क्या अब बागियों की होगी शिवसेना? पार्टी बचाने के लिए उद्धव के पास अभी बाकी है यह दांव

  • सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और कानूनी मामलों के जानकार विराग गुप्ता कहते हैं कि विधानसभा स्पीकर विधायकों की संख्या बल के आधार पर एकनाथ शिंदे और उनके बागी विधायकों को शिवसेना का विधायक मानकर मान्यता तो दे सकते हैं, लेकिन इसमें कई तरह की कानूनी दिक्कतें हैं…शिवसेना के बागी नेता एकनाथ शिंदे मुंबई पहुंचे

शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के हाथ से महाराष्ट्र की सत्ता तो चली गई, लेकिन अब बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या शिवसेना पार्टी उनके हाथ में रहेगी या नहीं। क्योंकि जब महाराष्ट्र में नई सरकार का गठन होगा तो एकनाथ शिंदे समेत उन सभी विधायकों को यह साबित करना होगा कि आखिर इस वक्त वे किस दल के विधायक हैं। क्योंकि शिंदे शिवसेना के दो तिहाई से ज्यादा विधायकों को तोड़कर अपने साथ ला रहे हैं। ऐसे में उनका दावा बाला साहब ठाकरे की बनाई गई पार्टी शिवसेना पर बना हुआ है।

कानून के जानकारों का कहना है कि विधायकों की संख्या के आधार पर विधानसभा स्पीकर इस बात का फैसला कर सकते हैं कि जिसके पास ज्यादा विधायक होंगे वही शिवसेना का हकदार होगा। लेकिन इसमें भी कई कानूनी पेच सामने आ रहे हैं। अगर ऐसा होता है तो शिवसेना अदालत जाकर अपनी लड़ाई लड़ सकती है। इस आधार पर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की दावेदारी ज्यादा मजबूत मानी जा रही है।क्या खत्म होगी विधायकों की मान्यता?

दरअसल शिवसेना के बागी विधायक एकनाथ शिंदे लगातार दावा कर रहे हैं कि उनके पास शिवसेना विधायकों की संख्या इतनी ज्यादा है कि उद्धव ठाकरे के साथ रहने वाले विधायकों की मान्यता खत्म हो सकती है। महाराष्ट्र के राजनीतिक विश्लेषक एसएन खंडलकर कहते हैं कि शिवसेना किसकी होगी इसे लेकर कई तरह के कानूनी दांव पर चले जा रहे हैं। बागी विधायक एकनाथ शिंदे जहां कानून का सहारा लेकर शिवसेना पर अपना दावा ठोक रहे हैं, वहीं शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे तमाम तरह के कानूनी दांवपेचों को समझ कर अपनी पार्टी को बचाने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। खंडलकर का कहना है कि नई सरकार के तौर पर जो भी मुख्यमंत्री पद की शपथ लेगा तो उसको अपना बहुमत साबित करना होगा। ऐसी दशा में कई पहलू सामने आते हैं, जिनमें कुछ में कानूनी पेच भी लगे हुए हैं।

खंडलकर कहते हैं कि एकनाथ शिंदे जब विधायकों के साथ सदन में बहुमत साबित करने के लिए भाजपा का समर्थन करेंगे, तो उन्हें यह बताना होगा कि आखिर वह किस दल के विधायक हैं। ऐसे में जो विकल्प सामने आ रहे हैं, उनमें या तो एकनाथ शिंदे अपने सभी विधायकों के साथ भाजपा में शामिल हो जाएं। या फिर शिंदे अपने सभी विधायकों के साथ महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना या किसी अन्य दल में शामिल हो जाएं। जिसकी पहले से चुनाव आयोग में मान्यता है। तीसरा और सबसे चुनौतीपूर्ण पहलू यह है कि वह खुद को यह साबित कर सके कि असली शिवसेना के नेता वही हैं और जो विधायक भाजपा को समर्थन दे रहे हैं वह भी शिवसेना के विधायक हैं।

