विधानसभा भंग करने की सिफारिश करेंगे उद्धव? क्या राज्यपाल इसे मानेंगे? जानें आगे क्या होगा

महाराष्ट्र में जारी संकट के बीच सवाल उठता है कि आगे राज्यपाल के पास क्या विकल्प रहेंगे? विधानसभा अध्यक्ष की क्या भूमिका होगी? महाराष्ट्र में बिना चुनाव के ही किसी दूसरे गठबंधन की सरकार बनने की क्या संभावना है?

महाराष्ट्र में सियासी उथल-पुथल जारी है। संकेत मिल रहे हैं शिवसेना विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर सकती है। शिवसेना सांसद संजय राउत ने ट्वीट करके इस ओर इशारा किया है। इसके साथ ही राज्य में अब महाविकास अघाड़ी सरकार के सत्ता में बने रहने को लेकर आशंकाएं पैदा होने लगी हैं। इस बीच उद्धव ठाकरे ने भी सियासी संकट के बीच शिवसेना विधायकों की बैठक बुला ली है।

इस सियासी संकट के बीच सवाल उठता है कि अगर उद्धव सरकार विधानसभा भंग करने की मांग उठाती है तो राज्यपाल के पास क्या विकल्प रहेंगे? विधानसभा अध्यक्ष की क्या भूमिका होगी? महाराष्ट्र में बिना चुनाव के ही किसी दूसरे गठबंधन की सरकार बनने की क्या संभावना है?
पहले समझें महाराष्ट्र विधानसभा का गणित?

महाराष्ट्र विधानसभा में कुल 288 सीटें हैं। इनमें एक सीट शिवसेना के विधायक रमेश लटके के निधन के बाद खाली है। यानी फिलहाल विधानसभा में 287 विधायक हैं। इस लिहाज से राज्य में किसी पार्टी या गठबंधन के लिए बहुमत का आंकड़ा 144 हो गया है। एकनाथ शिंदे और उनके समर्थक विधायकों की बगावत से पहले महाविकास अघाड़ी के पास 169 विधायक थे। इनमें सबसे ज्यादा सीएम उद्धव की शिवसेना के पास 56, शरद पवार की राकांपा के पास 53 और कांग्रेस के पास 44 सीटें थीं। आठ निर्दलियों समेत 16 अन्य विधायकों का भी गठबंधन को समर्थन था।

दूसरी तरफ विपक्ष में भाजपा के पास 106 विधायक हैं और बहुजन विकास अघाड़ी (बीवीए) के पास तीन विधायक हैं। इसके अलावा एमएनएस समेत सात पार्टियों के पास एक-एक विधायक है। राज्य में कुल 13 निर्दलीय विधायक भी हैं। 

उद्धव ठाकरे के पास अब क्या विकल्प?
महाराष्ट्र सरकार पर खतरे के बीच सीएम उद्धव ठाकरे के पास मुख्यतः दो विकल्प हैं- 

1. राज्यपाल के पास विधानसभा भंग करने का प्रस्ताव
 ऐसे संकेत हैं कि उद्धव ठाकरे राज्यपाल से विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं। ऐसा होने पर राज्यपाल की भूमिका अहम हो जाएगी।   
 
दरअसल, संविधान के अनुच्छेद 174 में कहा गया है कि राज्यपाल अपने हिसाब से विधानसभा सत्र बुला सकता है। 174 (2)(b) राज्यपाल को विधानसभा भंग करने का अधिकार भी देता है। हालांकि, संविधान के ही अनुच्छेद 163 में कहा गया है कि राज्यपाल अपने कार्य मंत्री परिषद की सलाह से ही करेगा। इसी अनुच्छेद में यह भी कहा गया है कि राज्यपाल अगर चाहे तो संविधान के तहत मंत्री परिषद की सलाह के बगैर भी अपने कार्यों को कर सकता है। 

