शिमला, 19 सितम्बर : सोलन की कसौली (आरक्षित) विधानसभा में हर बार की तरह इस बार भी रोचक व नजदीकी जंग की उम्मीद है। पिछली दो बार यहां सुल्तानपुरी व सहजल के बीच मामूली अंतर से जीत व हार की कहानी लिखी गई है। हालांकि डॉ राजीव सहजल वर्तमान भाजपा सरकार में स्वास्थ्य जैसे अहम महकमें के मंत्री है। उनके लिए हर बार की तरह इस बार भी तगड़ी चुनौती है। अपना किला बचाने के लिए इस बार ज्यादा मेहनत करनी पड़ सकती है। एंटी इंकम्बेंसी (anti incumbency)से भी इंकार नहीं किया जा सकता है।
कहा जाता है कि फूलों के साथ कांटे भी होते है। मंत्री बनने के बाद कसौली विधानसभा को मंत्री से काफी उम्मीदें थी। यानि एंटी इनकंबेंसी का सामना भी उन्हें करना पड़ेगा। वहीं, सुल्तानपुरी के लिए अपनी ही पार्टी के अंदर के भितरघात से बचने की चुनौती होगी। हर बार उनके नजदीकी मुकाबले में हार का कारण बनते है। कसौली विधानसभा में कांग्रेस के स्वर्गीय विधायक रघुराज सबसे अधिक 5 मर्तबा विधायक रहे है। 2007 में उन्हें डॉ राजीव सहजल (Dr. Rajeev Sehjal) ने हराया। इसके बाद कांग्रेस ने 2012 में रघुराज का टिकट काटकर युवा चेहरे विनोद सुल्तानपुरी को मैदान में उतारा मगर सुल्तानपुरी एक नजदीकी व संघर्षपूर्ण मुकाबले में मात्र 24 वोटों से पराजित हो गए। बता दे कि विनोद के पिता दिवंगत केडी सुल्तानपुरी शिमला संसदीय क्षेत्र से सात बार सांसद बने थे।
बताया जाता है कि कांग्रेस का एक असंतुष्ट धड़ा उनकी इस हार का कारण बना। 2017 में सुल्तानपुरी व डॉ सहजल के बीच खतरनाक मुकाबले में फिर से सुल्तानपुरी को मात्र 442 वोटों से हार का मुँह देखना पड़ा।असंतुष्ट कांग्रेस के एक धड़े ने फिर से सुल्तानपुरी को हराने में अपनी भूमिका अदा की। पिछले 15 सालों से यह सीट भाजपा के खाते में जाती रही है। 2007 में पहली बार यहां से डॉ राजीव सहजल ने कांग्रेस के रघुराज को हराकर भगवा लहराया था। क्योंकि 1977 में चमन लाल व 1990 में मात्र एक बार भाजपा के सतपाल कंबोज यहां से जीतने में सफल रहे।
2003 में भाजपा ने यहां से पूर्व सांसद वीरेंद्र कश्यप (Former MP Virendra Kashyap) को भी चुनाव लड़वाया मगर रघुराज से उन्हें हार का मुहं देखना पड़ा। कसौली विधानसभा क्षेत्र में कसौली के अलावा परवाणू व धर्मपुर जैसे छोटे शहर भी शामिल है। यहां संघ के प्रभाव व अन्य फेक्टर्स के चलते भाजपा का वोट बैंक (vote bank) सुल्तानपुरी भेदने में विफल रहे है। इस दफा देखते है कि पार्टी की अंदरूनी लड़ाई पर काबू पाकर विधानसभा की दहलीज लांघने में सफल हो पाते है या डॉ राजीव सहजल अपने विजयी दुर्ग पर चौथी बार लगातार भगवा लहराने में कामयाब होंगे।