो नाबालिग़ हैं, हम उनके बारे में एक बार फिर से विचार करेंगे. अगर वो बुरी प्रवृत्ति के नहीं हैं, तो हम सोचेंगे और फिर फैसला लेंगे.”
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जम्मू-कश्मीर में जमात से जुड़े 300 स्कूलों को बंद करने का आदेश
हिंदी दैनिक अख़बार अमर उजाला की ख़बर के अनुसार सरकार ने प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी से जुड़े फ़लाह-ए-आम (एफ़एटी) की ओर से जम्मू-कश्मीर में चलाए जा रहे सभी स्कूलों को बंद करने का आदेश दिया है. इन स्कूलों को अगले 15 दिनों के भीतर सील कर दिया जाएगा.
इन स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को पास के ही दूसरे विद्यालयों में दाख़िला दिया जाएगा. राज्य जाँच एजेंसी यानी एसआईए की जाँच के बाद स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव बीके सिंह की ओर से जारी आदेश में कहा गया है कि ज़िला प्रशासन के परामर्श से इन स्कूलों को सील किया जाएगा.
एसआईए की जाँच में एफ़एटी पर अवैध काम करने, धोखाधड़ी, बड़े पैमाने पर सरकारी ज़मीन पर कब्ज़ा करने के आरोप लगाए गए थे. एफ़एटी जमात-ए-इस्लामी से जुड़ा है, जिसे गृह मंत्रालय ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के प्रावधानों के तहत प्रतिबंधित किया है.
अधिकारियों के हवाले से अख़बार ने लिखा है कि एफ़एटी के 300 से अधिक स्कूल अवैध रूप से अधिगृहित सरकारी और सामुदायिक भूमि पर पाए गए हैं.
अधिकारियों ने बताया कि ज्यादातर एफ एटी स्कूलों, मदरसों, अनाथालयों, मस्जिदों और अन्य परोपकारी कार्यों से अपना काम चलाता है. इस तरह के संस्थानों ने 2008, 2010 और 2016 में बड़े पैमाने पर अशांति फैलाने में विनाशकारी भूमिका निभाई, जिससे आम लोगों को भारी परेशानी उठानी पड़ीं.