चीते आखिर भारत से क्यों हो गए थे विलुप्त? शिकार से लेकर पालतू बनाने तक हैं कई कारण

इन चीतों का स्वभाव ऐसा था कि उनकी तुलना पालतू कुत्ते से की जाती थी .(तस्वीर : Parveen Kaswan/Twitter)

इन चीतों का स्वभाव ऐसा था कि उनकी तुलना पालतू कुत्ते से की जाती थी

नई दिल्ली. भारत में चीतों के विलुप्त होने के 70 साल बाद सरकार ने इस जंगली विडाल को देश में वापस बसाने के प्रयास शुरू किए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को नामीबिया से लाए गए 8 चीतों को मध्य प्रदेश के कुनो नेशनल पार्क में विशेष बाड़ों में छोड़ा. हालांकि इन चीतों को दोबारा बसाए जाने की खुशी के बीच एक सवाल जो सबके मन में उठता है कि आखिर चीते भारत में विलुप्त क्यों हुए? विशेषज्ञ इसके पीछे कई कारण गिनाते हैं, जिन्हें आपके सामने रख रहा है.

जलवायु परिवर्तन, कम प्रजनन दर, शिकार
नेशनल ज्योग्राफिक की एक रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन, इंसानों द्वारा शिकार और प्राकृतिक आवासों के नष्ट होने के परिणामस्वरूप चीता दुनिया भर में विलुप्ति का सामना कर रहे हैं. ये सभी उनकी आबादी के आकार को कम कर रहे हैं.

यह रिपोर्ट आगे बताती है कि चीतों के अपने जीन भी उनके अस्तित्व को खतरे में डाल रहे हैं. चीतों की प्रजनन सफलता दर कम होती है और कम संतान होने पर इनकी संख्या उस रफ्तार से नहीं बढ़ सकती है या पर्यावरणीय बदलावों के अनुकूल नहीं हो सकती है.

संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (UNCCD COP 14) के दलों के सम्मेलन में भारतीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल एक शोधकर्ता ने बताया कि मरुस्थलीकरण चीता के विलुप्त होने का प्राथमिक कारण था.

पालतू बनाकर रखना और खेलों में इस्तेमाल करना
हालांकि भारत में इन चीतों के विलुप्त होने के पीछे कई अन्य कारण भी थे. अंग्रेजी अखबार द हिंदू में छपी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस विडाल की अनूठी विशेषताओं ने उसके खात्मे में योगदान दिया. इनमें से एक यह था कि इसे वश में करना बहुत आसान था: इसे अक्सर नीचे दौड़ने और जानवरों का शिकार करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता था, लगभग एक शिकारी जानवर की तरह और फिर इनका इस्तेमाल एक ‘खेल’ में भी किया जाता, जिसे कोर्सिंग के रूप में जाना जाता है… और इस तरह शिकार में उपयोग के लिए बड़ी संख्या में इन्हें बंधक बना लिया गया था.

आईएफएस अधिकारी प्रवीण कासवान द्वारा शेयर की गई वर्ष 1878 की एक तस्वीर भी चीतों के विलुप्ति के कारण पर एक रोशनी डालती है. इसमें चीतों को पालतू कुत्तों की तरह जंजीर से बांधकर दिखाया गया है.

हिन्दू की रिपोर्ट के अनुसार, इस जानवर की विनम्रता ने भी इसके खिलाफ काम किया. ये चीते इतने कोमल मन के थे कि इनकी तुलना कुत्ते से की जाती थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि इसने बाघों, शेरों और तेंदुओं की तरह लोगों को कभी नहीं डराया.

अखबार ने अंग्रेजी प्रकृतिवादी डब्ल्यूटी ब्लैनफोर्ड के हवाले से कहा, ‘शिकार करने वाले चीते को आसानी से वश में कर लिया जाता है. उसे आज्ञाकारिता की पूरी स्थिति में लाने और अपना प्रशिक्षण पूरा करने में लगभग छह महीने का समय लगता है. इन जानवरों में से कई, जब पालतू हो जाते हैं तो कुत्ते की तरह कोमल और विनम्र बन जाते हैं. पालतू होने में प्रसन्न होते हैं और अजनबियों के साथ भी अच्छे स्वभाव दिखाते हैं, बिल्लियों की तरह अपने दोस्तों के खिलाफ गुर्राते और अपने जिस्म को रगड़ते हैं. पालतू होने पर उन्हें आमतौर पर एक चारपाई या दीवार से जंजीरों से बांधकर या फिर पिंजरे में बंद करके रखा जाता है.’

