Winky Singh कौन, जिनकी देखरेख में जेल के कैदियों ने डिजाइन किया Ab Dilli Dur Nahin का कॉस्ट्यूम

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अगर आप सिनेमा प्रेमी हैं तो आपको पता होगा कि इमरान जाहिद, और श्रुति सोढ़ी जैसे सितारों से सजी फिल्म ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ सिनेमाघरों में दस्तक देने के लिए तैयार है. फिल्म 12 मई 2023 को रिलीज होनी है. जानकारी के मुताबिक यह एक इमोशनल ड्रामा फिल्म है, जो एक गरीब लड़के के संघर्ष को बयां करती है.

एक तरफ जहां फिल्म की कहानी चर्चा का विषय है, वहीं फिल्म के कॉस्ट्यूम डिजाइन की भी बात हो रही है. दरअसल, इस फिल्म का कॉस्ट्यूम तिहाड़ जेल की महिला कैदियों ने डिजाइनर विंकी सिंह की देखरेख में तैयार किया है. विंकी सिंह कौन हैं, और उन्होंने तिहाड़ की कैदियों को इसके लिए कैसे तैयार किया आइए जानते हैं.

विंकी सिंह (Winky singh) आखिर हैं कौन?

विंकी सिंह का जन्म पंजाब के फिरोजपुर जिले में हुआ. वो सिख परिवार से आती हैं, और वर्तमान में पेशे से एक डिजाइनर हैं. इंडिया टाइम्स हिन्दी के साथ खास बातचीत में विंकी बताती हैं कि उनके पिता अमरीक सिंह कक्कड़, और मां सतपाल कौर जोकि अब इस दुनिया में नहीं हैं. उन्होंने बचपन से ही उनके सपनों का ख्याल रखा, और खूब पढ़ाया. चड़ीगढ़ और पटियाला यूनीवर्सिटी से उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा प्राप्त की है.

वो शादी के बाद पंजाब से राजधानी दिल्ली आ गईं थीं, और यहां उन्होंने ‘नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी’ में दाखिल लेकर डिजाइनिंग के गुर सीखे. आगे पति के सहयोग से उन्होंने अपना खुद का काम शुरू कर दिया. कुछ सालों के संघर्ष के बाद उनका काम चल पड़ा और 2005 आते-आते उनका ब्रांड भारत के बाहर भी पहुंच गया. अब अमेरिका, इटली, स्पेन, पेरिस और लंदन तक उनके डिजाइनों की मांग है.

समय-समय पर वो फैशन शो भी आयोजित करती रहती हैं, ताकि दुनिया भारतीयों के टैलेंट को देख सके. उनकी दोनों बेटियां राशिमा, और रवीना सिंह काम में उनका बराबर हाथ बटाती हैं. विंकी सिंह के मुताबिक वो साल 2013 था, जब उनकी बेटी राशिमा विदेश से पढ़ाई कर भारत लौटी और उसने उन्हें एक स्टोर खोलने की सलाह दी. इस तरह उनके स्टोर ‘मिट्री ऑफ डिजाइन विंकी सिंह-राशिमा सिंह की शुरुआत हुई.

कैदियों से कैसे डिजाइन कराया फिल्म का कॉस्ट्यूम?

winky-singhPic Credit: winky-singh

विंकी बताती हैं कि ‘ब्राइडल वूमेंस वियर’ पर फोकस करने के बाद उन्हें एक अलग पहचान मिली और अपने इसी सफर के दौरान वो इमरान जाहिद के संपर्क में आईं. साल 2018 में इमरान ने ही उन्हें जिम्मेदारी सौंपी थी कि वो तिहाड़ के अंदर बंद महिला कैदियों से मिलें, और अपनी देखरेख में उनसे फिल्म ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ के लिए कॉस्ट्यूम डिजाइन कराएं. शुरुआत से ही वो इस काम के लिए उत्साहित थीं.

आगे जब वो तिहाड़ गईं और वहां की महिला कैदियों से मिलीं तो उनका जीवन ही बदल गया. धीरे-धीरे विंकी और कैदियों के बीच में एक अलग ही रिश्ता बन गया. उन्होंने करीब एक साल तक तिहाड़ की महिला कैदियों के साथ काम किया, और उनसे ही फिल्म के लिए सारे कॉस्ट्यूम डिजाइन कराए. यहां तक कि फिल्म के बैकग्राउंड में जो कॉस्ट्यूम यूज हुए उन्हें भी महिला कैदियों ने ही अपने हाथों से बनाया है.

