Ajit Doval को क्यों कहा जाता है ‘जेम्स बॉन्ड ऑफ इंडिया’? सात साल पाकिस्तान में जासूस बन कर रहे

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भारत के कई ऐसे नायक हैं जिन्हें अपने देश के प्रति उनके बेजोड़ योगदान, समर्पण और अडिग संकल्प के लिए पर्याप्त श्रेय नहीं मिलता है. फिर भी वो चुपचाप अपने काम में लगे रहते हैं और हमारे देश को दुश्मनों से सुरक्षित रखने के लिए कई अंदरूनी लड़ाई जीतते हैं. अजीत डोभाल ऐसे ही एक भारतीय नायक का नाम है जिन्हें ‘भारत के जेम्स बॉन्ड’ के रूप में भी जाना जाता है. वो पाकिस्तान में 7 साल जासूस बनकर रह चुके हैं.

वर्तमान राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं अजीत डोभाल

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अजीत डोभाल वर्तमान में देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं. डोभाल का जन्म 1945 में पौड़ी गढ़वाल गांव में हुआ था, जो अब उत्तराखंड है. डोभाल के पिता मेजर गुणानंद डोभाल भारतीय सेना के एक अधिकारी थे. डोभाल की शुरुआती शिक्षा अजमेर मिलिट्री स्कूल से हुई. MA करने के बाद उन्हें दिसंबर 2017 में आगरा विश्वविद्यालय और मई 2018 में कुमाऊं विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया.

डोभाल ने 1968 में सिविल सर्विसेज क्वालिफाई किया और केरल कैडर के आईपीएस अधिकारी बने. उन्होंने कई साल पूर्वोत्तर में सक्रिय विद्रोही समूहों पर खुफिया जानकारी जुटाने के लिए अंडरकवर काम करते हुए बिताए. इस दौरान उन्होंने रखाइन, म्यांमार में अराकान के अंदर और चीन के अंदर भी विद्रोहियों के साथ समय बिताया.

पाकिस्तान में 7 साल जासूस बनकर रह चुके हैं

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पूर्वोत्तर में डोभाल की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक लालडेंगा के 7 में से 6 साथियों पर जीत हासिल करना था और उन्हें शांति स्थापित करने के लिए मजबूर करना था. डोभाल भारत के इतिहास में सबसे कम उम्र के पुलिस अधिकारी हैं जिन्होंने meritorious service के लिए भारतीय पुलिस पदक जीता है. उन्हें महज छह साल की सेवा के बाद यह सम्मान दिया गया जबकि मानदंड 17 साल का है.

पूर्वोत्तर मिशन के बाद डोभाल पाकिस्तान गए. उन्होंने वहां सात साल बिताए और कई मौकों पर खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के लिए खुद की जान जोखिम में डाली. वह सात साल पाकिस्तान में अंडरकवर एजेंट के तौर पर बिता चुके हैं. उस दौरान उन्होंने सक्रिय उग्रवाद गुटों के बारे में सारी गोपनीय जानकारियां इकट्ठी कीं.

कीर्ति चक्र से सम्मानित होने वाले पहले पुलिसकर्मी

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डोभाल भारत के दूसरे सर्वोच्च वीरता पुरस्कार कीर्ति चक्र से सम्मानित होने वाले पहले पुलिसकर्मी थे. डोभाल को यह सम्मान उनके स्वर्ण मंदिर में घुसपैठ से एक साल पहले 1988 में दिया गया था. खालिस्तानी विद्रोह को दबाने के लिए 1984 में किया गया ‘ऑपरेशन ब्लू स्टार’ एक और उदाहरण है जहां भिंडरवाले को बाहर निकालने के लिए सुरक्षा बलों ने स्वर्ण मंदिर के अंदर धावा बोला, तब डोभाल अंदर थे.

साल 1990 में, अजीत डोभाल कश्मीर गए, जहाँ उन्होंने कट्टर आतंकवादियों और सैनिकों को विद्रोही विरोधी बनने के लिए मना लिया. इस तरह उन्होंने 1996 में जम्मू-कश्मीर के चुनाव का रास्ता साफ कर दिया. 1999 में कंधार में हाइजैक्ड भारतीय विमान IC-814 से यात्रियों की रिहाई में अजीत डोभाल ने तीन negotiators में से एक के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

इंडियन एयरलाइंस के विमानों के 15 हाईजैकिंग को रोका

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1971 और 1999 के बीच, डोभाल ने इंडियन एयरलाइंस के विमानों के 15 हाईजैकिंग को रोका था. 2004 से पहले, उन्होंने मल्टी एजेंसी सेंटर (MAC) और ज्वाइंट टास्क फोर्स ऑन इंटेलिजेंस (JTFI) की स्थापना की. इनका काम सभी सुरक्षा एजेंसियों को एक मंच पर लाना और आतंकवाद से निपटने पर ध्यान केंद्रित करना है.

2004 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने डोभाल को इंटेलिजेंस ब्यूरो का प्रमुख बनाया था. उन्हें जनवरी 2005 में इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया था क्योंकि तत्कालीन एनएसए एमके नारायणन ने अपने पूर्व कर्मचारी अधिकारी, ईएसएल नरसिम्हन को अगले आईबी प्रमुख के रूप में चुना था. NSA बनने से पहले, डोभाल ने विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन की स्थापना की.

बालाकोट एयरस्ट्राइक में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी

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साल 2014 में, डोभाल ने इस्लामिक स्टेट द्वारा बंदी बनाई गई 46 भारतीय नर्सों की रिहाई के लिए डोभाल इराक गए और 5 जुलाई, 2015 को सभी नर्सें भारत वापस लाई गई. सितंबर 2016 में हुई भारतीय सर्जिकल स्ट्राइक और फरवरी 2019 में बालाकोट एयरस्ट्राइक को अजीत डोभाल की देखरेख में अंजाम दिया गया.

उन्होंने डोकलाम स्टैंड ऑफ को समाप्त करने में भी मदद की और पूर्वोत्तर में उग्रवाद के प्रबंधन के लिए निर्णायक कदम उठाए. साल 2019 में, उन्हें अगले पांच वर्षों के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में उन्हें कैबिनेट रैंक दिया गया.