शिकार के कारण विलुप्ति
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में शिकार को भारतीय राजघरानों का पसंदीदा शगल बताया गया है, जो सदियों से चला आ रहा है. चीता, जिसे वश में करना आसान था और बाघों की तुलना में कम खतरनाक था, का इस्तेमाल अक्सर भारतीय कुलीनों द्वारा शिकार के खेल के लिए किया जाता था. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में शिकार के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले चीतों का सबसे पहला रिकॉर्ड 12वीं शताब्दी के संस्कृत पाठ मानसउल्लास में मिलता है, जिसे कल्याणी चालुक्य शासक सोमेश्वर तृतीय (जिन्होंने 1127-1138 ईसवी तक शासन किया) द्वारा लिखा गया था.

वन्यजीव विशेषज्ञ दिव्यभानुसिंह के अनुसार, चीता दौड़ना या शिकार के लिए प्रशिक्षित चीतों का उपयोग मध्यकालीन काल में एक बेहद प्रचलित गतिविधि बन गई थी और मुगल साम्राज्य के दौरान बड़े पैमाने पर की जाती थी. सन 1556 से 1605 तक शासन करने वाले सम्राट अकबर को इस गतिविधि का विशेष शौक था और कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवनकाल में 9,000 चीते इकट्ठा किए थे.

ब्रिटिश शासन के तहत
इंडियन एक्सप्रेस की ही रिपोर्ट बताती है कि चीता अंग्रेजी शासनकाल में विलुप्त होने के करीब थे. हालांकि वे चीतों का पीछा करने में रूचि नहीं रखते थे. रिपोर्ट में बताया गया है, ‘वे बाघ, भैसों और हाथियों जैसे बड़े जानवरों का शिकार करना पसंद करते थे. ब्रिटिश राज के दौरान बस्तियों को विकसित करने और नील, चाय और कॉफी के बागान स्थापित करने के लिए जंगलों को बड़े पैमाने पर साफ किया गया था. इसके परिणामस्वरूप इन विडालों के प्राकृतिक आवास का नुकसान हुआ, जिसने उनकी विलुप्ति में योगदान दिया.’

अंग्रेजों के पसंदीदा शिकार वैसे तो बाघ हुआ करते थे, लेकिन कुछ भारतीय और ब्रिटिश शिकारी चीतों का शिकार किया करते थे. रिपोर्ट के मुताबिक, इस बात के सबूत हैं कि ब्रिटिश अधिकारियों ने इस जानवर को ‘दरिंदा’ माना और 1871 की शुरुआत में चीतों को मारने के लिए पैसे भी इनाम में देने लगे. सिंध में एक चीता शावक को मारने का इनाम 6 रुपये था और एक वयस्क को मारने का इनाम 12 रुपये था. पर्यावरण इतिहासकार महेश रंगराजन के अनुसार, ब्रिटिश राज की इस प्रशासनिक नीति ने ‘भारत में इसके (चीता) विलुप्त होने में एक प्रमुख भूमिका निभाई थी.’

IFS अधिकारी प्रवीण कासवान द्वारा ट्विटर पर साझा की गई जानकारी में इस बात पर रोशनी डाली गई है कि शिकार ने चीतों की आबादी को कैसे प्रभावित किया:विज्ञापन

हानिकारक म्यूटेशन और इनब्रीडिंग एक खतरा
नेशनल ज्योग्राफिक की रिपोर्ट बताती है कि कैसे चीता विलुप्त होने की कगार पर हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, जंगली चीतों के आनुवंशिक विश्लेषण के अनुसार, वे दो ऐतिहासिक बाधाओं से बच गए होंगे, जो ऐसी घटनाएं हैं जो आबादी के आकार को काफी कम कर देती हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘जब ऐसा होता है तो कुछ बचे हुए लोग इनब्रीडिंग या रिश्तेदारों के साथ संभोग करते हैं. इनब्रीडिंग जीन पूल के आकार को कम कर देता है, जो आनुवंशिक म्यूटेशन में कमी और संभावित हानिकारक म्यूटेशन जैसे मसलों को जन्म दे सकता है. इससे शेष आबादी के लिए पर्यावरणीय परिवर्तनों के अनुकूल होना अधिक कठिन हो जाता है और वे विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके हैं.