कोलकाता से प्रकाशित होने वाला अंग्रेज़ी दैनिक अख़बार द टेलिग्राफ़ ने इस ख़बर को प्रमुखता से जगह दी है. आज के प्रेस रिव्यू में पहली ख़बर यही है.
कौशिक बासु ने कहा कि हम अतिराष्ट्रवादी नहीं हो सकते. बासु भारत की अर्थव्यवस्था और शिक्षा की भूमिका पर अपना व्याख्यान दे रहे थे. इसी व्याख्यान के दौरान बासु ने अर्जेंटीना का हवाला दिया.
उन्होंने कहा कि 1920 के दशक में अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था काफ़ी मज़बूत थी और तब यह अमीर देशों में से एक था. अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था में उभार का श्रेय वहाँ के बुद्धिजीवियों को दिया गया और बाद में अर्थव्यवस्था में गिरावट आई तो इसे वहाँ 1930 के दशक में जुंटा के अंध-राष्ट्रवाद से जोड़ा जाता है.
कौशिक बासु ने कहा कि 1862 के बाद अर्जेंटीना की अर्थव्यवस्था में तगड़ी वृद्धि दर देखने को मिली. ऐसा व्यापक पैमाने पर पूंजी के प्रवाह और बड़ी संख्या में लोगों के दूसरे देशों में जाकर काम करने के कारण हुआ था. ये दोनों चीज़ें मुख्य रूप से इटली, स्पेन और कुछ मध्य यूरोप के देशों से हुईं.
पूंजी और मानव संसधान के प्रवाह के कारण अर्जेंटीना इस इलाक़े का पावरहाउस बनकर उभरा था. 1896 तक यहां प्रति व्यक्ति आय अमेरिका के जितनी हो गई थी.
हालांकि, अर्जेंटीना फिर अपने कुख्यात दशक 1930 में आया, जब एक रूढ़िवादी और तानाशाही प्रवृत्ति की सरकार का इस लातिन अमेरिकी देश पर नियंत्रण हुआ. इस सरकार ने अंध-राष्ट्रवाद की वकालत की.
इसका नतीजा यह हुआ कि देश की अर्थव्यवस्था पटरी से उतर गई. कुछ रिसर्च से पता चलता है कि अभी जिस वृद्धि दर से अर्जेंटीना आगे बढ़ रहा है, उसके आधार पर उसे यूरोप की अर्थव्यवस्था से बराबरी करने में 90 साल लग जाएंगे.
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कौशिक बासु ने कहा कि अर्जेंटीना का संदर्भ भारत के लिए चेतावनी है. विश्व बैंक के भी मुख्य अर्थशास्त्री रहे कौशिक बासु ने कहा कि अर्जेंटीना ने अंधराष्ट्रवाद के कारण शिक्षित लोगों के लिए दरवाज़ा बंद कर दिया था और इसका सीधा असर वहाँ की अर्थव्यवस्था पर पड़ा था.
बासु ने कहा, ”अर्जेंटीना ने अतिराष्ट्रवाद का दौर देखा है. हम ऐसा नहीं कर सकते. अर्जेंटीना एक सैन्य शासन के भीतर रहा है. भारत की अतीत परंपरा उच्चस्तरीय और उच्च शिक्षा वाली रही है.”
बासु ने भारत के लिए शिक्षा पर खर्च करने और दक्षिण कोरिया की तरह आर्थिक वृद्धि करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया. उन्होंने कहा कि दक्षिण कोरिया ने उच्च शिक्षा में निवेश किया है और इससे देश के आर्थिक विकास में मदद मिली है.
उन्होंने कहा कि 1990 तक दक्षिण कोरिया अपनी उच्च प्रति व्यक्ति आय के साथ भारत के मुक़ाबले 15 गुना अमीर था क्योंकि वो प्रति व्यक्ति सबसे ज़्यादा बौद्धिक संपत्ति पैदा कर रहा था.
भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि साल 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट से आई गिरावट के अलावा, भारत की विकास दर 2003 और 2011 के बीच लगभग 8 प्रतिशत रही है, लेकिन 2016 में इसमें गिरावट शुरू हुई.
