हैदराबाद में भारतीय जनता पार्टी की दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक हुई। रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बैठक को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने हैदराबाद को भाग्यनगर कहकर पुकारा। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘भाग्यनगर में ही सरदार पटेल ने ‘एक भारत’ दिया था।’ प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद कहा जा रहा है कि जल्द ही हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर किया जा सकता है। ऐसा भी नहीं है कि पहली बार किसी ने हैदराबाद को भाग्यनगर कहकर पुकारा गया है। इसके पहले भी भाजपा, आरएसएस और विहिप के कई नेता हैदराबाद को भाग्यनगर बोल चुके हैं। 2020 में हैदराबाद नगर निगम चुनाव के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हैदराबाद को भाग्यनगर कहा था। तब भाजपा ने वादा भी किया था कि अगर वह चुनाव जीतते हैं तो हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर कर दिया जाएगा।
ऐसे में सवाल है कि क्या सच में हैदराबाद का पुराना नाम भाग्यनगर है? इसका इतिहास क्या है? अगर भाग्यनगर था तो इसका नाम हैदराबाद कैसे पड़ गया? आइए जानते हैं…
1816 में ब्रिटिश नागरिक ऐरॉन एरो स्मिथ ने हैदराबाद का एक नक्शा तैयार किया था। उस नक्शे में हैदराबाद का नाम मोटे अक्षरों में लिखा था, उसके नीचे भाग्यनगर और गोलकुंडा भी लिखा गया था। यानी, पहले इस शहर को हैदराबाद के साथ-साथ गोलकुंडा और भाग्यनगर भी कहा जाता था। यह नक्शा नानीशेट्टी शिरीष की किताब ‘गोलकुंडा, हैदराबाद और भाग्यनगर’ में भी प्रकाशित किया गया है।
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हमने इसको लेकर इतिहासकार प्रो. संजय चौहान से बात की। उन्होंने कहा, ‘भारत का इतिहास कई हजार साल पुराना है। सनातन संस्कृति और सभ्यता से ही हम सभी आगे बढ़े हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश के कई शहरों और स्थलों का नाम बाहर से आए मुस्लिम शासकों ने बदल दिया। ज्यादातर के पुराने नाम इतिहास से भी मिटाने की कोशिश की गई। भाग्यनगर भी इसी का हिस्सा है।’
प्रो. संजय आगे कहते हैं, भाग्यनगर का नाम कैसे पड़ा इसको लेकर तीन-चार तर्क दिए जा सकते हैं। सबके अपने अलग दावे हैं।
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हैदराबाद का भाग्यलक्ष्मी मंदिर काफी प्रसिद्ध है। मंदिर के पुजारियों का दावा है कि ये मंदिर करीब 800 साल पुराना है। चारमीनार से सटे इस मंदिर में चार पीढ़ियों से पूजा करते आ रहे पुजारी के अनुसार मंदिर के स्थान पर पहले एक पत्थर हुआ करता था जिसपर देवी की तस्वीर थी और देवी की पूजा 800 साल से होती आ रही है।
भाग्यलक्ष्मी मंदिर के बाहर से ही देवी के चरणों में चांदी के दो आभूषण दिखाई देते हैं, जिनके पीछे उस पत्थर की झलक भी दिखती थी, लेकिन वह अब टूट गया है और टूटे पत्थरों की पूजा नहीं की जाती है, इसलिए वहां एक तस्वीर रख दी गई थी और बाद में देवी की प्रतिमा प्रतिष्ठित की गई। सिकंदराबाद के भाजपा सांसद और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी दावा करते हैं कि भाग्यलक्ष्मी मंदिर का इतिहास चार मीनार से भी पुराना है जिसका निर्माण 1591 में शुरू हुआ था।
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एक तर्क ये भी सामने आया है। सलारजंग म्यूजियम की ओर से प्रकाशित एक शोध आलेख में भी इसका जिक्र है। इतिहासकार नरेंद्र लूथर ने 1992- 93 में छपी अपनी किताब ‘ऑन द हिस्ट्री ऑफ भाग्यमती’ में भी इसके बारे में बताया है।
इतिहासकार मोहम्मद कासिम फिरिस्ता की पुस्तक में बताया गया है कि उस दौरान हैदराबाद के सुल्तान भाग्यमति नाम की एक महिला को पसंद करने लगे थे। इसलिए पहले उन्होंने शहर का नाम भाग्यनगर और बाद में उसे हैदराबाद कर दिया।
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कई लोगों का दावा है कि भाग्यनगर एक भाग्यमति नाम की महिला से पड़ा। इसको लेकर अलग-अलग दावे भी किए जाते हैं। कहा जाता है कि कुतुबशाही वंश के पांचवें राजा मोहम्मद कुली एक हिंदू लड़की भाग्यमति से प्यार करते थे। भाग्यमति चनचलम नामक गांव में रहती थी। इसी गांव में मौजूदा चारमीनार खड़ा है। मोहम्मद कुली भाग्यमति से मिलने के लिए गोलकुंडा से नदी पार करके आते थे।
उनकी यात्राओं को देखते हुए उनके पिता इब्राहिम ने मूसी नदी पर 1578 में एक पुल भी बनवा दिया। 1580 में कुली ने भाग्यमति से शादी की और भाग्यमति का नाम बदलकर हैदर महल कर दिया। इस कहानी में विचित्र पहलू यह है कि जब पुल का निर्माण हुआ तब मोहम्मद कुली महज 13 साल के थे। इससे पुल का निर्माण कुली के लिए करने की बात सही नहीं लगती। उनके भाग्यमति से प्यार और नदी पर पुल का कोई आपसी संबंध नहीं है।
इतिहासकारों के मुताबिक पुल का निर्माण गोलकुंडा किले को इब्राहिमपट्नम से जोड़ने के लिए किया गया था लेकिन किसी तरह का इसका नाम दोनों के प्यार से जुड़ गया।
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डच यात्री डेनियल हावॉर्ड ने 1692 में अपने किताब में शहर के नाम के बारे में जिक्र किया है। इसके मुताबिक, ‘ शहर का नाम पहले गोलकुंडा था। इसके चार दरवाजे हैं। इसमें फतेह दरवाजा पहले भाग्यनगर दरवाजा कहा जाता था। बाद में शहर का नाम गोलकुंडा से भाग्यनगर और फिर हैदराबाद हो गया।’
- 1687 में छपी पुस्तक ‘द ट्रैवल्स इन टू द लिवेंट’ में डच अधिकारी जीन डे थेवनॉट ने लिखा था, ‘सल्तनत की राजधानी भाग्यनगर थी। ईरानी लोग इसे हैदराबाद कहते थे।’
- 1627 के एक आधिकारिक दस्तावेज में शहर के नाम के रूप में भाग्यनगर अंकित है।
- एक तर्क ये भी है कि हैदराबाद 1591 में बना। 1596 में इसका नाम ‘फरखुंडा बुनियाद’ रखा गया था। फरखुंडा बुनियाद फारसी शब्द है। इसका मतलब ‘लकी सिटी’ यानी भाग्यनगर होता है। इस तरह से इसे भाग्यनगर कहा जाने लगा।
- कुछ लोगों की दलील है कि संस्कृत शब्द भाग्य का इस्तेमाल फरखुंडा बुनियाद के लिए किया जाने लगा और इसी वजह फारसी नाम से संस्कृत-तेलुगू में भाग्य नगरम प्रचलन में आया।