तिहाड़ जेल के मेहनतकश कैदियों को पैसे भी दिए गए

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खास बात यह कि कैदियों को इसके लिए पैसे भी दिए गए हैं. विंकी के मुताबिक तिहाड़ जेल के कैदियों को इसके लिए बकाएदा ट्रेनिंग दी गई. मशीन चलाने से लेकर कपड़े काटने तक हर एक चीज़ उन्हें सिखाई गई है. जेल में बंद कैदियों की अपनी तमाम तरह की समस्याएं थीं. बावजूद इसके जैसे ही उन्हें पता चला कि वो किसी फिल्म के लिए कॉस्ट्यूम डिजाइन करने जा रहे हैं, वो उत्साहित हो गए और मन से काम किया.

बातचीत के अंत में विंकी ने बताया कि तिहाड़ में बंद कैदियों के साथ काम करना उनके लिए एक अलग तरह का अनुभव रहा, जिसे वह शब्दों में बयां नहीं कर सकतीं. यही कारण रहा कि फिल्म का काम खत्म होने के बाद भी वो कैदियों के साथ जुड़ी रहीं, और उनके साथ काम करती रहीं. कोरोना महामारी के कारण उन्हें मजबूरन जेल की कैदियों से दूर होना पड़ा, लेकिन उन्हें जब भी मौका मिलेगा वो तिहाड़ जाना चाहेंगी.

अब 12 मई को दुनिया देखेगी तिहाड़ के कैदियों का काम

 

विंकी खुद को खुशकिस्मत मानती हैं कि उनकी देखरेख में ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ का कॉस्ट्यूम तिहाड़ जेल के कैदियों ने डिजाइन किया. अब जब फिल्म 12 मई 2023 को थिएटर्स में रिलीज होगी, तब उनका काम दुनिया के सामने होगा. देखना होगा लोग इसे कितना पसंद करते हैं. इसके लिए वो फिल्म निर्माता विनय भारद्वाज, और अभिनेता इमरान जाहिद को दिल से शुक्रिया कहती हैं.

उनका कहना है कि इन दोनों के चलते ही वो तिहाड़ की महिला कैदियों के जीवन को नजदकी से देख पाईं, और उनके लिए कुछ कर पाईं. बता दें, विंकी अब ‘चैरिटी ऑन व्हील्स’ नामक एक NGO भी चलाती हैं, जिसके जरिए वो अपनी सहयोगी Viola Edward की मदद से महिला कैदियों का जीवन बदलने में जुटी हैं. फिलहाल वो हरियाणा की 5 जेलों के संपर्क में हैं, और वहां की महिला कैदियों का जीवन सुधार रही हैं.

‘अब दिल्ली दूर नहीं’ फिल्म की असली कहानी क्या है?

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दावा है कि ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ विश्व सिनेमा के इतिहास में पहली फिल्म है जिसका कॉस्ट्यूम तिहाड़ जेल की महिला कैदियों ने डिजाइन किया है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक फिल्म की कहानी एक रिक्शा चालक के आईएएस बेटे की कहानी से प्रेरित है. विनय भारद्वाज द्वारा बनाई जा रही इस फिल्म में इमरान जाहिद लीड रोल में हैं. फिल्म की कहानी दिनेश गौतम ने लिखी है. वहीं, फिल्म का निर्देशन कमल चंद्र ने किया है.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ‘अब दिल्ली दूर नहीं’की कहानी रिक्शा चालक के बेटे गोविंद जायसवाल के जीवन पर आधारित है. गोविंद का चयन 2007 में सिविल सेवा में हुआ था, जिसके बाद वो IAS बने. फिल्म में गोविंद का किरदार इमरान जाहिद निभाएंगे. फिल्म में दिखाया गया है कि गोविंद कैसे बिहार के एक छोटे-सी जगह से निकलकर खुद को यूपीएससी के लिए तैयार करते हैं, और आईएएस बनकर दिखाते हैं.

गोविंद जायसवाल कौन? जिन पर बनी ‘अब दिल्ली दूर नहीं’

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गोविंद के बचपन में ही उनकी मां चल बसी थीं. पिता ने ही इनका लालन पोषण किया. गोविंद के सपने के आगे गरीबी रुकावट बनी. लेकिन, मंजिल पाने के लिए गोविंद मेहनत से पढ़ाई करते रहे. गोविंद ने अपनी शुरुआती पढ़ाई एक सरकारी स्कूल से की थी. उसके बाद उन्होंने वाराणसी में हरिश्चंद्र डिग्री कॉलेज से ग्रेजुएशन किया था.

पिता ने रिक्शा चलाकर पढ़ाया, बेटा बना IAS अफसर

इसके बाद गोविंद यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करने के लिए दिल्ली आ गए और साल 2006 में अपने प्रथम प्रयास में ही UPSC क्लियर कर दूसरों के लिए मिसाल बन गए. 22 साल की उम्र में गोविंद AIR 48 लाकर खुद को साबित कर दिया. उन्होंने अपने पिता के त्याग को बर्बाद नहीं होने दिया. उम्मीद है अब IAS अफसर गोविंद जायसवाल की कहानी पर बनी फिल्म ‘अब दिल्ली दूर नहीं’ युवाओं को प्रेरित करेगी.