नाहन, 29 सितंबर : हिमाचल प्रदेश के पच्छाद विधानसभा क्षेत्र में 40 साल से सक्रिय कांग्रेस के दिग्गज नेता गंगूराम मुसाफिर ने इस दौरान 7 चुनाव जीते, जबकि एक उप चुनाव सहित लगातार तीन विधानसभा चुनाव हारे। गौरतलब है कि मुसाफिर एक बार 2009 में लोकसभा का भी चुनाव हार गए थे। मगर विडंबना ये है कि वो भाजपा से बगावत करने का दम रखने वाली दयाल प्यारी को बेटी के तौर पर स्वीकार नहीं कर सके।
पच्छाद निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस के टिकट की जंग भी मुसाफिर व दयाल प्यारी के बीच है। पच्छाद के उप चुनाव तक कांग्रेस के खेमे में एकमात्र पसंद मुसाफिर ही थे, लेकिन भाजपा के खेमे में ऐसे समीकरण पैदा हुए कि बगावत कर दयाल प्यारी मैदान में कूद गई। कुछ अरसे बाद दयाल प्यारी ने भाजपा को झटका देकर कांग्रेस के दिल्ली मुख्यालय में हाथ का दामन थाम लिया।
लिहाजा, तीन साल से टिकट के लिए कांग्रेस को वैकल्पिक तौर पर दयाल प्यारी भी मिल गई, लेकिन राजनीति की प्रकाष्ठा देखिए कि मुसाफिर कतई भी टिकट का त्याग पार्टी हित में करने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं।
2019 के उप चुनाव के आंकड़ों पर अगर गौर की जाए तो भाजपा प्रत्याशी रीना कश्यप को 44.85 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि कांग्रेस के टिकट पर गंगूराम मुसाफिर 35.68 प्रतिशत वोट प्राप्त करने में सफल हुए थे।
वहीं, सत्तारुढ़ राजनीतिक दल के जबरदस्त दबाव के बावजूद भी दयाल प्यारी ने बगावत की हुंकार भर कर 21.56 प्रतिशत वोट हासिल किए। भाजपा के खिलाफ मुसाफिर व दयाल प्यारी ने 57 फीसदी वोट हासिल किए, जबकि अन्यों ने अढ़ाई प्रतिशत वोट हासिल किए थे। यानि, भाजपा के खिलाफ 59-60 प्रतिशत वोट पड़े थे।
राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो मुसाफिर अगर दयाल प्यारी को बेटी मान कर सिर पर हाथ रख देते तो कांग्रेस करिश्माई तरीके से भाजपा के समीकरण को पटखनी देने में कामयाब हो सकती है। सिरमौर में शिलाई व रेणुका जी विधानसभा क्षेत्रों से टिकट करीब-करीब तय हैं। एक वक्त पहले सबसे पहले मुसाफिर के टिकट की गारंटी होती थी, लेकिन इस निर्वाचन क्षेत्र में पिछले तीन सालों में राजनीतिक समीकरण बदले हैं।
विशेषज्ञों का ये भी मानना है कि बेटी को मैदान में उतार कर मुसाफिर पिता की भूमिका निभाते तो राजनीतिक जीवन का अंतिम पड़ाव भी एक मिसाल बनकर सामने आता, लेकिन राजनीति में ऐसा हो तो राजनीति ही क्या।
चूंकि, पच्छाद निर्वाचन क्षेत्र भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष व सांसद सुरेश कश्यप का गृह क्षेत्र भी है, लिहाजा यहां की राजनीति जबरदस्त तरीके से उफान पर आनी शुरू हो गई।
कुल मिलाकर कांग्रेस का टिकट तय होने के बाद ये देखना होगा कि कांग्रेस को बगावत का सामना करना पड़ेगा या नहीं।
ये भी हैं आंकड़े…
2017 में सुरेश कश्यप ने 54.26 प्रतिशत वोट हासिल किए थे, जबकि गंगूराम मुसाफिर को 42.73 प्रतिशत वोट मिले थे। इससे भी ये जाहिर होता है कि दयाल प्यारी ने 2019 के उप चुनाव में कांग्रेस व भाजपा के खेमों में ही सेंध लगाई थी। मुसाफिर को करीब 7 फीसदी तो भाजपा को 14 फीसदी के आसपास नुकसान हुआ था।
2012 में सुरेश कश्यप ने 50.8 प्रतिशत तो मुसाफिर ने 45.62 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। कांग्रेस के ग्राफ में भी पिछले तीन विधानसभा चुनाव में लगातार गिरावट हुई है। कांग्रेस की वोट प्रतिशतता 45.62 प्रतिशत से गिरकर 35.68 प्रतिशत रह गई। 2007 के विधानसभा चुनाव में मुसाफिर व सुरेश कश्यप के बीच कांटे की टक्कर हुई। मुसाफिर 25,383 वोट लेकर जीत गए थे, जबकि सुरेश कश्यप को 22,674 वोट हासिल हुए थे।