जानवरों की पूंछ क्यों होती है, मनुष्यों के शरीर पर भी कैसे बचे हैं इसके निशान

ये बात हैरानी वाली हो सकती है कि जब दुनिया में सभी रीढ़ की हड्डी वाले प्राणियों में पूंछ होती है तो ये मनुष्य में क्यों नहीं है. हालांकि साइंस कहती है कि एक जमाने में मनुष्य भी पूंछ विहीन नहीं था लेकिन धीरे धीरे इसका उसके शऱीर से लोप हो गया. इस बारे में मशहूर प्राणी विज्ञानी चार्ल्स डार्विन ने थ्योरी दी कि मनुष्य ने पूंछ का उपयोग करना बंद कर दिया इसलिए ये धीरे धीरे गायब हो गई लेकिन हमारे शरीर पर अब भी पूंछ का निशान मिलता जरूर है.

वैसे आपको बता दें कि जितने रीढ़ वाले प्राणी या जंतु होते रहे हैं या मौजूदा समय में हैं, सभी के लिए पूंछ की एक खास उपयोगिता है.

सभी जानवरों के गुदा के अंतिम भाग (Post anal) के पास ही पूंछ होती है. अलग अलग जीवों के लिए इसका महत्व अलग तरह से होता है. और अलग अलग प्राणियों की पूंछ भी अलग तरह से होती है. वायु मंडल में रहने वाले पक्षियों के भी पूंछ होती है और जल में रहने वाली मछलियों की भी.

मछलियों की पूंछ पंखनुमा होती हैं
मछलियों में पूंछ के चारों ओर पंख (Fin) होते हैं. मछली को जल में आगे धकेलने में इनका खास रोल होता है. इस अंग का विकास कैसे हुआ और इससे कैसे काम लिया जाता है. इस पर साइंस में बहुत अध्ययन और शोध हुआ है.

अगर आप देखेंगे तो जल में रहने वाले जीव जंतुओं की पूंछ अलग तरीके की होती है और उन्हें अलग तरह से मदद करती है तो जमीन पर रहने वाले जानवर इसका इस्तेमाल संतुलन बनाने से लेकर शिकार और सिगनल देने तक में अलग तरीके से करते हैं (ShutterStock)

तैरने और उछाल देने में मददगार 
मछलियों की पूंछ कई आकार की होती हैं. ये उन्हें ना केवल तैरने में मदद करती है बल्कि उछाल लेने में भी मददगार होती है. इसी तरह मगरमच्छ, व्हेल जैसी बड़ी मछलियों की पूंछ भी उनके बैलेंस, मूवमेंट और तैरने में मदद करती है, कई बार इसकी मदद से पानी को अपने हिसाब से चप्पू की खेकर अपने तैरने की दिशा को आसान करती हैं. व्हेल की पूंछ के अंत में दो हिस्से होते हैं. ये भी तैरने में मदद करती है.

मेढ़क की पूंछ शुरू में होती है और बाद में गायब
मेढ़क और टोड में भी पूंछ होती है लेकिन केवल लार्वा अवस्था में. बाद में जैसे जैसे वो बड़े होते जाते हैं, उनकी पूंछ लुप्त होती जाती है. हालांकि एक विशेष अवस्था में पूंछ उन्हें जमीन और पानी में चलने में भी मददगार होती है.

छिपकली अगर पूंछ के जरिए संतुलन बनाती है और उछलकूद में मदद लेती है तो ये पूंछ इतने बालों वाली गर्म होती है तो जाड़े में वह इसे कंबल की ओढ़ भी लेती है. (ShutterStock)

छिपकलियों की पूंछ लंबी और कटकर दोबारा आती है
रेंगने वाले तकरीबन सभी प्राणियों में ठीक तरह से विकसित हो चुकी पूंछ होती है. पूंछ की लंबाई अलग अलग जंतुओं में अलग अलग होती है. कछुए की पूंछ की लंबाई बहुत कम होती है. छिपकलियों में ये ज्यादा होती है. हालांकि उनकी पूंछ कटकर दोबारा उग आती है. कई बार पूंछ उन्हें उछलने में मदद भी करती है. वो और उसकी तरह के कई जंतु पूंछ का इस्तेमाल अपनी सुरक्षा के लिए भी करते हैं. गिरगिट की पूंछ बहुत लंबी होती है, वो शिकार में उसकी मदद करती हैं.

सांप की पूंछ भी लंबी होती है और ये चप्पु की तरह तैरने में उसकी मदद करती है. समुद्री सांपों की तो पूंछ ही चप्पु के तरह की होती है.

चिड़ियों की पूंछ छोटी 
अब आते हैं हवा में उड़ने वाले पक्षियों के बारे में. चिड़ियों की पूंछ बहुत छोटी होती है. ये परों की आधार पर काम करती है. इसकी मदद से इसको उड़ने में मदद मिलती है.

वैसे पूंछ का सबसे बेहतर तरीके से इस्तेमाल अगर बंदर करता है तो वो इस पूंछ से शैतानियां करने में पीछे नहीं रहता, (ShutterStock)

पूंछ के कई और भी लाभ
स्तनपायी जानवरोंं में आमतौर पर पूंछ  विकसित होती है. इस पूंछ से कई तरह के काम करते हैं. बंदर अगर पूंछ से मक्खियां आदि भगाता है तो वह इन्हें पेड़ की डालियों में इन्हें लपेट इनसे लटक भी जाता है. कई बार पूंछ उनके लिए हमले का काम भी करती है. घोड़े की पूंछ में बहुत लंबे बाल होते हैं. गिलहरी और कंगारू की पूंछ उन्हें घूमने और कूदने में संतुलन देती है. जाड़े के समय गिलहरी की पूंछ उसकी कंबल भी बन जाती है, जिसको वो ओढ़ लेती है.

मोर अपनी पूंछ के जरिए मादा मोर को आकर्षित करती है तो खरगोश इसका इस्तेमाल खतरे का संदेश देने के लिए करता है.

क्यों नहीं होती मनुष्य की पूंछ
मनुष्य और एप के पूंछ नहीं होती. क्यों नहीं होती. उसकी भी लंबी कहानी है. माना जाता है जब पृथ्वी का विकास हुआ. तब जो मानव था, उसकी पूंछ होती थी लेकिन जब उसने पेड़ों पर ज्यादा चढ़ना और पेड़ों पर चढ़कर कूदना कम कर दिया तो ये पहले छोटी होती गई और फिर गायब हो गई.

हालांकि मानव शरीर में होने वाली टेल बोन अब भी ये बताती है कि कभी हमारे पूंछ थी जो टेल बोन से ही निकलती थी. इसे एक तरह का वो निशान मानना चाहिए, जो बताता है कि कभी मनुष्यों के पूंछ थी और वो इसी जगह से निकली होती थी.

टेल बो हमारी खोई हुई पूंछों की याद दिलाती है जो पेड़ों पर चढ़ते समय संतुलन बनाने में मददगार हुआ करती थी. वैसे मानव शरीर में कई ऐसी चीजें थीं, जिनसे वो पहले काम लेता था लेकिन अब नहीं, क्योंकि वो उसके जीवित रहने के लिए जरूरी नहीं थीं.