शिवसेना का संविधान है अहम

सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और कानूनी मामलों के जानकार विराग गुप्ता कहते हैं कि विधानसभा स्पीकर विधायकों की संख्या बल के आधार पर एकनाथ शिंदे और उनके बागी विधायकों को शिवसेना का विधायक मानकर मान्यता तो दे सकते हैं, लेकिन इसमें कई तरह की कानूनी दिक्कतें हैं। उनका कहना है कि शिवसेना का जो पार्टी संविधान है, उसके आधार पर ही सारे फैसले होंगे। इसलिए यह कहना मुश्किल होगा कि शिवसेना की कमान वर्तमान पार्टी प्रमुख के हाथ से खिसक कर किसी दूसरे के पास जा सकती है। वे कहते हैं कि पार्टी संविधान के आधार पर शिवसेना कानूनी रास्ता भी अख्तियार कर सकती है। इसके लिए उनके पास हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक के रास्ते खुले हुए हैं। चूंकि हर पार्टी का अपना एक संविधान होता है जो चुनाव आयोग के पास रहता है। पार्टी की कमान सिर्फ एक आधार पर नहीं बल्कि कई पहलुओं को ध्यान में रखकर ही तय की जाती है।

शिवसेना से मुंबई के सांसद और शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य गजानन कीर्तिकर कहते हैं कि शिवसेना प्रमुख का चुनाव पार्टी की प्रतिनिधि सभा को करना होता है और पार्टी की प्रतिनिधि सभा गांव स्तर से लेकर तालुका स्तर और जिला स्तर के तमाम संगठनात्मक वैधानिक प्रक्रियाओं के आधार पर पर बनाई जाती है। इसमें सांसद और विधायकों के साथ-साथ पार्टी के कई विभागों के मुखिया शामिल होते हैं। शिवसेना के प्रमुख नेता बताते हैं कि 2018 में शिवसेना की प्रतिनिधि सभा में 282 लोग शामिल थे। इन सभी लोगों ने मिलकर ही पार्टी का प्रमुख उद्धव ठाकरे को चुना था। सांसद कीर्तिकर कहते हैं कि शिवसेना की वर्तमान राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति अगले साल तक बरकरार रहेगी।कानूनी मामलों के जानकार वरिष्ठ वकील हेमंत शाह बताते हैं कि किसी भी पार्टी का निशान और उसका नेतृत्व सिर्फ विधायकों की संख्या के आधार पर बदला नहीं जाता है। वह कहते हैं कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों से लेकर पार्टी की प्रतिनिधि सभा और उनके अपने संविधान के अनुरूप तय की गई व्याख्या के आधार पर ही यह सब तय होता है। शाह के मुताबिक क्योंकि इस वक्त सिर्फ विधायकों की संख्या को छोड़ दिया जाए, तो प्रतिनिधि सभा और राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्यों की संख्या और शिवसेना का अपना चुनाव आयोग में दिया गया संविधान शिवसेना पर उद्धव ठाकरे की मजबूती दिखाता है। इसलिए कानूनी तौर पर शिवसेना कोर्ट का रुख करती है तो इन तमाम बिंदुओं के आधार पर न सिर्फ उनकी मजबूती बनती है बल्कि पार्टी पर उनका अधिकार भी बनता है।

सिर्फ शिंदे ने की बगावत

यह बात अलग है कि महाराष्ट्र में शिवसेना के ज्यादातर विधायक एकनाथ शिंदे के साथ चले गए हैं, लेकिन शिवसेना को संचालित करने वाली राष्ट्रीय कार्यकारिणी और उसके संविधान के अनुरूप तैयार की गई रूपरेखा में उद्धव ठाकरे का ही वर्चस्व बरकरार है। शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में आदित्य ठाकरे, मनोहर जोशी, लीलाधर डाके, दिवाकर रावते, सुधीर जोशी संजय राव, सुभाष देसाई, रामदास कदम और गजानन कीर्तिकर के साथ आनंद गीते, आनंदराव अडसूल और आनंद राव समेत एकनाथ शिंदे शामिल हैं। राष्ट्रीय कार्यकारिणी से जुड़े शिवसेना के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि इनमें से सिर्फ एकनाथ शिंदे को छोड़कर पार्टी का कोई दूसरा सदस्य राष्ट्रीय कार्यकारिणी से टूटकर नहीं गया है। इसलिए पार्टी संविधान के मुताबिक उसकी मजबूती के आधार वाले राष्ट्रीय कार्यकारिणी शिवसेना के प्रमुख उद्धव ठाकरे का ही है। इस लिहाज से शिवसेना पर किसी दूसरे का कब्जा होना असंभव है।