कोलंबो. श्रीलंका इन दिनों आर्थिक संकट के साथ-साथ राजनीतिक संकट से जूझ रहा है. वर्तमान राजनीतिक स्थिति को लेकर श्रीलंका के लोगों में गहरा असंतोष है. राजनीतिक स्थिति को लेकर देश में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं. राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे देश छोड़ कर मालदीव भाग चुके हैं. प्रदर्शनकारियों ने अब प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को हटाने की मांग तेज कर दी है, लेकिन विक्रमसिंघे एक ऐसे नेता हैं, जो हर बार वापसी कर लोगों को सरप्राइज कर देते हैं. इस कारण श्रीलंका में लोग उन्हें दुनिया का आठवां अजूबा कहते हैं.
हर बार उनके समर्थक और विरोधियों को लगता है कि उनका राजनीतिक करियर समाप्त हो गया है. लेकिन वह उतने ही शानदार ढंग से वापसी करते हैं. हाल ही में देश के कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त किए गए प्रधानमंत्री हमेशा से इस पद की चाहत रखते थे. अतीत में वह एक बार राष्ट्रपति चुनाव हार चुके हैं. लेकिन पांच बार प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने में सफल रहे हैं.
लंबे समय तक रह चुके हैं मंत्री
विक्रमसिंघे श्रीलंका के मीडिया मुगल एसमंड विक्रमसिंघे के बेटे हैं. इसके साथ ही वह जे. जयवर्धने या जेआर के भतीजे हैं, जिन्हें अब तक का सबसे शक्तिशाली श्रीलंकाई राष्ट्रपति माना जाता है. वह श्रीलंका के सबसे प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान रॉयल कॉलेज ऑफ कोलंबो के छात्र रह चुके हैं. रानिल ने अपना पहला संसदीय चुनाव 1977 में जीता था. वह अपने चाचा जेआर और उनके उत्तराधिकारी रणसिंघे प्रेमदासा के मंत्रिमंडल में एक महत्वपूर्ण मंत्री के रूप में लंबे समय तक रहे. 1993 में राष्ट्रपति प्रेमदासा की हत्या के बाद श्रीलंका के प्रधानमंत्री बनाए गए.
रानिल विक्रमसिंघे प्रधानमंत्री का चुनाव एसएलएफपी नेता चंद्रिका भंडारनायके कुमारतुंगा (Chandrika Kumaratunga Bandaranaike) से हार गए थे. कुमारतुंगा 1994 में सत्ता में आए थे. ऐसे में रानिल को अगले पांच वर्षों के लिए विपक्ष में रहना पड़ा. साल 2000 में रानिल विक्रमसिंघे की पार्टी यूएनपी सरकार बनाने में कामयाब रही और वह चंद्रिका कुमारतुंगा के अंडर पीएम बने. दोनों के बीच संबंध असहज थे, जिस कारण उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया.
हाल के राजनीतिक संकट में वापसी करने में सफल रहेंगे?
हाल में राजनीतिक संकट के बाद महिंदा राजपक्षे ने मई में प्रधानमंत्री पद छोड़ दिया और रानिल फिर से प्रधानमंत्री बन गए. संसद में अपनी पार्टी के वे अकेले सांसद थे. गुस्साए लोगों ने उनके कार्यालय पर कब्जा कर लिया. राजपक्षे घराने के साथ बाहर निकलने की मांग के साथ, 73 वर्षीय नेता का भविष्य बहुत अंधकारमय दिख रहा है. क्या वह राजपक्षे की राह पर चलेंगे या एक बार और वापसी करने में सफल रहेंगे?