विवाहित व अविवाहित सभी महिलाओं को गर्भपात का अधिकार देने का फैसला महत्वपूर्ण क्यों?

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हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने देश की सभी महिलाओं को गर्भपात का अधिकार दे दिया. इस ऐतिहासिक फैसले में शीर्ष कोर्ट ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट के तहत 24 सप्ताह में गर्भपात का अधिकार सभी को है. इस अधिकार में महिला के विवाहित या अविवाहित होने से फर्क नहीं पड़ता. मतलब, सिंगल, लिव-इन और अविवाहित महिलाएं भी 24 हफ्ते के भीतर सुरक्षित गर्भपात करा सकती हैं.

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

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जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा, ‘अगर नियम 3बी(सी) को केवल विवाहित महिलाओं के लिए रखा जाता है तो यह इस स्टेरियोटाइप को कायम रखेगा कि केवल विवाहित महिलाएं ही यौन गतिविधियों में सक्रिय होती हैं. यह संवैधानिक रूप से टिकाऊ नहीं है. सिंगल या अविवाहित गर्भवती महिलाओं को 20-24 हफ्ते के बीच गर्भपात कराने से रोकना, जबकि विवाहित महिलाओं को गर्भपात की अनुमित देना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा. ऐसे में हर महिला को गर्भावस्था के 24 सप्ताह में उक्त कानून के तहत गर्भपात का अधिकारहै’

MTP एक्ट 2021 आखिर है क्या?

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मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (MTP) एक्ट के तहत विवाहित महिलाओं की विशेष श्रेणी, जिसमें दुष्कर्म पीड़िता व दिव्यांग और नाबालिग जैसी अन्य संवेदनशील महिलाओं के लिए गर्भपात की ऊपरी समय सीमा 24 सप्ताह थी, जबकि अविवाहित महिलाओं के लिए यही समय सीमा 20 सप्ताह थी. 29 सिंतबर 2022 को कोर्ट ने इसी अंतर को खत्म करने का आदेश दिया है.

हर महिला को गर्भपात का अधिकार

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सुप्रीम कोर्ट बेंच ने कहा कि विवाहित और अविवाहित महिलाओं के बीच कृत्रिम भेद को कायम नहीं रखा जा सकता है. अनुच्छेद 21 के तहत प्रजनन स्वायत्तता, गरिमा और निजता के अधिकार एक अविवाहित महिला को एक विवाहित महिला के समान बच्चे को जन्म देने या गर्भपात कराने का अधिकार देते हैं. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण बात कही. उन्होने कहा, women शब्द में cis-gender woman के अलावा दूसरे लोग भी शामिल हैं जो अपनी मर्जी से गर्भपात करा सकते हैं.

नाबालिगों के लिए गर्भपात के नियम

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सुप्रीम कोर्ट ने 18 साल से कम उम्र की लड़कियों के लिए गर्भपात की प्रक्रिया को आसान कर दिया है. कोर्ट ने कहा कि MTP एक्ट के तहत अगर नाबालिग बच्ची गर्भपात के लिए किसी डॉक्टर के पास जाती है तो पुलिस को नाबालिग की पहचान या डिटेल्स देना आवश्यक नहीं है. वहीं SC ने इस बात से भी इंकार नहीं किया कि POCSO एक्ट 2012 के तहत नाबालिग लोगों के बीच यौन संबंध को अपराध घोषित किया गया है.

एक्ट के तहत अगर किसी व्यक्ति को नाबालिगों के बीच यौन संबंध की जानकारी हो या यहां तक कि आशंका हो तो उसे पुलिस को रिपोर्ट करने की जरूरत है. ऐसा नहीं करना दंडनीय है. वहीं अगर नाबालिग बच्ची गर्भपात के लिए किसी डॉक्टर के पास जाती है तो डॉक्टर को अधिकारियों या पुलिस को सूचित करना होता है.

मैरिटल रेप को भी माना आधार

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सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से अब विवाहित महिलाओं के पास भी गर्भपात की अधिक पहुंच हो गई है. दरअसल Abortion Law में कहा गया है कि अगर विवाहित महिला कहती है कि उसके पति ने बिना सहमति के यौन संबंध बनाया है और वह गर्भवती हो गई है, तो वह MTP एक्ट के तहत Rape, Sexual Assault से पीड़ित मानी जाएगी, जिसके चलते वह 20 से 24 हफ्ते के भीतर अबॉर्शन कराने के लिए पात्र होगी.

