COP 27 Egypt: मिस्र में COP 27 की बैठक 6 नवंबर से शुरू होगी। इसमें धरती को बचाने से जुड़े उपाय और जलवायु परिवर्तन के हालातों पर चर्चा होगी। इससे पहले कोयले पर निर्भरता को कम करने के लिए G7 देशों ने भारत से जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप में शामिल होने का आग्रह किया है।
डॉ. सीमा जावेद , काहिरा: G7 देशों ने भारत को जस्ट एनर्जी ट्रांजिशन पार्टनरशिप (JETP) में शामिल होने का आग्रह किया है, ताकि भारत में क्लीन एनर्जी परियोजनाओं की तेजी से तैनाती की जा सके। संभवतः इससे कोयले पर देश की निर्भरता भी कम होगी। JETP में शामिल कर दक्षिण अफ्रीका के कोयला उद्योग को बंद कर उसे 8.5 बिलियन डॉलर की पेशकश की गई है। लेकिन भारत के साथ इस मामले पर बातचीत आगे नहीं बढ़ सकी है। भारत ने अभी इस मामले में कोई भी जवाब नहीं दिया है।
अब कुछ ही दिनों में (6 नवम्बर से) दुनिया के नीति निर्माता मिस्र के शर्म अल शेख में संयुक्त राष्ट्र के अगले जलवायु शिखर सम्मेलन COP 27, में एकजुट होकर पृथ्वी पर जलवायु कार्यवाही के लिए कुछ अहम फैसले लेंगे। लेकिन उससे पहले के फैसलों में कोई बढ़त देखने को नहीं मिल रही है।
गौरतलब है कि नवंबर 2021 में ग्लासगो में आयोजित COP 26 में तय हुआ था कि 2030 तक विकसित देश और 2040 तक विकासशील देश कोयले का इस्तेमाल बंद कर देंगे। इसके बाद थर्मल पॉवर यानी कोयले वाली बिजली नहीं बनेगी। भारत-चीन राजी नहीं थे मगर 40 देशों ने कोयले से तौबा कर ली।
कोयले वाली परियोजनाओं की फंडिंग बंद
दुनिया के बीस देशों ने यह भी तय किया कि 2022 के अंत से कोयले से बिजली वाली परियोजनाओं को वित्त पोषण यानी कर्ज देना बंद हो जाएगा। नई खदानों पर काम रुक गया। एंग्लो ऑस्ट्रेलियाई माइनिंग दिग्गज रिओ टिंटो ने ऑस्ट्रेलिया की कोयला खदान में अपनी 80 फीसदी हिस्सेदारी बेच दी। वैश्विक मीडिया में चल रही खबरों की मानें तो G7 की वियतनाम और इंडोनेशिया के साथ चर्चा उस बिंदु तक आगे बढ़ गई है, जहां JETP के लिए लगभग $5 बिलियन और $10 बिलियन की प्रारंभिक नकद पेशकश की गई है।
भारत की कोयले पर निर्भरता हो रही कम
हालांकि तमाम अड़चनों के बावजूद भारत ने गैर-जीवाश्म स्रोतों पर 40 फीसद ऊर्जा-निर्भरता लक्षित समय से लगभग एक साल पहले ही हासिल कर ली है। यह तब है जब दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी अकेले भारत में रहती और दुनिया मे हो रहे कुल कार्बन उत्सर्जन में भारत का योगदान महज 5 फीसद है।
क्या कहते हैं शोध
प्रतिष्ठित पत्रिका नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक नए शोध लेख से पता चलता है कि भारत 2050 तक अपने बिजली क्षेत्र को कोयले से अक्षय ऊर्जा की ओर तेजी से बढ़ता है तो अपनी बिजली की लागत में 46% की कटौती कर सकता है। यह अध्ययन लप्पीनरांता-लाहटी यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी (LUT) के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। इस अध्ययन के अनुसार, कुछ प्रमुख भारतीय राज्यों में 2035 तक 100 फीसदी सतत ऊर्जा उत्पादन हो सकती है।
इतना ही नहीं, इसमें पाया गया है कि कुछ कोयला निर्भर राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र गुजरात, झारखंड 2040 तक कोयले को समाप्त कर सकते हैं। कोयले की तुलना में सौर और पवन ऊर्जा की लागत में काफी गिरावट आई है और 2050 तक 50 से 60 फीसदी और गिरने की उम्मीद है। जबकि कोयले से बिजली की प्रति मेगावाट लागत 70 फीसदी बढ़ने की उम्मीद है।
संयुक्त राष्ट्र का रुख
अपनी हाल की भारत यात्रा में और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की एमिशन गैप रिपोर्ट के शुभारंभ के दौरान संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने G7 के कोयले वाली बिजली को खत्म करने के प्रस्ताव का कई बार उल्लेख किया। उसके बाद, एमिशन्स गैप रिपोर्ट को लॉन्च करते हुए उन्होंने अपना रुख दोहराया और भारत की भूमिका पर रोशनी डाली।
क्या है बड़ा सवाल
बड़ा सवाल ये है कि क्या भारत को इस साझेदारी में शामिल होने के लिए कोयले की खपत कम करने की शर्त को स्वीकार करना चाहिए या नही? भारत में कोयला आधारित विकास प्रणाली में परिवर्तन के लिए अतिरिक्त पूंजीगत प्रवाह की आवश्यकता है। वास्तव में, भारत की कोयले पर निर्भरता को कम करना इस बात पर निर्भर करेगा कि वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों में अतिरिक्त धन और संसाधन का कितना निवेश किया जा रहा है। इसके लिए कितना जलवायु वित्त फंड भारत में हरित निवेश के लिए उपलब्ध होता है?