राजस्थान में विधानसभा चुनाव अब ज्यादा दूर नहीं हैं। इसी बीच सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस में फिर उथल-पुथल दिखने लगी है। राज्य में साल 2018 से कांग्रेस सत्ता में काबिज है, लेकिन ‘सचिन पायलट वर्सेज अशोक गहलोत’ अंतर्कलह को अभी तक सही नहीं कर पाई।
राजस्थान में एक बार फिर से सचिन पायलट की ओर से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को घेरने का प्रयास शुरू किया गया है। राजस्थान में पायलट फैक्ट्रर को बहुत तवज्जो दी जाती रही है, जिसके चलते यह भी माना जाता रहा है कि गुर्जर समाज कांग्रेस की हार और जीत में बड़ा रोल निभाते रहे हैं। जानकारी और आंकड़ों के आधार पर वास्तविक स्थित बताती है कि साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशियों को कितना सहयोग रहा गुर्जरों का।
सचिन पायलट को मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने पर प्रदेश भर में गुर्जर नाराज हो रहे हैं और उनका सीधा एलान है कि अगले चुनाव में कांग्रेस को निपटा देंगे। जबकि हकीकत यह है कि उन्होंने साल 2018 विधानसभा चुनाव के बाद में हुए सभी उपचुनाव में कांग्रेस को निपटाने का ही काम किया है।
इन जिलों में गुर्जर समाज का बोलबाला…
भरतपुर, धौलपुर, अलवर, करौली, सवाई माधोपुर, दौसा, टोंक, भीलवाड़ा, अजमेर, झालावाड़, बारां और कोटा जिले में गुर्जर मतदाता हैं। वर्तमान में कांग्रेस विधायक दल में आठ विधायक गुर्जर समाज के हैं। इनमें डॉ. जितेंद्र सिंह, जोगिंदर सिंह अवाना, अशोक चांदना, शकुंतला रावत और राजेंद्र सिंह बिधूडी पहले भी जीत चुके हैं। अपने-अपने क्षेत्र में अच्छा दबदबा रखते हैं और इनकी जीत में सचिन पायलट का कोई योगदान नहीं है। ये लोग सचिन पायलट के साथ भी नहीं हैं। शेष तीन विधायकों में सचिन पायलट, जीआर खटाना और इंद्राज गुर्जर हैं। पायलट के बूते ही इन दोनों को टिकट मिला और विजय हासिल हुई। पायलट ने पांच अन्य गुर्जर प्रत्याशियों खानपुर से सुरेश गुर्जर और करौली से दर्शन गुर्जर नगर से मुरारी गुर्जर जहाजपुर से धीरज गुर्जर और नसीराबाद से राम नारायण गुर्जर को टिकट दिलाने की वकालत की थी और उनका प्रचार भी किया, लेकिन ये सभी हार गए।
इन विधानसभाओं में गुर्जर समाज की पकड़…
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धौलपुर जिले के बाड़ी में गुर्जर मतदाता अच्छी संख्या में हैं। लेकिन विधानसभा चुनाव में उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी की मदद नहीं की। इसी प्रकार भरतपुर जिले के नदबई और कामां में गुर्जर मतदाता कांग्रेस के खिलाफ गए कामां में बीजेपी के गुर्जर प्रत्याशी जवाहर गुर्जर को 70 हजार 726 वोट मिले। नगर में बीजेपी प्रत्याशी अनिता गुर्जर थीं, उन्हें 34 हजार 553 वोट मिले। कांग्रेस प्रत्याशी मुरारी गुर्ज को 31 हजार 257 वोट मिले।
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वहीं, झुंझुनू जिले में उदयपुरवाटी और खेतड़ी दोनों जगह कांग्रेसी प्रत्याशियों को गुर्जर समाज की अनदेखी झेलनी पड़ी। खेतड़ी में तो डॉ. जितेंद्र सिंह को गुर्जर होने के बावजूद गुर्जरों ने वोट नहीं दिया, यहां बीजेपी प्रत्याशी दाताराम गुर्जर को 55 हजार 532 वोट प्राप्त हुए थे।
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अलवर जिले के थानागाजी में निर्दलीय प्रत्याशी हेम सिंह भड़ाना सारे गुर्जरों के वोट ले गए। बानसूर में शकुंतला रावत कांग्रेस की प्रत्याशी थीं, वह अपने बूते दूसरी बार गुर्जरों सहित सभी जातियों के वोट लेकर जीतीं।
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जयपुर जिले के कोटपुतली में गुर्जरों का सबसे ज्यादा मत है। यहां दो गुर्जर प्रत्याशी रामस्वरूप कसाना और हंसराज गुर्जर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में लड़े और दोनों ने कुल मिला 54 हजार वोट लिए। यहां गुर्जर 45 हजार हैं। राजेंद्र यादव अन्य जातियों के सहयोग से विधायक बन गए।
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दूदू में सचिन पायलट ने बाबूलाल नागर का टिकट काटकर अन्य को दे दिया, जिनकी जमानत जब्त हो गई। जबकि यहां पर गुर्जर 30 हजार की संख्या में थे, जो सब बीजेपी के खाते में गए। सांगानेर में बड़ी संख्या में गुर्जर मतदाता हैं। सब बीजेपी के खाते में गए। जयपुर के चाकसू और निवाई सीट पर गुर्जरों का रूख कांग्रेस की तरफ था।
