45 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने बेहद महत्वपूर्ण व्यवस्था दी थी कि ‘जमानत नियम है और जेल अपवाद’. इसके बावजूद आपराधिक मामलों में जमानत की दुरूह प्रक्रिया को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया फैसले में सरकार को जमानत प्रकिया उदार बनाने के लिए नया कानून बनाने की सलाह दी है. कोर्ट का कहना था कि लोकतंत्र में ऐसी छवि नहीं बनने दी जा सकती कि यहां पर पुलिस का राज चलता है.
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सरकार को एक बेहद महत्वपूर्ण सुझाव दिया. कोर्ट ने भारत की जेलों में विचाराधीन कैदियों की भरमार को देखते सरकार से कहा कि उसे आपराधिक मामलों में जमानत का नया कानून बनाने पर विचार करना चाहिए क्योंकि बेल की प्रक्रिया में सुधार की ‘अत्यधिक आवश्यकता’ है. 45 साल पहले सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी थी कि ‘जमानत नियम है और जेल अपवाद’. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आजादी से पहले अंग्रेजों ने जो कानून बनाया था, हम थोड़े-बहुत संशोधनों के साथ उसी को ढो रहे हैं. आइए जानते हैं कि सर्वोच्च अदालत को नया जमानत कानून बनाने का सुझाव देने की जरूरत क्यों पड़ी, हमारे कानून में जमानत पर क्या कहा गया है, और सुप्रीम कोर्ट ने यूके के जिस बेल एक्ट से सीख लेने की सलाह दी, उसमें ऐसा क्या खास है.
नए कानून की जरूरत
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भारत की जेलों में विचाराधीन कैदियों की भरमार है. आंकड़ों को देखें तो कुल कैदियों में दो-तिहाई से ज्यादा ऐसे कैदी हैं, जो अपने मुकदमों की सुनवाई का इंतजार करते हुए जेल में बंद हैं. बहुत से कैदियों की जमानत अर्जियां कानूनी पचड़ों की वजह से महीनों तक लटकी रहती हैं.
पुलिस राज का खतरा
सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि जेलों में बंद कैदियों में काफी सारे ऐसे हैं, जिनकी गिरफ्तारी की असल में जरूरत भी नहीं थी. किसी कैदी का बरी होने से पहले लगातार हिरासत में रहना उसके प्रति ‘गंभीर अन्याय’ है. लोकतंत्र में ऐसी छवि नहीं बनने दी जा सकती कि यहां पर पुलिस का राज चलता है.