देश के सर्वोच्च पद यानी राष्ट्रपति के लिए 18 जुलाई को वोटिंग है। विपक्ष की तरफ से यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार बनाया गया है, जबकि भाजपा की अगुआई वाली एनडीए ने द्रौपदी मुर्मू को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। अमर उजाला ने इससे पहले ही बताया था कि मुर्मू एनडीए की ओर से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हो सकती हैं।
आंकड़ों के हिसाब से अभी द्रौपदी मुर्मू ही मजबूत मानी जा रहीं हैं। मुर्मू आदिवासी समाज से आती हैं। अगर वह चुनाव जीतती हैं तो ये पहली बार होगा जब देश के सबसे सर्वोच्च पद पर कोई आदिवासी पहुंचेगा। द्रौपदी के प्रत्याशी बनते ही सियासी गलियारे में कई तरह की चर्चाएं होने लगीं। हर कोई जानना चाहता है कि आखिर भाजपा की खोज द्रौपदी पर ही क्यों रुकी? इसके क्या कारण हैं? आइए जानते हैं…
पहले जान लीजिए द्रौपदी का पलड़ा कितना भारी है? एनडीए ने द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया है। एनडीए के पास अभी कुल 5,26,420 मत हैं। राष्ट्रपति चुनाव जीतने के लिए मुर्मू को 5,39,420 मतों की जरूरत है। अब अगर चुनावी समीकरणों को देखें तो ओडिशा से आने के कारण सीधे तौर पर मुर्मू को बीजू जनता दल (बीजद) का समर्थन मिल रहा है। यानी बीजद के 31,000 मत भी उनके पक्ष में पड़ेंगे।
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक पहले ही द्रौपदी मुर्मू को समर्थन दे चुके हैं। इसके अलावा अगर वाईएसआर कांग्रेस भी साथ आती है तो उसके भी 43,000 मत उनके साथ होंगे। इसके अलावा आदिवासी के नाम पर राजनीति करने वाली झारखंड मुक्ति मोर्चा के लिए मुर्मू का विरोध करना मुश्किल है। झामुमो दबाव में आई तो मुर्मू को करीब 20,000 वोट और मिल जाएंगे। वहीं, आम आदमी पार्टी, टीएसआर ने भी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। माना जा रहा है कि द्रौपदी के नाम पर ये दोनों पार्टियां भी एनडीए के साथ आ सकती हैं। इस तरह से एनडीए के पास सात लाख से ज्यादा वैल्यू वाले वोट हो जाएंगे और द्रौपदी आसानी से चुनाव जीत जाएंगी।
25 को नामांकन करेंगी मुर्मू एनडीए उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू 25 जून को नामांकन दाखिल कर सकती हैं। वहीं, विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा 27 जून को नामांकन करेंगे। नामांकन की आखिरी तारीख 29 जून है। राष्ट्रपति पद का चुनाव 18 जुलाई को होगा। वोटों की गिनती 21 जुलाई को होगी। 25 को नए राष्ट्रपति शपथ ग्रहण करेंगे।
अब जानिए द्रौपदी के नाम पर ही क्यों लगी मुहर? हमने ये समझने के लिए राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर प्रो. प्रवीण मिश्रा से संपर्क किया। उन्होंने द्रौपदी मुर्मू और भाजपा की सियासी चाल के बारे में जानकारी दी। प्रो. प्रवीण कहते हैं, ‘जब से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं तब से देश की सियासत में कई नई चीजें देखने को मिली हैं। द्रौपदी मुर्मू के रूप में पहली बार कोई आदिवासी महिला राज्यपाल बनीं। अब द्रौपदी के नाम एक और इतिहास जुड़ जाएगा। भाजपा उम्मीद करेगी की उसे इसका सियासी फायदा भी हो।’ उन्होंने द्रौपदी को राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाए जाने के पांच बड़े कारण बताए। आइए जानते हैं…
