With Love From Kargil: देश के लिए खु़शी-खु़शी अपनी जान देने से पहले कैप्टन मनोज पांडे का ये लेटर

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डियर पवन … 

‘मुझे तुम्हारे दोनों पत्र मिले, दोनों लड़ाई के बीच में ही मिले. इस ऊंचाई पर दुश्मन के साथ लड़ाई सचमुच मुश्किल है. दुश्मन बंकर में छिपा है . हम खुले में हैं. दुश्मन पूरी तैयारी के साथ आया है. वह अधिकतर चोटियों पर कब्ज़ा कर चुका है. शुरुआत में हमारी स्थिति खराब थी, लेकिन अब हालात नियंत्रण में है. मैं खुद चार बार मौत का सामना कर चुका हूं. शायद कुछ अच्छे कर्म के कारण जिंदा हूं. हर दिन हमें देशभर से चिटि्ठयां मिल रही हैं.’

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”लोगों ने लिखा है- जस्ट डू इट. ये देखने में सचमुच अच्छा लग रहा है कि जरूरत और मुश्किल वक्त में हमारा देश एक हो जाता है. मैं नहीं जानता अगले ही पल क्या होगा, लेकिन मैं तुम्हें और देश को भरोसा दिलाता हूं कि हम दुश्मन को धकेल देंगे. इस ऑपरेशन ने इतना कुछ सिखाया है कि उसकी गिनती नहीं. ‘इंडियन आर्मी सचमुच में अद्भुत है. वह कुछ भी कर सकती है. यहां बहुत सर्दी है, यदि सूरज निकल आए तो दिन ठीक हो जाता है.”

”रात में बहुत ठंड होती है, -5 डिग्री. एक निवेदन है…मेरे भाई को उसके अहम समय में गाइड करना. सभी दोस्तों को मेरा हेलो कहना. जब मैं लौटूंगा तो हमारे पास करने को कई बातें होंगी. फिर बात करेंगे… तुम्हारा मनोज’ 

“मेरे रास्ते में मौत आई तो उसे भी मार दूंगा”

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19 जून 1999, को ये सारी बातें कारगिल युद्ध के हीरो रहे कैप्टन मनोज पांडे ने अपने दोस्त पवन को लिखे अपने एक खत में लिखी थीं. 24 साल की छोटी सी उम्र में अपने देश पर न्यौछावर होने वाले कैप्टन मनोज ने पहले ही कहा था कि ‘अगर मेरे रास्ते में मौत आती है तो मैं वादा करता हूं, मैं मौत को मारूंगा. उन्होंने अपने इस कहे को कर दिखाया. 

दुश्मन की गोलियों से बुरी तरह ज़ख्मी होने के बावजूद जंग के मैदान में उनकी उंगलियों से बंदूक से नहीं हटी. उन्होंने अकेले ही दुश्मन के तीन बंकर ध्वस्त किए. कारगिल में ‘खालुबार टॉप’ जीतने के लिए उनका जूनून विरोधी के हर एक हथियार को बौना करने में कामयाब रहा. इस विरले सपूत को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया.

खालुबार टॉप पर तिरंगा फहराने वाला कारगिल हीरो

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26 जनवरी, 2000 को तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायणन ने हज़ारों लोगों के सामने देश का सबसे बड़ा वीरता सम्मान परमवीर चक्र मनोज के पिता पिता गोपी चंद पांडे को सौंपा था.