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अजमेर जिले में नसीराबाद गुर्जरों की सीट मानी जाती थी। यहां से गोविंद सिंह गुर्जर लंबे समय तक विधायक रहे, उनके भाई रामनारायण यहां से चुनाव हार गए। गुर्जर समाज ने उनको भी वोट नहीं दिया। पुष्कर में नसीम अख्तर चुनाव हार गईं, गुर्जरों ने वोट नहीं दिया।
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किशनगढ़ में पायलट ने नाथूराम सिनोदिया का टिकट काट के अन्य को दिया। गुर्जर वोट यहां निर्दलीय प्रत्याशी के खाते में चले गए और वह जीत गया। मसूदा में कांग्रेस का राकेश पारीक जीते, लेकिन गुर्जरों ने बीजेपी के पलाडा को वोट दिया।
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करौली जिले में करौली सीट पर गुर्जर मतदाता कांग्रेस के पक्ष में गए, परंतु कांग्रेसी विधायक गुर्जर गुर्जर होने के बावजूद भी रिपीट नहीं कर सके। टोडाभीम सीट पर कांग्रेस के पक्ष में गुर्जर एकतरफा रहे। इस सीट पर पिछले चुनाव में भी कांग्रेसी प्रत्याशी ने रिकॉर्ड जीत हासिल की थी।
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सवाई माधोपुर जिले की गंगापुर में बीजेपी के मानसिंह गुर्जर अपनी जाति के सारे वोट 48 हजार 224 ले गए। कांग्रेस प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई और कांग्रेस का बागी रामकेश मीणा जीत गया।
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दौसा जिले की महूआ सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी अजीत गुर्जर 19 हजार 519 गुर्जरों के वोट ले गए। सवाई माधोपुर में भी कांग्रेस को गुर्जरों ने वोट नहीं दिया।
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वहीं, टोंक जिले में सचिन पायलट टोंक से जीते। लेकिन गुजरों ने देवली उनियारा सीट पर बीजेपी के राजेंद्र गुर्जर को एक तरफा 73 हजार 454 वोट दिए।
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भीलवाड़ा जिले में आसींद सीट पर कांग्रेस के मनीष मेवाड़ा 215 वोट से हार गए। यहां गुर्जरों ने मनसुख गुर्जर को 41 हजार 961 वोट दे दिए। मांडल में मांडल सीट पर बीजेपी के कालू लाल गुर्जर 47 हजार 462 और निर्दलीय प्रत्याशी उदयलाल 23 हजार 119 गुर्जरों के वोट ले गए। जहाजपुर में कांग्रेस के धीरज गुर्जर पायलट के समर्थन के बावजूद अपनी जीत को रिपीट नहीं कर सके।
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बूंदी जिले में केशोरायपाटन और कोटा में रामगंज मंडी में गुर्जर मतदाता कांग्रेस के पूरी तरह से खिलाफ रहे। कोटा उत्तर में बीजेपी के पहलाद गुंजल 76 हजार 031 वोट ले गए।
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गुर्जर समाज झालावाड़ में भी कांग्रेस के खिलाफ रहा। खानपुर में कांग्रेस के सुरेश गुर्जर 82 हजार 999 वोट लेकर भी हार गए। पाली जिले के जैतारण में गुर्जर समाज ने पूरी तरह से कांग्रेस का विरोध किया। जहां गुर्जर कम संख्या में थे, वहां भी उनका रुझान पूर्वी राजस्थान में बीजेपी के पक्ष में रहा।
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बीजेपी के सभी गुर्जर प्रत्याशी चुनाव हार गए। लेकिन उन्होंने गुर्जरों के जबरदस्त वोट लिए। बीजेपी के गुर्जर सहित अन्य पार्टियों और निर्दलीय प्रत्याशियों ने लगभग सात लाख से ज्यादा गुर्जर मतदाताओं के वोट लिए।
उपचुनावों में खिलाफत की…
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नागौर जिले के खींवसर विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस उस क्षेत्र से हारी, जहां से वह आज तक नहीं हारी थी। वह क्षेत्र और वहां के बूथ गुर्जर बाहुल्य थे। भीलवाड़ा के सहाड़ा, चूरू जिले की सुजानगढ़ और राजसमंद की राजसमंद सीट पर गुर्जर समाज ने उपचुनाव में कांग्रेस को वोट नहीं दिए।
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गुर्जर मतदाताओं का प्रतिशत आमतौर पर बीजेपी ने 65 से 70 प्रतिशत माना जाता है। इनमें खास बात यह है कि अपनी जाति के प्रत्याशियों का यह विशेष ध्यान रखते हैं। कांग्रेस के पक्ष में गुर्जरों का प्रतिशत बहुत कम है। यह मतदाता अजमेर, भीलवाड़ा, चित्तौड़, राजसमंद और उदयपुर जिले के हैं।