40 साल बाद आनंद शर्मा ने क्यों किया इंदिरा गांधी को पार्टी ने निष्कासित करने वाली घटना का जिक्र? जानिए पूरी कहानी

सवाल है कि आनंद शर्मा ने 1978 का जिक्र क्यों किया? इंदिरा गांधी के निष्कासित होने के बाद भी वो कौन से नेता थे, जिन्होंने पार्टी को संभाल रखा था। क्या हुआ था उस वक्त। 25 जून 1975 की वो काली रात शायद ही कोई भूल पाया हो। अचानक रेडियों में एक संदेश आया और पूरे देश में हाहाकार मच गया।

 

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नई दिल्ली: देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। तकरीबन डेढ़ साल पहले कांग्रेस के कद्दावर नेताओं ने पार्टी में सुधार की आवाज उठाई। उन नेताओं के गुट को जी-23 कहा गया। उसमें सबसे प्रमुख थे गुलाम नबी आजाद। आजाद ने पहला पत्र कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नाम लिखा था और उस लेटर में 22 प्रमुख नेताओं के हस्ताक्षर थे। उसके बाद धीमे-धीमे बगावती सुर उठने लगे। कपिल सिब्बल ने समाजवादी पार्टी (SP) जॉइन कर ली। गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा ने हिमाचल प्रदेश चुनाव संचालन समिति से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद आनंद शर्मा ने कहा कि आखिरकार कब तक पार्टी में अपमानित महसूस करता। इसके साथ ही उन्होंने इंदिरा गांधी के वक्त की कांग्रेस का भी जिक्र किया।

आनंद शर्मा का कांग्रेस पर हमला
पहले आपको बताते हैं कि आनंद शर्मा ने कांग्रेस को लेकर क्या बयान दिया। दरअसल, उन्होंने एक टेलीवीजन से बातचीत में कहा कि कांग्रेस को गांधी परिवार से अलग सोचने की जरूरत है। पार्टी नेतृत्व के सवाल पर विस्तार से बात करते हुए उन्होंने कहा कि कई नेता थे जिन्होंने 1978 में इंदिरा गांधी को निष्कासित किए जाने के बाद पार्टी को बचाए रखा था। वे हम जैसे लोग थे। यह पार्टी हम सभी की है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि कांग्रेस की विचारधारा मेरे खून में दौड़ती है और इसे लेकर कोई शक नहीं होना चाहिए। मैं आजीवन कांग्रेसी हूं और अपने इस विश्वास पर कायम हूं। उन्होंने कहा कि मैंने हिमाचल प्रदेश चुनाव के लिए कांग्रेस की संचालन समिति का अध्यक्ष पद भारी मन से छोड़ा है। स्वाभिमानी होने के कारण लगातार बहिष्कार और अपमान को देखते हुए मेरे पास इस्तीफा देने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था।

आनंद शर्मा ने 1978 का किया जिक्र
सवाल है कि आनंद शर्मा ने 1978 का जिक्र क्यों किया? इंदिरा गांधी के निष्कासित होने के बाद भी वो कौन से नेता थे, जिन्होंने पार्टी को संभाल रखा था। क्या हुआ था उस वक्त। 25 जून 1975 की वो काली रात शायद ही कोई भूल पाया हो। अचानक रेडियों में एक संदेश आया और पूरे देश में हाहाकार मच गया। अगले 21 महीने नागरिक अधिकार छीन लिए गए, सत्‍ता के खिलाफ बोलना अपराध हो गया, विरोधी जेलों में ठूंस दिए गए। 12 जून 1975 के फैसले में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया कि इंदिरा ने लोकसभा चुनाव में गलत तौर-तरीके अपनाए। दोषी करार दी गईं इंदिरा गांधी का चुनाव रद्द कर दिया गया। बहुत लोग मानते हैं कि सत्‍ता जाने के डर से इंदिरा ने इमरजेंसी लगा दी। कांग्रेस के लिए उस काली रात का एक फैसला आज तक नासूर बना हुआ है। वो रात थी जब देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई। विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया। इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले ने इंदिरा गांधी को पीएम पद से हटवा दिया था। आपातकाल के बाद जनता पार्टी की सरकार बनी। लेकिन जनता पार्टी के नेताओं में आपस में ही इतने वैचारिक मतभेद हो गए कि सरकार नहीं चल पाई।

इंदिरा गांधी को पार्टी से बाहर करने का प्लान
कभी पार्टी के वफादार रहे वाईबी चव्हाण और ब्रह्मानंद रेड्डी ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया। लेकिन वो ये समझने में नाकाम हो गए कि देश में अभी भी इंदिरा गांधी को चाहने वाले लोगों में उनके प्रति प्यार और इज्जत बरकरार था। इन दोनों ने इंदिरा गांधी के खिलाफ बगावत का झंठा बुलंद करते हुए उन्हें राजनीतिक तौर पर अलग-थलग करने की कोशिश की। लेकिन गांधी ने पलटवार करते हुए 1978 की शुरुआत में पार्टी का विभाजन कर दिया और एक धड़े के साथ अलग होकर अपने नाम वाली नई कांग्रेस- कांग्रेस(आई) बना ली।

