‘धोबी घाट’ 13 दिसंबर को प्रसारित हुए ‘कौन बनेगा करोड़पति के शो में इस एक नाम की खूब चर्चा हुई. दरअसल ये नाम एक सवाल में लिया गया था. अब ऐसा नाम तो कहीं ना कहीं भारत से ही जुड़ा हो सकता है लेकिन हैरानी की बात ये रही कि प्रश्न के लिए दिए गए ऑप्शन्स में कहीं भी भारत या यहां के किसी शहर का नाम नहीं था.
केबीसी में पूछा गया था ये सवाल
सोमवार को प्रसारित हुए केबीसी के एक एपिसोड में एक सवाल कुछ इस तरह से पूछा गया कि किस शहर के मेट्रो रेल सिस्टम में लिटिल इंडिया, चाइना टाइम, कैशयू (काजू) और धोबी घाट नाम के स्टेशन हैं” इसके लिए चार विकल्प कुछ इस तरफ थे क्वालालाम्पुर, हॉन्गकॉन्ग, सिंगापुर और बैंकॉक. अब इस सवाल में भारत से जुड़ा धोबी घाट भी था और चाइना से जुड़ा चाइना टाइम भी लेकिन विकल्प में नया तो भारत और नया ही चीन के किसी शहर का नाम था. दरअसल धोबी घाट सहित ये चारों स्टेशन सिंगापुर में स्थित हैं. इस स्टेशन की कहानी भी बहुत रोचक है.
कैसे पड़ा धोबी घाट नाम
ये सवाल सुनने के बाद बहुत से लोगों के दिमाग में ये बात आई होगी कि आखिर किसी विदेशी मुल्क में भारत से जुड़ा ये नाम क्यों रखा जाएगा ? अगर आपने भी इस सवाल के बारे में काफी सोचा है तो इसका जवाब जान लीजिए. दरअसल सिंगापुर के इस स्टेशन का नाम धोबी समुदाय की वजह से ही प्रचलित हुआ. यह 19वीं सदी की शुरुआत में सन 1819 में पहली बार धोबी सिंगापुर पहुंचे. इन धोबियों को अंग्रेज भारतीय सिपाहियों के साथ सिंगापुर लाए थे. अंग्रेजों की जरूरतों को पूरा करने के साथ साथ उन्होंने सिंगापुर के लोगों के लिए भी सेवाएं देनी शुरू कर दीं. कहा जाता है कि उन्होंने इस देश के लोगों की इतने मन से सेवा की कि सिंगापुर के लोग इसने बहुत ज्यादा प्रभावित हो गए. उन्हें इतना प्रभावित अन्य किसी सेवा ने नहीं किया था.
इसी इलाके में रहते थे धोबी
मास रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम के तहत सिंगापुर में अंडरग्राउंड स्टेशन के निर्माण के दौरान 1987 में एक स्टेशन नाम धोबी घाट रखा गया. एक रिपोर्ट के अनुसार धोबी घाट नामक इलकेको सिंगापुर की विरासत के तौर पर जाना जाता है. ये इलाका एक प्रमुख व्यवसायिक समुदाय के इलाके के रूप में जाना गया. सिंगापुर नेशनल यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर और इंडियन्स इन सिंगापुर के लेखक राजेश राय के अनुसार शुरुआत में भारत से आए धोबी साफ पानी की नदी के पास रहते थे, इसी वजह से आज इसे धोबी घाट एमआरटी स्टेशन कहा जाता है.
बिहार उत्तर प्रदेश और मद्रास से आए थे धोबी
सुंगेइ बेरास बाशा नामक इस छोटी सी नदी का मलय भाषा में अर्थ होता है ‘गीले चावल की नदी’. इसे इस तरह का नाम इस लिए दिया गया क्योंकि नाव द्वारा इस नदी के किनारे तक गीले चावल लाए जाते थे और फिर उन्हें सुखाया जाता था. इसी नदी के किनारे सिंगापुर के धोबी रहते और अपना काम करते. हालांकि अब यहां नदी मौजूद नहीं है लेकिन यह इलाका सिंगापुर के ब्रिटिश संस्थापक थॉनमस स्टैमफोर्ड रैफल्स के नाम पर स्टैमफोर्ड नहर के रूप से जाना जाता है.
अंग्रेज जिन धोबियों को सिंगापुर ले गए थे वे बिहार व उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे. इनके अलावा काफी संख्या मद्रास से आए धोबियों की भी थी. यही वजह थी कि इसे धोबी समुदाय का नाम दिया गया और तमिल में इस इलाके को वानन थेरुवु के नाम से भी जाना गया. आज यह इलाका ऑर्चर्ड रोड पर शॉपिंग डिस्ट्रिक्ट का हिस्सा है.
धोबी समुदाय के नाम पर जिस इलाके का नाम रखा गया वहां अब कोई धोबी घाट नहीं है लेकिन ये नाम आज भी है जिसे धोबी घाट मैट्रो स्टेशन के नाम से जाना जाता है.