यानी विधानसभा को चलाने के मुद्दे पर संविधान राज्यपाल को अपने विवेक से फैसले लेने का अधिकार देता है। यानी अगर राज्यपाल को लगता है कि उसे विधानसभा चलाने के मुद्दे पर सलाह देने वाला मंत्री परिषद सदन में समर्थन खो चुका है तो गवर्नर खुद ही बहुमत परीक्षण का आदेश दे सकते हैं। इतना ही नहीं अगर सत्तापक्ष विधानसभा में विश्वास मत हासिल नहीं कर पाता है तो राज्यपाल बहुमत का दावा करने वाले दूसरे दल को सरकार बनाने का न्योता भी दे सकते हैं। सियासी संकट न सुलझने की स्थिति में राज्यपाल आगे राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश भी कर सकते हैं। 

राज्यपाल के अधिकारों पर क्या कहती है सुप्रीम कोर्ट?
महाराष्ट्र संकट को लेकर सुप्रीम कोर्ट का 2016 का एक फैसला महाविकास अघाड़ी के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है। दरअसल, 2016 में अरुणाचल प्रदेश में इसी तरह के सियासी संकट के बीच राज्यपाल ने बागी कांग्रेस विधायकों और भाजपा विधायकों की मांग पर विधानसभा सत्र बुलाया था। इस सत्र का एजेंडा स्पीकर को हटाना था। राज्यपाल के इस कदम के खिलाफ जब विधानसभा अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट पहुंचे तो न्यायालय ने कहा कि गवर्नर सिर्फ कैबिनेट की सलाह पर ही सत्र बुलाने का फैसला कर सकते हैं। हालांकि, कोर्ट ने यह भी साफ किया था कि अगर राज्यपाल को लगता है कि मुख्यमंत्री और उनके मंत्री परिषद सदन का विश्वास खो चुका है, तो वे बहुमत परीक्षण का आदेश दे सकते हैं।

2. विधानसभा में बहुमत परीक्षण
एकनाथ शिंदे की बगावत के बाद कहा जा रहा है कि उन्हें 37 से ज्यादा शिवसैनिकों समेत कुल 46 विधायकों का समर्थन हासिल है। उनका यही बयान एमवीए सरकार के लिए सिरदर्द बना हुआ है। अगर राज्यपाल कैबिनेट की मांग पर सत्र बुलाते हैं तो उद्धव सरकार के पास एक विकल्प विधानसभा में बहुमत साबित करने का है। हालांकि, अगर एकनाथ शिंदे का शिवसेना को तोड़ने का दावा सही है तो एमवीए सरकार का विधानसभा अध्यक्ष के पास बहुमत साबित करने के लिए जाने का फैसला गलत साबित हो सकता है। ऐसे में राज्य में फिलहाल तीन तस्वीरें बनती दिख रही हैं…

  • अगर 46 विधायक महाविकास अघाड़ी गठबंधन से समर्थन वापस लेते हैं और महाराष्ट्र सरकार अल्पमत में आ जाएगी। दल-बदल कानून के तहत अगर एकनाथ शिंदे को बिना अयोग्य करार हुए शिवसेना को तोड़ना है तो उन्हें 37 विधायकों के समर्थन की जरूरत होगी। 
  • इन्हीं नियमों के मुताबिक, अगर यह बगावती गुट शिवसेना के दो-तिहाई विधायकों (37) को साथ ले आता है तो महाविकास अघाड़ी सरकार गिर जाएगी। इसका असर यह होगा कि महाराष्ट्र में बिना अगले चुनाव करवाए ही भाजपा सत्ता पर काबिज होने में सफल हो सकती है। ऐसे में यह रास्ता शिवसेना के लिए सबसे कठिन माना जा रहा है। 
  • अगर शिंदे और उनके समर्थक इस्तीफा भी दे दें तो एमवीए सरकार विश्वास मत हार जाएगी। हालांकि, शिंदे की मांग को मानते हुए शिवसेना सहयोगी दल कांग्रेस और राकांपा से गठबंधन तोड़कर एक और विकल्प पा सकती है। वह भाजपा के साथ मिल कर सरकार बना ले तो महाराष्ट्र को एक बार फिर पुराने गठबंधन की सरकार मिल सकती है। हालांकि, मौजूदा परिदृश्य में यह संभावना काफी मुश्किल है