क्या बोरिस जॉनसन का रवैया ऋषि सुनक को PM की कुर्सी दिलवाएगा?

लंदन. ब्रिटेन में इन दिनों सियासी हलचल मचा है. ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने सोमवार को कहा कि किसी उम्मीदवार को अपना समर्थन देकर उनकी संभावना को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते. जॉनसन का शायद ही मतलब रहा हो कि उनके द्वारा किसी उम्मीदवार की पैरवी का मतलब है कि अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना.

वेस्टमिनिस्टर में तब संदेह की स्थिति पैदा हो गई, जब सार्वजनिक और निजी तौर पर ये बातें कही गई. जॉनसन से ये उम्मीद कतई नहीं की जा रही है कि वो 5 सितंबर को कन्ज़रवेटिव पार्टी के नए नेता और प्रधानमंत्री की घोषणा से पहले हो रही उम्मीदवारों की टक्कर के मूक दर्शक बने रहेंगे.

अब तक घोषित उम्मीदवारों में विदेश सचिव लिज़ ट्रूस को जबरदस्त समर्थन मिलने की संभावना है, क्योंकि उन्होंने पिछले उथल-पुथल भरे महीनों में जॉनसन का दृढ़ता के साथ समर्थन किया. हालांकि, इसमें भी एक पेंच है. उनकी मंशा लिज़ को समर्थन करने से ज्यादा ऋषि सुनक को प्रधानमंत्री की उम्मीदवारी से बाहर रखना है. बोरिस जॉनसन के कार्यालय से ऐसा ही संकेत मिले हैं.

जिस दिन सुनक ने अपनी उम्मीदवारी की घोषणी थी, उसी दिन जॉनसन के कार्यालय से एक बयान जारी किया गया. इसमें मीडिया से कहा गया कि सुनक एक विश्वासघाती हैं. इसके अलावा फाइनेंशियल टाइम्स में भी जॉनसन कैबिनेट के एक वरिष्ठ मंत्री ने ऋषि सुनक के लिए विश्वासघात शब्द का इस्तेमाल किया था.

बोरिस जॉनसन के कार्यालय का कहना है कि जॉनसन ने चांसलर के अपने कार्यकाल के दौरान सुनक का पूरा समर्थन किया. उसके बाद भी उन्होंनें पीठ में छुरा घोंपा है.

नीति और सिद्धांत

ऋषि सुनक ने अपना इस्तीफा सिद्धांतों और नीतियों को लेकर मतभेद के चलते दिया था. इसके अलावा पार्टीगेट मामले में उनकी नाराजगी और पूर्व डिप्टी पार्टी व्हिप क्रिस पिंचर के साथ उनका विवाद भी इसका एक अहम कारण रहा. जिन्होंने क्लब में शराब के नशे में दो पुरुषों के साथ बदतमीजी की थी.

सबसे बड़ी परेशानी जॉनसन के लिए यह है कि वह यह साबित नहीं कर पाए कि इस सांसद को नियुक्त करने में गलती हुई. साथ ही यह कहना कि उन्हें पिंचर के यौन मामले में लिप्त होने की जानकारी नहीं थी. सुनक का इस्तीफा इन सभी बातों के परे चला गया.

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उन्होंने कहा कि जनता सरकार से गंभीर, सक्षम और सुचारू काम की उम्मीद रखती हे. जॉनसन जिस तरह से सरकार चला रहे थे. इसमें कोई शंका नहीं कि उनके तरीके से न सिर्फ पार्टी के भीतरी लोग बल्कि जनता भी आजिज आ चुकी थी. लेकिन ऐसा कोई भी आरोप नहीं था, जिसे लेकर जॉनसन ने कभी गंभीरता से विचार भी किया हो.

प्रधानमंत्री से मतभेद

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इसके अलावा सुनक ने नीतियों को लेकर प्रधानमंत्री से मतभेद जताए. खासतौर पर भारी कर कटौती के मामले में जॉनसन की राय के विरोध में उन्होनें अपने अलग विचार की वजह से इस्तीफा दिया. सुनक ने अपने इस्तीफे में लिखा कि हमारे दृष्टिकोण मौलिक रूप से बहुत अलग हैं.

सुनक के अभियान से जुड़े हुए जो वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किये गए, उसमें भी जॉनसन का मजाक उड़ाने और आलोचना के आरोप लगाए गए. उन्होंनें कहा कि जॉनसन जो परियों की कथा सुनाने में लगे हुए हैं, उससे कुछ भला नहीं होना है. उन्होंनें कहा कि ऐसा लगता है कि जैसे जॉनसन खुद किसी फंतासी कथाओं में जी रहे हैं.

जॉनसन को अभी कितना समर्थन

कई लोगों के बीच कुछ सवाल अभी बगैर जवाब के घूम रहे हैं कि बोरिस जॉनसन को अभी भी कितना समर्थन मिल सकता है. उन्होंने 7 जून को अविश्वास प्रस्ताव को 211 मतों के मुकाबले 148 मतों से जीत लिया था. उस समर्थन की दीवार का अधिकांश हिस्सा पिंचर खुलासे के बाद गिर गया, लेकिन ऐसा नहीं है कि उन्हें अभी से पूरी तरह से गायब हुआ मान लिया जाए या दौड़ से बाहर समझ लिया जाए.

बोरिस के लिए सुनक के खिलाफ चुपके चुपके किया गया अभियान उनके लिए बड़ा खतरा साबित हो सकता है. वैसे ज्यादा सांसदों ने सुनक के समर्थन में अपनी आवाज बुलंद की है. सट्टेबाजों ने भी उन्हें ही पहली पसंद के तौर पर रखा है.

हालांकि, अभी मामला पूरी तरह से मैदान में नहीं आया है, एक बार खेल में गंभीरता आई, जिसके जल्दी आने की संभावना है. फिर असली चेहरे और सामने आएंगी. यही वह वक्त होगा जब सुनक को अपने प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ अपना झंडा बुलंद करना होगा.