वर्तमान में, भारतीय दंड संहिता 375 के तहत पति द्वारा अपनी पत्नी के साथ जबरन यौन संबंध बनाना बलात्कार के दायरे में नहीं आता है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गर्भपात के प्रयोजनों के लिए “Rape” या “Sexual Assault”  शब्द में मैरिटल रेप शामिल होगा. मैरिटल रेप के लिए औपचारिक कानूनी कार्यवाही या FIR की जरूरत नहीं होगी.

गौरतलब है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने मई में मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने वाली एक याचिका पर विभाजित फैसला सुनाया था. वहीं फरवरी 2023 में सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई करेगा.

गर्भपात का फैसला केवल महिला का होगा

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इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अक्सर डॉक्टर गर्भपात के लिए महिलाओं से कई तरह के सवाल-जवाब करते हैं और अप्रूवल की मांग करते हैं जिसके चलते कई बार महिलाएं अदालतों की तरफ रुख करती हैं या अनसेफ कंडीशन्स में अबॉर्शन कराती हैं. इसलिए अदालत ने कहा कि अब से गर्भपात पर फैसला लेते समय केवल महिला की सहमति ही जरूरी है.

बेंच ने आगे कहा कि मेंटल हेल्थ जैसे शब्दों को मेडिकल टर्म या मेडिकल भाषा तक सीमित नहीं रखना चाहिए बल्कि आम लोगों को इसके बारे में समझाना भी चाहिए.

भारत में गर्भपात को लेकर कानून

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1971 का मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 गर्भवती महिला को 20 हफ्ते तक गर्भपात कराने की इजाजत देता है. 2021 में हुए बदलाव के बाद ये सीमा कुछ विशेष परिस्थितियों में 24 हफ्ते कर दी गई. मतलब, अगर गर्भ 24 हफ्ते से ज्यादा का है तो पहले एबॉर्शन की अनुमति नहीं थी, पर नए कानून के तहत मेडिकल बोर्ड की रजामंदी पर ऐसा किया जा सकता. इसके लिए तीन कैटेगिरी बनाई गईं हैं.

पहली: गर्भावस्था के 0 से 20 हफ्ते तक: अगर कोई भी गर्भवती महिला गर्भपात करना चाहती है तो वह एक रजिस्टर्ड डॉक्टर की सलाह से ऐसा कर सकती है. भले वो महिला विवाहित हो या अविवाहित.

दूसरी: गर्भावस्था के 20 से 24 हफ्ते तक: अगर अनचाहा गर्भ ठहरा हो, अगर महिला आरोप लगाए कि दुष्कर्म की वजह से गर्भ ठहरा है. अगर भ्रूण में विकृति हो और इसका पता 24 हफ्ते बाद चले, या फिर गर्भवती महिला के जीवन को खतरा हो, या जन्म लेने वाले बच्चे को गंभीर शारीरिक या मानसिक विकलांगता का डर हो, तब वह महिला दो डॉक्टरों की सलाह पर गर्भपात करा सकेगी.

तीसरी: गर्भावस्था के 24 हफ्ते बाद: अगर भूर्ण अत्यधिक विकृत हो तो मेडिकल बोर्ड की सलाह पर 24 हफ्ते के बाद भी गर्भपात कराया जा सकता है.

गर्भपात अधिकार, एक वैश्विक मुद्दा

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गौरतलब है कि इस साल गर्भपात के अधिकार को लेकर दुनियाभर में बहस होती रही. वहीं अमेरिका में शुरू हुई Roe v. Wade की बहस में USA की सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात के अधिकार को कानूनी रूप से खत्म कर दिया. कोर्ट ने निर्देश दिया कि राज्य गर्भपात को लेकर अपने-अपने कानून बना सकते हैं. वहीं इस फैसले पर ना तो महिलाओं से राय ली गई और ना ही उनसे पूछा गया कि वे क्या चाहती हैं.

सेंटर फॉर रिप्रोडक्टिव राइट्स के मुताबिक, दुनियाभर 24 देशों में गर्भपात कराना गैर-कानूनी है. जिन देशों में गर्भपात पर प्रतिबंध है उनमें सेनेगल, मॉरिटेनिया, मिस्र, लाओस, फिलीपींस, अल सल्वाडोर, होंडुरास, पोलैंड और माल्टा जैसे देश शामिल हैं. वहीं, करीब 50 देश ऐसे हैं जहां कई सख्त शर्तों के साथ गर्भपात की अनुमित होती है. लीबिया, इंडोनेशिया, ईरान, वेनेजुएला, नाइजीरिया जैसे देश गर्भवती महिला के स्वास्थ्य को खतरा होने पर गर्भपात की अनुमति देते हैं. वहीं, यूरोप के ज्यादातर देशों में गर्भधारण के 12-14 हफ्ते तक गर्भपात की अनुमति है.