धनतेरस से शुरू होने वाला दिवाली का यह त्योहार पांच दिन तक चलता है। 22 अक्टूबर को धनतेरस, 23 अक्टूबर को छोटी दिवाली, 24 अक्टूबर को दीपावली पर लक्ष्मी पूजन, 25 अक्टूबर सूर्य ग्रहण, 26 अक्टूबर गोवर्धन पूजन और 27 अक्टूबर को भाई दूज का पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा।
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दिवाली का पर्व 24 अक्टूबर दिन सोमवार को देशभर में मनाया जा रहा है। यह पर्व हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। दिवाली पर सभी माता लक्ष्मी के साथ श्रीगणेश की पूजा करते हैं। लेकिन कुछ ही लोगों को पता है कि माता लक्ष्मी के साथ गणेश की पूजा क्यों की जाती है और रिद्धि सिद्धि कौन हैं। साथ ही दिवाली पूजन में शुभ-लाभ क्यों लिखा जाता है। धनतेरस से शुरू होने वाला दिवाली का यह त्योहार पांच दिन तक चलता है। 22 अक्टूबर को धनतेरस, 23 अक्टूबर को छोटी दिवाली, 24 अक्टूबर को दीपावली पर लक्ष्मी पूजन, 25 अक्टूबर सूर्य ग्रहण, 26 अक्टूबर गोवर्धन पूजन, 27 अक्टूबर को भाई दूज का पर्व मनाया जाएगा।
इसलिए की जाती है भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की पूजा
मां लक्ष्मी के साथ गणेशजी की पूजा जरूरी है। माता लक्ष्मी श्री, अर्थात धन-संपादा की स्वामिनी हैं, वहीं श्रीगणेश बुद्धि-विवेक के। बिना बुद्धि-विवेक के धन-संपदा प्राप्त होना दुष्कर है। माता लक्ष्मी की कृपा से ही मनुष्य को धन-समृद्धि की प्राप्ति होती है। मां लक्ष्मी की उत्पत्ति जल से हुई थी और जल हमेशा चलायमान रहता है, उसी तरह लक्ष्मी भी एक स्थान पर नहीं ठहरतीं। लक्ष्मी के संभालने के लिए बुद्धि-विवेक की आवश्यकता पड़ती है। बिना बुद्धि-विवेक के लक्ष्मी को संभाल पाना मुश्किल है इसलिए दिवाली पूजन में लक्ष्मी के साथ गणेश की पूजा की जाती है। ताकि लक्ष्मी के साथ बुद्धि भी प्राप्त हो। कहा जाता है कि जब लक्ष्मी मिलती है तब उसकी चकाचौंध में मनुष्य अपना विवेक खो देता है और बुद्धि से काम नहीं करता। इसलिए लक्ष्मीजी के साथ हमेशा गणेशजी की पूजा करनी चाहिए।
माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पौराणिक कथा
18 महापुराणों में से महापुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार, मंगल के दाता श्रीगणेश, श्री की दात्री माता लक्ष्मी के दत्तक पुत्र हैं। एकबार माता लक्ष्मी को स्वयं पर अभिमान हो गया था। तब भगवान विष्णु ने कहा कि भले ही पूरा संसार आपकी पूजा-पाठ करता है और आपके प्राप्त करने के लिए हमेशा व्याकुल रहता है लेकिन अभी तक आप अपूर्ण हैं। भगवान विष्णु के यह कहने के बाद माता लक्ष्मी ने कहा कि ऐसा क्या है कि मैं अभी तक अपूर्ण हूं। तब भगवान विष्णु ने कहा कि जब तक कोई स्त्री मां नहीं बन पाती तब तक वह पूर्णता प्राप्त नहीं कर पाती। आप निसंतान होने के कारण ही अपूर्ण हैं। यह जानकर माता लक्ष्मी को बहुत दुख हुआ। माता लक्ष्मी का कोई भी पुत्र न होने पर उन्हें दुखी होता देख माता पार्वती ने अपने पुत्र गणेश को उनकी गोद में बैठा दिया। तभी से भगवान गणेश माता लक्ष्मी के दत्तक पुत्र कहे जाने लगे। माता लक्ष्मी दत्तक पुत्र के रूप में श्रीगणेश को पाकर बहुत खुश हुईं। माता लक्ष्मी ने गणेशजी को वरदान दिया कि जो भी मेरी पूजा के साथ तुम्हारी पूजा नहीं करेगा, लक्ष्मी उसके पास कभी नहीं रहेगी। इसलिए दिवाली पूजन में माता लक्ष्मी के साथ दत्तक पुत्र के रूप में भगवान गणेश की पूजा की जाती है।
ऐसे रखें भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की मूर्ति
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, श्रीगणेश की पूजा सभी देवताओं में सर्वप्रथम की जाती है। जहां श्रीगणेश की पूजा होती है, वहां उनके साथ उनकी पत्नी रिद्धि और सिद्धि अपने पुत्रों शुभ और लाभ के साथ मौजूद रहती हैं। इससे पूजनकर्ता के गृह में विघ्न टल जाता है। रिद्धि और सिद्धि ब्रह्माजी की पुत्रियां हैं। माता हमेशा अपने पुत्र के दाएं हाथ पर विराजती है। इसलिए गणेशजी की मूर्ति की स्थान माता की मूर्ति के बायीं ओर की जानी चाहिए।
धन की रक्षा करते हैं कुबेर
शास्त्रों के अनुसार, माता लक्ष्मी के धन-संपादा के भंडार की देखरेख और रक्षा का कार्यभार भगवान कुबेर के जिम्मे है। किसको कितना धन देना है, कब देना है, इसका भार माता ने कुबेर को दिया है। इसलिए दिवाली पर माता लक्ष्मी-गणेश के साथ कुबेर की भी पूजा जरूरी होती है।