गुजरात चुनाव में कमजोर विपक्ष के सामने अब तक फ्रंट फुट पर खेल रही भाजपा अचानक ‘रक्षात्मक’ हो गई है। भाजपा नेताओं को मोरबी काण्ड पर जवाब देते नहीं सूझ रहा है। इस बीच मुख्य आरोपियों के नाम एफआईआर में न होने से मामला और तूल पकड़ता जा रहा है।
मोरबी काण्ड (Morbi) में 135 लोगों की दर्दनाक मौत ने गुजरात का चुनावी माहौल पूरी तरह बदल दिया है। हादसे की गंभीरता को देखते हुए कांग्रेस ने शुरूआती दौर में इस पर कोई राजनीति न करने का निर्णय लिया था, लेकिन निरपराध लोगों की दर्दनाक मौत से उपजे लोगों के गुस्से ने उसे भी हमलावर होने के लिए बाध्य कर दिया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने मोरबी कांड की न्यायिक जांच की मांग कर दी तो अन्य नेताओं ने हादसे के जिम्मेदार लोगों को तत्काल सजा दिलाये जाने की मांग करनी शुरू कर दी।
यह स्पष्ट हो गया है कि विपक्ष इस मुद्दे को जोरशोर से उठाने की पूरी कोशिश करेगा। लेकिन बड़ा प्रश्न है कि मोरबी काण्ड गुजरात चुनाव को कितना प्रभावित कर पाएगा? पीएम मोदी के सामने क्या विपक्ष के पास ऐसा कोई विश्वसनीय चेहरा है जो इस मामले को पुरजोर तरीके से उठा सके?
विश्वसनीयता सबसे अहम
राजनीतिक विश्लेषक धीरेंद्र कुमार ने अमर उजाला से कहा कि मोरबी मामले के सामने आते ही लोगों को पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से ठीक पहले निर्माणाधीन विवेकानंद फ्लाईओवर के टूटने की घटना याद आ गई। 31 मार्च 2016 को घटी इस घटना में भी 27 लोगों की जान चली गई थी और करीब सौ लोग घायल हो गए थे। लोगों को इस घटना की याद इसलिए भी आई क्योंकि उस समय चुनाव प्रचार में पीएम नरेंद्र मोदी ने इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश की थी। लेकिन चुनाव होने पर ममता बनर्जी एक बार फिर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री बनने में सफल रहीं।
इससे यह नहीं कहा जा सकता कि इस घटना का चुनाव पर कोई असर नहीं हुआ, लेकिन यह अवश्य कहा जा सकता है कि भाजपा के पास पश्चिम बंगाल के सन्दर्भ में कोई बड़ा विश्वसनीय चेहरा नहीं था जो इसे जनता तक ज्यादा सटीक तरीके से ले जा पाता और जनता को उससे बड़े स्तर पर जोड़ पाता। यही कारण है कि भाजपा इस घटना पर ममता बनर्जी को घेरकर उसका लाभ उठाने में सफल नहीं हुई।
मोरबी काण्ड के साये में हो रहे गुजरात चुनाव का परिणाम भी इसी तर्ज पर भाजपा के पक्ष में निकल आये तो इस पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। इसका कारण केवल यही हो सकता है कि विपक्ष के पास पीएम नरेंद्र मोदी के सामने कोई चेहरा मौजूद नहीं है जो इस मामले को बड़ा राजनीतिक रंग दे सके।
पीएम स्वयं मैदान में उतरे
चूंकि प्रधानमंत्री ने इस मामले से बचने की कोई कोशिश नहीं की, वे सीधे स्वयं मैदान पर उतरे, पीड़ित परिवारों और घायलों से मुलाकात की। उन्होंने घटनास्थल का जायजा लिया और अधिकारियों के साथ बैठक कर यह संकेत दे दिया कि अपराधियों को बख्शा नहीं जाएगा। पीएम मोदी के इस ‘मरहम’ ने लोगों को यह भरोसा जताया है कि पीएम उनके साथ खड़े हैं। पीएम मोदी की यह विश्वसनीयता भाजपा को जनता की नाराजगी से बचा सकती है।
राहुल होते तो बदल सकता था चुनाव परिणाम
पिछले गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने गुजरात में बेहद आक्रामक चुनाव प्रचार किया था। राहुल को तब तक कम गंभीरता से ले रही भाजपा को सत्ता बचाने के लिए बड़ी मशक्कत करनी पड़ी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुजरात में तीन दिन तक लगातार रुककर चुनाव प्रचार करना पड़ा, इसके बाद भी भाजपा 99 सीटों पर सिमटकर रह गई। आज गुजरात में भाजपा सरकार के विरुद्ध जितना एंटी-इनकमबेंसी माहौल है, उसके लिए परिस्थितियां 2017 से ज्यादा प्रतिकूल हैं। ऐसे समय में यदि राहुल गांधी चुनाव प्रचार में होते तो इसका बड़ा असर हो सकता था।
लेकिन राहुल गांधी की अनुपस्थिति में कांग्रेस का चुनाव प्रचार अब तक उतना आक्रामक नहीं हो पाया है जितना होना चाहिए था। कांग्रेस के नेता चुनावी अभियान को जोर देने की कोशिश जरूर कर रहे हैं, लेकिन वे राहुल गांधी की कमी की भरपाई करने में सक्षम नहीं हैं। चूंकि अरविंद केजरीवाल पहली बार गुजरात के मतदाताओं के सामने आये हैं, वे भी गुजरात में मोदी की करिश्माई छवि का मुकाबला नहीं कर सकते। इन परिस्थितियों में एक बड़ी नकारात्मक घटना होने के बाद भी भाजपा इससे बच निकलने में कामयाब हो सकती है।