
डियर भावना,
हम लोग यहां सकुशल हैं. आपका पत्र मिला. पढ़कर समाचार मालूम हुए. यहां के विषय में सोचकर परेशान नहीं होना. टीवी पर जो चलता है, उसमें सच और झूठ दोनों होता है. भगवान पर भरोसा रखो, हम लोग जल्द ही वापस आएंगे. शादी कैसी रही. सिलीगुड़ी की ट्रिप के विषय में लिखना. कैप्टन दुरानी, जो 891 में थे और मेजर आरके मल्होत्रा दोनों उसी इलाके में हैं. दोनों आपको बहुत याद कर रहे थे.
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158 मरते, जो मेरठ के हैं, वो भी यही हैं. उनके दो ऑफ़िसर्स की फ़ैमिली एसएन पार्क में है. कर्नल एसपी सिंह से रोज बात होती है. मिसेज एसपी को कहना वो ठीक हैं. जब भी मौका मिले मुझे चिट्ठी लिखना. नेहा का ट्यूशन अवश्य लगा देना. पंडित जी और उनका परिवार इन दिनों कहां है. वो शिफ्ट कर रहे हैं या नहीं. अगर संभव हो तो उनकी बेटी को कहना नेहा को पढ़ा दे. मोना कैसी है, वो अब तक बॉम्बे से ज़रूर लौट आई होगी. वो शादी कब कर रही हैं? विशेष अगले पत्र में, अपना ख्याल रखना.
20 साल की उम्र में आर्मी का हो जाने वाले मेजर द्विवेदी
ये खत करगिल युद्ध में शहीद हुए मेजर चंद्र भूषण द्विवेदी ने अपनी पत्नी भावना को लिखा था. हो सकता है कि महज़ 20 साल की उम्र में आर्मी जॉइन करने वाले मेजर द्विवेदी का नाम कम लोग जानते हो, मगर युद्ध के मैदान में उनका पराक्रम इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज हैं.
आर्टिलरी रेजिमेंट में एक गनर के रूप में कमीशन होने वाले मेजर द्विवेदी ने आख़िरी सांस तक दुश्मन का मुकाबला किया. आख़िरी वक्त में वो खू़न से लथपथ थे, मगर उनके हाथ से बंदूक नहीं छूटी थी. मरणोपरांत उन्हें उनकी वीरता के लिए सेना मेडल से सम्मानित किया गया.
मिली रेजिमेंट्स की मदद करने की ज़िम्मेदारी
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कारगिल युद्ध में तोतोलिंग, प्वाइंट 5140, ब्लैक टूथ, टाइगर हिल और गन हिल को दुश्मनों के कब्ज़े से छुड़ाने के मिशन के दौरान मेजर द्विवेदी को अपनी टीम के साथ दूसरे रेजिमेंट्स को ऑपरेशन में मदद करने की जिम्मेदारी दी गई थी. 14 मई 1999 को वो करगिल गए और दो जुलाई 1999 को दुश्मन के साथ सीधे मोर्चे पर थे. जंग के मैदान में उनके सामने दो विकल्प थे. फायरिंग जारी रखना या उसे बंद कर देना. फैसले की इस घड़ी में मेजर द्विवेदी ने दो इन्फैंट्री यूनिट्स (18 ग्रेनेडियर और 8 सिख) का सपोर्ट किया था.
टाइगर हिल पर कब्जा करने के दौरान शहीद हुए
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बतौर सेकेंड-इन-कमांड मेजर द्विवेदी ने पूरी रात दुश्मनों पर गोलीबारी करने की जगह यूनिट की सुरक्षा को प्राथमिकता दी और खुद मोर्चा संभाला. इसी दौरान एक बम उनके दायीं ओर गिरा और वो गंभीर रूप से चोटिल हो गए. बम के टुकड़ों ने उनके शरीर को लहूलुहान कर दिया था. उनके शरीर से लगातार खून बह रहा था, मगर मेजर द्विवेदी पीछे नहीं हटे. वो आखिरी सांस तक फ़ायर करते रहे. परिणाम स्वरूप दुश्मन अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो सका, उसे पीछे भी हटना पड़ा.
अपनी यादों में हमेशा जिंदा रहेंगे मेजर सी.बी. द्विवेदी
कारगिल के द्रास सेक्टर स्थित टाइगर हिल को फ़तेह करने वाला बिहार के शिवहर जिले के पुरनहिया बखार चंडिहा गांव का यह जांबाज़ हमेशा हमारी यादों में जिंदा रहेगा. मेजर द्विवेदी के परिवार में उनकी पत्नी भावना और दो बेटियां हैं. उनकी बड़ी बेटी नेहा डॉक्टर हैं, जबकि छोटी बेटी दीक्षा लेखिका हैं.