1. अनुसूचित जनजाति पर फोकस : द्रौपदी मुर्मू आदिवासी समाज से आती हैं। ये पहली बार होगा जब कोई आदिवासी देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होगा। इसका संदेश देश के 8.9 फीसदी अनुसूचित जनजाति के वोटर्स को जाएगा। कई राज्यों की कई सीटों पर आदिवासी वोटर्स निर्णायक हैं। ऐसे में भाजपा ने द्रौपदी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर अनुसूचित जनजाति के वोटर्स को अपनी ओर करने की कोशिश की है।
2. महिला शक्ति का भी एहसास होगा : द्रौपदी मुर्मू अगर चुनाव जीतती हैं तो दूसरी महिला होंगी जो राष्ट्रपति बनेंगी। भारत में महिलाओं की आबादी पुरुषों के बराबर है। द्रौपदी का नाम प्रत्याशी के तौर पर एलान करने से महिलाओं में भी एक सकारात्मक संदेश जाएगा। द्रौपदी के संघर्ष की कहानी भी लोग जानते हैं। महिला वोटरों का झुकाव भाजपा की ओर माना जाता है। खुद प्रधानमंत्री कई बार इसका जिक्र कर चुके हैं। ऐसे में एक महिला को राष्ट्रपति बनाने से भाजपा को महिला वोटर्स में अपनी पकड़ को और मजबूत बनाने में मदद मिल सकती है।
3. आदिवासी बाहुल राज्यों पर फोकस : अगले दो सालों में 18 राज्यों में चुनाव होने हैं। इनमें दक्षिण के चार बड़े राज्य शामिल हैं। ओडिशा, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना। वहीं, पांच राज्य ऐसे हैं जहां अनुसूचित जनजाति और आदिवासी वोटर्स की संख्या काफी अधिक है। इनमें झारखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र शामिल हैं। इन सभी राज्यों की 350 से ज्यादा सीटों पर मुर्मू फैक्टर भाजपा के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।
4. लोकसभा चुनाव : 2024 में ही लोकसभा चुनाव भी है। आंकड़ों पर नजर डालें तो देश में 47 लोकसभा और 487 विधानसभा सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं। हालांकि, अनुसूचित जनजाति और आदिवासी वोटर्स का प्रभाव इनसे कहीं ज्यादा सीटों पर है। 2019 लोकसभा चुनाव में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 सीटों में 31 पर भाजपा ने जीत हासिल की थी। हालांकि, विधानसभा चुनावों में जरूर भाजपा को आदिवासी इलाकों में हार का सामना करना पड़ा था। खासतौर पर छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और राजस्थान में। ऐसे में भाजपा को लोकसभा में अपनी पुरानी जीत बरकरार रखने के लिए अनुसूचित जनजाति को अपने साथ रखने की पूरी कोशिश कर रही है।
5. समानता और एकता का संदेश: द्रौपदी मुर्मू का नाम राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए आते ही इसकी चर्चा होने लगी। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। ऐसे में यहां से किसी आदिवासी महिला को राष्ट्रपति पद पर ले जाने से समानता और एकता का बड़ा संदेश जाएगा।
‘अमर उजाला’ ने सात जून को ही बता दिया था आदिवासी हो सकता है चेहरा राष्ट्रपति पद के लिए एनडीए में जून के पहले हफ्ते से मंथन शुरू हो गया था। तब किसी एक का नाम साफ नहीं था, हालांकि, अलग-अलग वर्ग को लेकर बातचीत चल रही थी। जिसमें एक वर्ग आदिवासी का भी था। तब सात जून को ही ‘अमर उजाला’ ने ‘President Election: भाजपा किसे बनाएगी राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति का उम्मीदवार, किस आधार पर तय होगा नाम?’ शीर्षक के नाम से एक खबर प्रकाशित की थी। जिसमें ये बता दिया था कि इस बार राष्ट्रपति पद के लिए कोई आदिवासी चेहरा उम्मीदवार बनाया जा सकता है।
इसके बाद 19 जून को सबसे पहले ‘अमर उजाला’ ने द्रौपदी मुर्मू के नाम का खुलासा किया था। उस दौरान भाजपा में द्रौपदी मुर्मू के साथ-साथ अनुसूइया उइके के नाम की भी चर्चा थी। हालांकि, 21 जून को हुई बैठक में द्रौपदी मुर्मू के नाम पर मुहर लग गई।