क्या ईसाई-मुस्लिम धर्म अपनाने वाले दलितों को मिल जाएगा SC कोटा, क्यों उठा मुद्दा, किसे फायदा? जानिए हर जरूरी सवाल के जवाब

क्रिश्चियानिटी और इस्लाम सैद्धांतिक तौर पर जाति व्यवस्था खिलाफ रही हैं। यही वजह है कि अगर कोई दलित धर्म परिवर्तन करके ईसाई या मुस्लिम बनता है तो उसे आरक्षण का लाभ नहीं मिलता। लेकिन ये मांग तेज हो रही है। केंद्र ने पूर्व सीजेआई केजी बालकृष्णन की अगुआई में एक आयोग बनाया है जो इस पर विचार करेगा।

नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश के. जी. बालकृष्णन की अध्यक्षता में एक आयोग गठित किया है। यह आयोग उन लोगों को अनुसूचित जाति (एससी) का दर्जा देने के मामले का परीक्षण करेगा, जिनका ऐतिहासिक रूप से अनुसूचित जाति से संबंध है, लेकिन जिन्होंने किसी अन्य धर्म को अपना लिया है। संविधान (एससी) आदेश, 1950 कहता है कि हिंदू या सिख धर्म या बौद्ध धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म को मानने वाले व्यक्ति को अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जा सकता है। हालांकि, मुस्लिम और ईसाई समूहों ने अक्सर उन दलितों के लिए समान स्थिति की मांग की है जिन्होंने उनका धर्म अपना लिया है:

  1. आयोग बनाने के पीछे सरकार की मंशा क्या है?

    इससे जुड़ा मामला सुप्रीम कोर्ट में है और केंद्र सरकार को अगले कुछ दिनों में अपना स्टैंड बताना था। चूंकि सरकार इस मामले पर बहुत हड़बड़ी नहीं करना चाहती है, ऐसे में वह कमिटी बनाकर सुप्रीम कोर्ट को बता सकती है कि वह मामले पर अध्ययन कर अपनी राय देगी। इस कमिटी का कार्यकाल दो साल दिया गया है। मतलब तब तक 2024 का आम चुनाव बीत चुका होगा। दरअसल, पिछले कई वर्षों से यह मामला उठता रहा है और हर सरकार इसमें संभावित विवाद को देखते हुए टालने के मोड में रही है।

  2. संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 क्या कहता है?

    संविधान (एससी) आदेश, 1950 (समय-समय पर संशोधित) के तहत अनुसूचित जाति (एसी) का दर्जा सिर्फ हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म मानने वाले व्यक्ति को मिलता है। पहले तो सिर्फ हिंदू धर्म को ऐसा दर्जा मिलता था। बाद में इसमें सिख और बौद्ध धर्म को इसमें जोड़ा गया था।

  3. क्या अचानक उठा मुद्दा?

    यह मुद्दा अचानक नहीं उठा है। पिछले डेढ़ दशक से भी अधिक समय से सुप्रीम कोर्ट में यह मामला चल रहा है। एक बार यूपीए सरकार भी कमिटी बनाकर अध्ययन कर चुकी है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक बार सरकार से उनका रुख जाना है।

  4. किन्हें होगा फायदा?

    अगर धर्म बदलने वाले दलितों को एसी का दर्जा दिए जाने की अनुशंसा होती है तो इसका लाभ दलित ईसाई और दलित मुस्लिमों को मिलेगा। अभी तक ये लोग इससे बाहर हैं। हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म को शामिल करने के बाद मुस्लिम-ईसाई धर्म के प्रतिनिधि इस कानून में संशोधन की मांग करते रहे हैं। पिछली सरकारों ने भी इस मांग पर विचार के लिए अलग-अलग समय में कमिटी बनाई लेकिन कभी इसपर सहमति नहीं हो सकी।

  5. बीजेपी क्यों करती है मांग का विरोध?

