फौलादी इरादों से छह घंटे में पत्थर को लोहे में तब्दील कर देते माटी के लाल, देसी जुगाड़ देखकर आप भी देंगे दाद

Make Iron From Stone: एमपी कुछ जिलों में लोग पत्थर से लोहा बनाते हैं। पत्थर से लोहा बनाने की प्रक्रिया काफी कठिन है। इसके लिए पत्थर और लकड़ी वाले कोयले की जरूरत पड़ती है। 10 किलो पत्थर से करीब एक किलो लोहा तैयार होता है।

iron making process
पत्थर से ऐसे बनता है लोह
डिंडोरी: एमपी के आदिवासी बहुल इलाकों में पुरानी परंपराएं जीवित हैं। आधुनिकता के इस दौर में भी आदिवासियों को अपनी संस्कृति और सभ्यता पर ज्यादा भरोसा है। लोहा बनाने के लिए देश में कई बड़े-बड़े प्लांट लगे हैं। फिर भी आदिवासी देसी जुगाड़ से ही लोहा (Iron Making Process) बनाते हैं। इसी लोहा से वे लोग खेती-किसानी के लिए उपकरण तैयार करते हैं। खजुराहो के आदिवर्त संग्रहालय में इसकी प्रदर्शनी लगी है। डिंडोरी जिले से आए विजय कुमार अगरिया ने इसका डेमो दिया है कि कैसे पत्थर से लोहा बनाते हैं।

मंडला और डिंडोरी जिले में एक खास किस्म की पत्थर पाई जाती है। इसका रंग लाल और काला होता है। इन दोनों जिलों में आदिवासियों की अच्छी आबादी है। आदिवासी इन पत्थरों को पहचानते हैं। इन्हीं पत्थरों से वह लोहा तैयार करते हैं। इनके तरीके से लोहा तैयार करना काफी कठिन होता है। डिंडोरी से आए विजय कुमार अगरिया ने बताया कि 10 किलो पत्थर को तपाते हैं तो एक किलो लोहा तैयार होता है।

छह घंटे चलानी पड़ती है धुकनी

वहीं, पत्थर से लोहा बनाने की प्रक्रिया बहुत कठिन है। पहले पहाड़ों से पत्थर लाइए। इसके बाद उसे भट्ठी में रखना पड़ता है। नीचे से धुकनी के सहारे आग देनी पड़ती है। आग से पत्थर गलता है और लोहा तैयार होता है। इसके लिए करीब छह घंटे तक धुकनी चलानी पड़ती है। यही सबसे कठिन काम होता है। धुकनी पर लगातार खड़ा होकर इसे चलाना पड़ता है। उन्हें आदत होती है तो ज्यादा परेशानी नहीं होती है।

10 किलो पत्थर से एक किलो लोहा

विजय कुमार अगरिया ने बताया कि 10 किलो पत्थर से करीब एक किलो लोहा बनता है। उन्होंने कहा कि डिंडोरी के इलाके में आज भी यह परंपरा जीवित है। हमलोग लगातार वहां ऐसा करते हैं। उन्होंने कहा कि पत्थर से जो लोहा बनता है, उसमें कभी जंग नहीं लगता है।

लोहा से तैयार करते उपकरण

इस परंपरा को जीवित रखने के लिए हर जगह पर अब प्रदर्शनी लगाई जाती है। विजय कुमार अगरिया ने कहा कि हम खेती के लिए पहले इससे उपकरण तैयार करते थे। अब जो लोहा निकलता है, उससे हमलोग कुछ कलाकृतियों का निर्माण करते हैं। इसके बाद उसे बेचते हैं। हमलोगों की कोशिश है कि हमारी परंपराएं जीवित रहे।