सितंबर महीने में उज्बेकिस्तान के समरकंद (Samarkand in Uzbekistan) में शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) सम्मेलन का आयोजन हुआ था। इस सम्मेलन ने भारत और तुर्की (India and Turkey) के रिश्तों में एक तरह से जान फूंकने का काम किया। तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की। जो खबरें आ रही हैं उस पर अगर यकीन करें तो अमेरिका को भारत और तुर्की के रिश्तों से खासी आपत्ति है।
अंकारा: भारत के विदेश मंत्री एस सुब्रहमण्यम ने हाल ही में तुर्की के अपने समकक्ष मेव्लुट कावुसोग्लू से मुलाकात की। यह मुलाकात 21 सितंबर को न्यूयॉर्क में चल रहे यूनाइटेड नेशंस जनरल असेंबली (UNGA) से इतर हुई थी। दोनों के बीच साइप्रस पर भी चर्चा हुई और खुद जयशंकर ने इस बात की जानकारी ट्वीट के जरिए दी। जयशंकर ने तुर्की के विदेश मंत्री के साथ मुलाकात के बाद साइप्रस का जिक्र किया। साइप्रस और तुर्की के बीच रिश्तों को अक्सर भारत और पाकिस्तान के समकक्ष रखा जाता है। वहीं इस पूरे घटनाक्रम पर अमेरिका की नजरें गड़ी हुई हैं। राजनयकि सूत्रों की मानें तो अमेरिका को भारत और तुर्की के बीच बेहतर होते रिश्ते रास नहीं आ रहे हैं।
भारत-पाकिस्तान जैसे तुर्की-साइप्रस
तुर्की और साइप्रस का बंटवारा भी भारत और पाकिस्तान की ही तरह एतिहासिक है। सन् 1923 में हुई लॉजेन की संधि के तहत जिसने ओटोमन साम्राज्य को समाप्त कर दिया गया। लॉजेन की संधि को तुर्की ने ब्रिटेन, फ्रांस, इटली और ग्रीस के साथ 100 सालों के लिए साइन किया था। 24 जुलाई 2023 को यह संधि खत्म हो जाएगी। इसके बाद तुर्की की आधुनिक सीमाओं का भी विलय हो जाएगा। जो संधि हुई थी उसके तहत गुप्त कानूनों को ब्रिटेन और तुर्की ने साइन किया था।
इस संधि के खत्म होने के बाद कई एतिहासिक घटनाएं भी होने वाली हैं जैसे कि ब्रिटिश सैनिक फिर से उन किलों पर कब्जा कर लेंगे जो बोस्फोरस के सामने हैं। ग्रीक ऑर्थोडॉक्स पैट्रिआर्क, इस्तांबुल की शहर की दीवारों के अंदर एक बीजान्टिन छोटा देश फिर से तैयार करेगा। इसके साथ ही तुर्की पूर्वी भूमध्य सागर के विशाल ऊर्जा संसाधनों का प्रयोग करने में सक्षम हो सकेगा। सिर्फ इतना ही नहीं शायद तुर्की पश्चिमी थ्रेस जो ग्रीस का एक प्रांत है उस फिर से हासिल कर ले।
अमेरिका का एकतरफा ऐलान
ऐसे में इस समय साइप्रसे सारे ड्रामे का केंद्र बना हुआ है। तुर्की के सत्ताधारी मानते हैं कि उनके देश को सन् 1920 में सेवर की संधि और फिर 1923 में लॉजेन की संधि पर साइन करने के लिए मजबूर किया गया था। खुद राष्ट्रपति एर्दोगन भी इतिहास को खारिज कर देते हैं। तुर्की लॉजेन संधि के 100 साल का जश्न मनाने की तैयारी कर चुका है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजरें अब उस पर लगी हुई हैं।
साल 2023 में ही देश में चुनाव होने हैं और ये एर्दोगन का भविष्य तय करेंगे। अमेरिका ने इन सारे घटनाक्रमों को देखते हुए ही 16 सितंबर को ऐलान कर दिया कि वह ग्रीक और साइप्रस पर लगाए गए सभी रक्षा व्यापार प्रतिबंधों को साल 2023 के लिए खत्म कर रहा है। अमेरिका की मानें तो विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकन ने अमेरिकी कांग्रेस को भरोसा दिलाया है कि साइप्रस ने जरूरी कानून के तहत सभी शर्तों को माना है।
अमेरिका का एकतरफा फैसला
अमेरिका का यह कदम साइप्रस और ग्रीस द्वारा हाल के हथियारों के सौदों की पृष्ठभूमि के खिलाफ आया है, जिसमें फ्रांस से हमले के हेलीकॉप्टर खरीदने का सौदा और मिसाइल और लंबी दूरी की रडार प्रणाली की खरीद के प्रयास शामिल हैं। तुर्की ने अमेरिका से ‘इस फैसले पर दोबारा सोचने के लिए कहा है और दोनों पक्षों के लिए संतुलित नीति को मानने की सलाह दी है। अमेरिकी ऐलान के बाद से ही तुर्की ने उत्तरी साइप्रस में अपनी सेना बढ़ाने की घोषणा कर दी है।
भारत और तुर्की परेशान
तुर्की ने इस फैसले को एकपक्षीय बताया है। उसका मानना है कि अमेरिका के इस फैसले का मतलब ग्रीस और ग्रीक साइप्रस प्रशासन द्वारा समुद्री दावों के लिए अप्रत्यक्ष तरीके से दिया गया समर्थन भी है।तुर्की की ही तरह भारत भी अमेरिका की तरफ से पाकिस्तान को दिए गए 450 मिलियन डॉलर की सैन्य मदद से परेशान है। तुर्की-अमेरिका-साइप्रस की तरह अमेरिका-भारत-पाकिस्तान के भी समीकरण बने हुए हैं। अमेरिकी सरकार पाकिस्तान के साथ तो संबंधों को मजबूत कर रही है लेकिन तुर्की और भारत के रिश्तों से परेशान है।
अमेरिका का सिहांसन खतरे में
अमेरिका की चिंता यह है कि क्षेत्र की दो प्रभावी शक्तियों ने अगर अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में बहु-ध्रुवीयता को बढ़ावा देने वाली विदेशी नीतियों को आगे बढ़ाया तो फिर अमेरिका के नंबर वन सिंहासन को खतरा पैदा हो जाएगा। उसके पास जा सबसे शक्तिशाली देश होने का तमगा है, वह भी छिन जाएगा। एर्दोगन और पीएम मोदी ने जिस गर्मजोशी के साथ मुलाकात तो की ही साथ ही साथ रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से भी मिले।
कमजोर हो जाएंगे कई देश
समरकंद से एर्दोगन-पुतिन और मोदी-पुतिन की तस्वीरों से अमेरिका परेशान है। एर्दोगन और पुतिन की मीटिंग को रूस की मीडिया ने काफी सकारात्मक शुरुआत करार दिया। इस बात में कोई शक नहीं है कि अमेरिका और यूरोपियन देश भूमध्य सागर में अपनी ताकत बढ़ाने में लगे हैं। ऐसे में निश्चित तौर पर भारत और तुर्की की करीबी पश्चिमी देशों को अखर सकती है।