क्‍यों चौंक गए ना! तब बस 18 रुपये में आ जाती थी साइकिल, यह पुराना बिल देखिए

कुछ दशक पहले तक शान की सवारी समझी जाने वाली साइकिल अब फिटनेस बरकरार रखने का जरिया है। एक दौर ऐसा भी था जब देश में सिर्फ 18 रुपये में शानदार साइकिल आ जाती थी, वह भी घंटी और लाइट के साथ।

साइकिल की सवारी काफी कुछ जिंदगी के सफर जैसी है। आप पहले कैंची चलाकर बैलेंस बनाने की कोशिश करते हैं। जैसे-जैसे हाथ और पैर सेट होते जाते हैं, आपका आत्‍मविश्‍वास बढ़ता जाता है। एक दिन आता है जब आप सीट पर सवार होते हैं और सरपट साइकिल दौड़ाने लगते हैं। जिंदगी में भी आप शुरू में संभलने की कोशिश करते हैं। एक बार बैलेंस बन जाए तो जिंदगी आसान हो जाती है। आज अगर आप बाजार में ढंग की साइकिल खरीदने निकलें तो कम से कम ढाई-तीन हजार रुपये लग जाएंगे। यादों के पिटारे से आज हम आपके लिए लाए हैं वह दौर जब साइकिल की सवारी इतनी महंगी नहीं थी। उस दौर में घंटी-लाइट लगी साइकिल 18 रुपये में मिल जाती थी।

यादों का पिटारा है 1934 की यह रसीद

-1934-

यादों के गलियारे में हमें यह रसीद मिली। कलकत्‍ता (अब कोलकाता) के ‘कुमुद साइकिल वर्क्‍स’ ने 7 जनवरी 1934 को एक साइकिल बेची। 1933 मॉडल की इस ‘सस्ती साइकिल’ में घंटी और लाइट भी लगे थे। कीमत सिर्फ 18 रुपये। यह वही समय था जब साइकिल मार्केट में बूम आ रहा था।

महात्‍मा गांधी को खूब पसंद थी साइकिल की सवारी

महात्‍मा गांधी की जिंदगी में साइकिल की बड़ी अहमियत थी। इंग्‍लैंड से लेकर दक्षिण अफ्रीका तक में गांधी अक्‍सर साइकिल से चलते थे। 1915 में जब गांधी अहमदाबाद आए तो गुजरात विद्यापीठ से साबरमती आश्रम तक साइकिल चलाकर जाते थे। साबरमती आश्रम में आज भी गांधी की साइकिल सहेजकर रखी गई है। गांधी की एक अन्‍य साइकिल को 2017 में रीस्‍टोर किया गया और एम्‍सटर्डम में प्रदर्शन के लिए रखा गया।

इतनी मशहूर हुई साइकिल कि रेस लगने लगी

1900 से 1950 के बीच साइकिल का इस्‍तेमाल खूब बढ़ा। पांच दशक के इस दौर को साइकिल का ‘स्‍वर्ण काल’ कहा जाता है। साइकिल की लोकप्रियता का आलम यह था कि 1951 आते-आते भारत में साइकिल रेस होने लगी थी। (फोटो: @IndiaHistorypic/Twitter)

ट्विटर पर कृष्‍णा लिखते हैं कि 1965 में उन्‍होंने Hercules की साइकिल सिर्फ 100 रुपये में खरीदी थी।

भारतीय राजनीति में साइकिल की रही धमक

साइकिल का इंडियन स्‍पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) के इतिहास से खास जुड़ाव है। 1962 में उसे इंडियन नैशनल कमिटी फॉर स्‍पेस रिसर्च नाम से जाना जाता था। 1963 आते-आते हमने पहला रॉकेट लॉन्‍च किया। इसके पुर्जे साइकिल पर लादकर लॉन्‍च साइट तक ले जाए गए थे। आम जनता की सवारी बनी साइकिल से बड़े-बड़े नेताओ का लगाव रहा।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी अक्‍सर साइकिल पर अपने दोस्‍तों से मिलने निकल जाया करते थे। बिहार के पूर्व मुख्‍यमंत्री लालू प्रसाद यादव की साइकिल चलाते तस्‍वीर खूब चर्चित है। केंद्रीय मंत्री मनसुख मंडाविया अक्‍सर साइकिल से संसद आते-जाते हैं।

समाजवादी पार्टी का तो चुनाव चिन्‍ह ही साइकिल है। राहुल गांधी, स्‍मृति ईरानी, तेजस्‍वी यादव, शिवराज सिंह चौहान… ऐसे नेताओं की फेहरिस्‍त लंबी है जो कभी प्रचार के लिए तो कभी ईंधन के बढ़ते दाम पर विरोध के लिए साइकिल चलाते दिखे हैं।