    बीजेपी ने हमेशा इस मांग का विरोध किया है। वह एससी कोटे में दलित मुस्लिम और दलित ईसाईयों को शामिल करने के विरोध में रही है। हालांकि पार्टी ने आधिकारिक रूप से इस मामले पर कुछ नहीं कभी कुछ नहीं बोला है। लेकिन पार्टी का मानना है कि इससे धर्म परिवर्तन और तेजी से बढ़ेगा, जिसके वह खिलाफ रही है।

  6. आयोग बनाने के पीछे सरकार की मंशा क्या है?

    इससे जुड़ा मामला सुप्रीम कोर्ट में है और केंद्र सरकार को अगले कुछ दिनों में अपना स्टैंड बताना था। चूंकि सरकार इस मामले पर बहुत हड़बड़ी नहीं करना चाहती है, ऐसे में वह कमिटी बनाकर सुप्रीम कोर्ट को बता सकती है कि वह मामले पर अध्ययन कर अपनी राय देगी। इस कमिटी का कार्यकाल दो साल दिया गया है। मतलब तब तक 2024 का आम चुनाव बीत चुका होगा। दरअसल, पिछले कई वर्षों से यह मामला उठता रहा है और हर सरकार इसमें संभावित विवाद को देखते हुए टालने के मोड में रही है।

  7. संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 क्या कहता है?

    संविधान (एससी) आदेश, 1950 (समय-समय पर संशोधित) के तहत अनुसूचित जाति (एसी) का दर्जा सिर्फ हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म मानने वाले व्यक्ति को मिलता है। पहले तो सिर्फ हिंदू धर्म को ऐसा दर्जा मिलता था। बाद में इसमें सिख और बौद्ध धर्म को इसमें जोड़ा गया था।

  8. क्या अचानक उठा मुद्दा?

    यह मुद्दा अचानक नहीं उठा है। पिछले डेढ़ दशक से भी अधिक समय से सुप्रीम कोर्ट में यह मामला चल रहा है। एक बार यूपीए सरकार भी कमिटी बनाकर अध्ययन कर चुकी है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एक बार सरकार से उनका रुख जाना है।

  9. किन्हें होगा फायदा?

    अगर धर्म बदलने वाले दलितों को एसी का दर्जा दिए जाने की अनुशंसा होती है तो इसका लाभ दलित ईसाई और दलित मुस्लिमों को मिलेगा। अभी तक ये लोग इससे बाहर हैं। हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म को शामिल करने के बाद मुस्लिम-ईसाई धर्म के प्रतिनिधि इस कानून में संशोधन की मांग करते रहे हैं। पिछली सरकारों ने भी इस मांग पर विचार के लिए अलग-अलग समय में कमिटी बनाई लेकिन कभी इसपर सहमति नहीं हो सकी।

  10. बीजेपी क्यों करती है मांग का विरोध?

    बीजेपी ने हमेशा इस मांग का विरोध किया है। वह एससी कोटे में दलित मुस्लिम और दलित ईसाईयों को शामिल करने के विरोध में रही है। हालांकि पार्टी ने आधिकारिक रूप से इस मामले पर कुछ नहीं कभी कुछ नहीं बोला है। लेकिन पार्टी का मानना है कि इससे धर्म परिवर्तन और तेजी से बढ़ेगा, जिसके वह खिलाफ रही है।

  11. किसको कितना आरक्षण, क्या पहले की सरकारों के सामने भी आया ये मुद्दा?

    एससी समुदाय के लिए मिलने वाली सुविधाओं में केंद्र सरकार की नौकरियों में सीधी भर्ती के लिए 15 प्रतिशत आरक्षण, एसटी के लिए 7.5 प्रतिशत आरक्षण और ओबीसी के लिए 17 प्रतिशत कोटा है। ईसाई या इस्लाम अपनाने वाले दलितों के लिए एससी रिजर्वेशन का सवाल पहले की सरकारों के सामने भी आया है।