उन्होंने कहा, ”विकास में गिरावट साल 2016 के बाद शुरू हुई. 2016 से 2020 तक हर साल विकास दर पिछले साल से कम रही. पिछले साल से विकास दर में वृद्धि हुई है. ये 8.7 प्रतिशत रही है.”
कौशिक बासु ने भारतीय समाज में बढ़ते ध्रुवीकरण के कारण निवेश के लिए विश्वास में कमी को लेकर भी चिंता जताई.
उन्होंने कहा, ”अर्थशास्त्री राजनीति और समाजशास्त्र के महत्व और मनुष्यों के बीच विश्वास को नहीं पहचानते हैं. लेकिन, इसे लेकर इतिहासकार के अध्ययन होते हैं… इसलिए, समाज में भरोसे को परिभाषित करना बहुत मुश्किल है लेकिन राजनीतिक विज्ञानी और अर्थशास्त्री फ्रांसिस फुकुयामा ने कई देशों के डेटा के साथ कहा है कि जब भरोसा कम होता है तो निवेश भी नीचे चला जाता है और भारत की निवेश दर नीचे जा रही है.”
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शिवसेना के बाद कांग्रेस को डर
महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार पर मंडरा रहे संकट के बीच शिवेसना के बाद कांग्रेस की चिंताएं बढ़ गई हैं. सरकार के गिरने या संभलने के साथ-साथ कांग्रेस के विधायकों का भविष्य भी अधर में लटका हुआ है.
अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस की इस ख़बर के मुताबिक पार्टी के एक धड़े को लगता है कि इनमें से कई विधायक प्रभावित होने की स्थिति में हैं और उन्हें एकजुट रखने में केंद्रीय नेतृत्व खास रूचि नहीं ले रहा है.
हालांकि, शिवसेना के विधायकों के सूरत में होने का पता चलने के बादी ही कांग्रेस ने वरिष्ठ नेता कमलनाथ को हालात संभालने के लिए भेजा था लेकिन वो कुछ समय रुकने के बाद वापस लौट आए.
आधिकारिक तौर पर कांग्रेस ने कहा है कि 44 विधायक पार्टी के साथ बने हुए हैं. कमलनाथ ने 41 के साथ मुलाक़ात की है और तीन के साथ फ़ोन पर बात हुई है.
हालांकि, पार्टी के सभी नेताओं को ये भरोसा नहीं है. बताया जा रहा है कि कांग्रेस के राज्य प्रभारी एचके पाटिल के साथ एक वरिष्ठ नेता की बहस हुई थी. उनका कहना था, ”हमारे विधायक खुले घूम रहे हैं. हमें उन्हें कम से कम एक होटल में ले जाना चाहिए. ये नहीं भूलना चाहिए कि एमएलसी चुनाव में कांग्रेस से क्रॉस-वोटिंग हुई थी.”
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ब्रिक्स की बैठक
ब्रिक्स देशों के डिजिटल सम्मेलन में गुरुवार को जहां चीन और रूस ने आर्थिक प्रतिबंधों को लेकर पश्चिमी देशों पर निशाना साधा वहीं प्रधानमंत्री मोदी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था और आपसी सहयोगी की बात की.
अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू लिखता है कि प्रतिबंधों के कारण आए आर्थिक संकट के लिए पश्चिमी देशों के स्वार्थपूर्ण कदमों को ज़िम्मेदार ठहराते हुए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ब्रिक्स को और मजबूत करने पर ज़ोर दिया. ब्रिक्स पांच देशों का एक संगठन है जिसमें ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ़्रीका शामिल हैं.
ब्रिक्स के इस 14वें सम्मेलन में पीएम मोदी और अन्य वैश्विक नेताओं ने यूक्रेन और अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति पर चर्चा की. पीएम मोदी ने महामारी के बाद आए वैश्विक आर्थिक संकट से निपटने में ब्रिक्स के महत्व पर ज़ोर दिया.
वहीं, चीन ने सदस्य देशों से ‘शीत युद्ध की मानसिकता’ और अमेरिका और पश्चिमी देशों के एकतरफ़ा प्रतिबंधों का विरोध करने की मांग की. चीन इस साल के ब्रिक्स सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहा है.