इंदिरा गांधी ने 1977 से ही अगले चुनाव की तैयारी शुरू की
एक महीने के भीतर फरवरी 1978 में उन्होंने अपनी चुनावी वापसी की बिसात बिछानी शुरू कर दी और यह काम उन्होंने कर्नाटक में पांचवें विधानसभा चुनाव से शुरू किया। इस चुनाव में कांग्रेस(आई) को 44.25 मत प्रतिशत के साथ 149 सीटों पर जीत हासिल हुई, जबकि ‘असली’ कांग्रेस को 7.99 प्रतिशत वोटों के साथ सिर्फ दो सीटों से संतोष करना पड़ा। उस चुनाव में जनता पार्टी 59 सीटों पर सिमट गई, लेकिन उसने 39.89 प्रतिशत वोट प्रतिशत के साथ कांग्रेस(आई) को जबरदस्त टक्कर दी। सीट दर सीट विश्लेषण करने पर पता चलता है कि कांग्रेस आई राज्य में बड़ी जीत दर्ज कर पाने में इसलिए कामयाब हुई, क्योंकि यह पार्टी राज्य की राजनीति के केंद्र में थी और कांग्रेस विरोधी वोट जनता पार्टी और रेड्डी के नेतृत्व वाली कांग्रेस के बीच बंट गये।

जनता पार्टी की सरकार में बढ़ गया क्राइम
दरअसल, जनता पार्टी की सरकार में अपराध चरम में था। इसके अलावा पार्टी नेताओं को सत्ता तो मिल गई थी मगर देश को आगे ले जाने का कोई विजन नहीं था। कोई प्लान नहीं था। पीएम मोरार जी देसाई, चौधरी चरण सिंह और तमाम नेता आपस में ही सिर फुटव्वल करने लगे। इंदिरा गांधी की वापसी की बिसात वास्तव में मार्च, 1977 में उनकी हार के कुछ महीने के बाद ही बिछाई जाने लगी थी। पटना-नालंदा के अपराधग्रस्त इलाके के एक तब तक अज्ञात गांव में आठ दलितों समेत, 11 लोगों की हत्या कथित तौर पर कुर्मियों के नेतृत्व वाले एक गिरोह के हाथों कर दी गई थी।

जब हांथी पर सवार होकर गांव पहुंचीं थीं इंदिरा गांधी
टेलीविजन के आने से काफी पहले, इंदिरा गांधी गांव में एक हाथी पर सवार होकर पहुंचीं। उस घटना की तस्वीरों ने भारतीयों को लंबे समय तक सम्मोहित करके रखा। किस तरह से वहां मौजूद लोग ‘आधी रोटी खाएंगे, इंदिरा को बुलाएंगे’ और ‘इंदिरा तेरे अभाव में हरिजन मारे जाते हैं’ जैसे नारे लगा रहे थे। यह किस्सा लोगों की जुबान पर चढ़ गया। इंदिरा ने एक बार फिर उन लोगों के दिलों के भीतर जगह बना ली थी, जिन्होंने मुश्किल से छह महीने पहले उनकी पार्टी को खारिज किया था। उसके बाद बस राजनीतिक संस्थाओं पर नियंत्रण स्थापित करना और अपनी राजनीतिक प्रभुता को हासिल करना ही बाकी रह गया था।

इंदिरा गांधी की प्रचंड जीत
इस दिशा में पहला कदम जनवरी 1978 की एक सुहावनी दोपहर को उठाया गया। संसद से चंद कदमों की दूरी पर मावलंकर हॉल के बाहर का लॉन इसका गवाह बना। पार्टी को दोफाड़ करके सिर्फ 54 लोकसभा सदस्यों के साथ उन्होंने इंदिरा कांग्रेस का गठन किया। करीब 100 अन्य को उनकी क्षमता पर संदेह था, लकिन उन्हें आगे चलकर अपने निर्णय का पछतावा हुआ होगा। साल के बचे हुए महीने पार्टी को खड़ा करने में खर्च किए गये, जिसमें पार्टी को एक रूप और चरित्र प्रदान किया गया। इसी समय पार्टी ने हाथ का चुनाव चिह्न धारण किया।

इंदिरा गांधी के खास थे आनंद शर्मा
बहरहाल, आनंद शर्मा ने 23 फरवरी 1987 को डॉ. जेनोबिया से शादी की। उनके दो बेटे हैं। शर्मा ने पहली बार 1982 में विधानसभा चुनाव लड़ा था। 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें राज्यसभा भेजा था। वह तभी से राज्यसभा सदस्य हैं और पार्टी में कई प्रमुख पदों पर अपनी सेवाएं दे चुके हैं। वह पूर्व यूपीए सरकार में केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री भी रह चुके हैं। ये राज्यसभा में विदेश और आर्थिक मामलों में लगातार मोदी सरकार को घेरते रहे हैं। आनंद शर्मा भारत में छात्र और युवा आंदोलन में एक प्रमुख नेता थे। वह कांग्रेस पार्टी के छात्र विंग एनएसयूआई के संस्थापक सदस्य भी थे। वह भारतीय युवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष भी रह चुके हैं।