
टाटा ग्रुप किसी परिचय का मोहताज नहीं है. इस कंपनी का इतिहास देश की आजादी से भी कई साल पुराना है. यहां तक कि अगर आज लोग मौर्य वंश के शासक सम्राट अशोक को ‘अशोक महान’ के नाम से जानते हैं उसका श्रेय भी टाटा ग्रुप को ही जाता है.
टाटा का इतिहास देश की आजादी से भी कई साल पुराना है
Tata Group
इस बात को 100 साल से भी ज्यादा हो चुके हैं, जब टाटा समूह ने दुनिया को मौर्य वंश के गौरवशाली इतिहास से मिलाने का महान काम किया. इसमें टाटा समूह के संस्थापक जमशेदजी टाटा के छोटे बेटे सर रतनजी टाटा का बहुत बड़ा योगदान था. अपने पिता के निधन के बाद रतनजी टाटा ने ही कंपनी की बागडोर संभाली. आजतक की एक स्टोरी के अनुसार Tata Stories: 40 Timeless Tales to Inspire You किताब में इस पूरी कहानी के बारे में बताया गया है.
ब्रिटिश सरकार ने सहयोग किया बंद
Wiki
दरअसल, उन दिनों भारत में लंबे समय से मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र और आधुनिक पटना के बीच संबंध स्थापित करने के प्रयास किए जा रहे थे. साल 1900 से पहले इसे पाटलिपुत्र की खोज के लिए आसपास के क्षेत्रों में थोड़ी बहुत खुदाई की गई लेकिन इससे कुछ खास सफलता नहीं मिली. 1903 तक ये सब ब्रिटिश सरकार के सहयोग से हो रहा था लेकिन इसके बाद सरकार ने पाटलिपुत्र की खोज के लिए और राशि देने से मना कर दिया.
सर रतनजी टाटा ने उठाया जिम्मा
इसके बाद साल 1912-13 में पाटलिपुत्र को खोजने का जिम्मा सर रतनजी टाटा ने उठाया. पुरातत्व महानिदेशक से राय-विचार करने के बाद. रतनजी टाटा ने ये वादा किया कि वह इस खोज के लिए हर साल 20,000 रुपये की सहयोग राशि देंगे. उन्होंने ये भी कहा कि वह ये सहयोग राशि तब तक देंगे जब तक ये खोज पूरी नहीं हो जाती. उनके इसी सहयोग के कारण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को पाटलिपुत्र की खोज करने में मदद मिली.
इसके बाद पुरातत्वविद् D. B. Spooner ने 1912-13 की सर्दियों के दौरान इस खोज को शुरू किया. सर रतनजी टाटा ने अपने देहांत तक इस खोज के लिए 75,000 रुपये का योगदान दिया. 1918 में उनका निधन हो गया. उनके इसी योगदान से आज देश सम्राट अशोक के वैभव से परिचित है.
मिली बड़ी सफलता
स्पूनर के नेतृत्व में की गई इस खुदाई की शुरुआत पटना के कुमराहार से हुई. सबसे पहले इस खुदाई में 10 फुट जमीन के अंदर से ईंटों की एक पुरानी दीवार मिली. 7 फरवरी 1913 को एक बड़ी सफलता तब हाथ लगी जब खुदाई में अशोक के सिंहासन कक्ष के खंभे खुदाई में मिले. सम्राट अशोक के इस दरबार की क्या शोभा रही होगी, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि खुदाई में दरबार के 100 स्तंभ मिले थे. इस तरह खुदाई से कई सिक्के, पट्टिकाएं और टेराकोटा की मूर्तियां बरामद की गईं. और अगले चार साल में पाटलिपुत्र का इतिहास सामने आता रहा.