कैब बुक करना अब क्‍यों हो रहा मुश्किल, क्‍या है इसकी वजह और कंपनियों ने क्‍यों बदला अपना तरीका?

नई दिल्ली. देश के कई बड़े शहरों में अब कैब सर्च करना एक मुश्किल काम हो गया है. ओला-उबर जैसी सर्विस का इस्तेमाल करने वालों के लिए कैब नहीं मिलने की समस्या आम हो गई है. लोगों को सबसे ज्यादा जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, उनमें लंबी वेटिंग, खराब सर्विस और बड़ी संख्या में कैंसिलेशन शामिल हैं.

एक समय पर कैब सर्विस को बहुत बड़े और सस्ते समाधान के रूप में देखा ज रहा था. इससे काफी हद तक समय की बचत होती है और यह पब्लिक ट्रांसपोर्ट का बेहतर विकल्प भी माना जा रहा था. शुरूआती दौर में सब कुछ बेहतर चलता रहा. ड्राइवरों ने भी पहले ज्यादा इंसेटिव मिलता था, कैब प्लेटफॉर्म को कम कमिशन का देना और काम के निर्धारित घंटे जैसी सुविधाएं शामिल थीं. हालांकि महामारी के बाद स्थिति पूरी तरह बदल गई. अब कई शहरों में कैब बुक करना मुश्किल भरा काम हो गया है. आखिर इसकी पीछे क्या है वजह?

क्या गलत हुआ?
कई कैब ड्राइवरों ने मनीकंट्रोल को बताया कि पिछले कुछ सालों में किराए के कमीशन में 20-30 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हुई है. पेट्रोल-डीजल की कीमतें भी अब आसमान छू रही हैं. ड्राइवरों का कहना है कि 2017 से पहले कुछ ड्राइवर एक महीने में 1 लाख रुपये तक कमात थे, लेकिन अब कंपनियों की तरफ से ड्राइवरों को मिलने वाला इंसेंटिव नहीं के बराबर है.

Ola और Uber देश में कैब सर्विस देने वाली दो बड़ी कंपनियां हैं.

बहुत कम मिलता है इंसेंटिव
कैब चलाने वाले एक ड्राइवर ने मनीकंट्रोल को बताया कि ओला और उबर के लिए बेंगलुरु में एक ड्राइवर औसतन दिन में लगभग 14 घंटे और महीने में 25 दिन काम करता है. वह अकेले ईंधन पर हर महीने 20,000 रुपये से ज्यादा खर्च करता है. अब ईंधन की लागत दोगुनी हो गई है और उन्हें केवल हफ्ते के आखिर में इंसेंटिव मिलता है.

कम हुई ड्राइवरों की संख्या
सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी के एक सीनियर रिसर्चर आयुष राठी ने कहा कि मार्च 2020 से पहले की तुलना में एक्सपर्ट्स ने ओला और उबर के बेड़े में काफी कमी का संकेत दिया है. इसके कई कारण हो सकते हैं. इनमें से एक शहरों में रहने की बढ़ती लागत का संकट है. दूसरा शुरुआती कोविड दिनों के रिवर्स माइग्रेशन को मजबूत किया है. फिर, कारों के लोन ने भी ड्राइवरों के बोझ को बढ़ा दिया है. इससे कई ड्राइवरों ने अपनी कार बेच दिया है या लोन नहीं भरपाए हैं. कई ड्राइवर महामारी के दौरान अपने शहर चले गए फिर वापस नहीं लौटे.

ड्राइवर ले सकते हैं डिसीजन
कई बार ट्रिप एक्सेप्ट होने के बाद कैंसिल होने के पीछे ओला और उबर द्वारा ऐप में किए गया एक महत्वपूर्ण बदलाव है. इसमें ड्राइवर अब राइड रिक्वेस्ट आने पर डेस्टिनेशन और पेमेंट के तरीके को देख सकते हैं. ड्राइवर बताते हैं कि अब तय कर सकते हैं कि हमारे लिए क्या अच्छा है? ड्राइरों की प्राथमिकता अब लॉन्ग ट्रिप्स होती है, जिसमें उन्हें 200-300 रुपये या उससे भी ज्यादा मिल सकें.