पूंजीवादी अमेरिका में अचानक यूनियनबाजी बढ़ गई है। गूगल (Google), ऐमजॉन (Amazon) और एपल (Apple) जैसी नए जमाने की कंपनियों में वर्कर्स यूनियन (workers union) बन रही हैं। 1930 की दशक में आई महामंदी के बाद अमेरिका में यूनियन मेंबरशिप में सबसे ज्यादा तेजी आई है। जानिए क्या है वजह..
नई दिल्ली: अमेरिका को पूंजीवाद का अगुवा माना जाता है। यानी पूरी तरह पूंजीपतियों का देश। जहां सारी नीतियां पूंजीपतियों के हिसाब से बनती हैं और लेबर यूनियन के लिए कोई जगह नहीं है। लेकिन आजकल वहां उल्टी गंगा बह रही है। गूगल (Google) और ऐमजॉन (Amazon) जैसी कंपनियों में वर्कर्स यूनियन बन रही हैं। पिछले साल दिसंबर में बरिस्ता में भी यूनियन बन गई। इसी हफ्ते ओकलाहामा में एपल (Apple) के एक स्टोर के वर्कर्स ने यूनियन को जॉइन करने के पक्ष में वोट दिया। इससे पहले मैरीलेंड में एपल के कर्मचारी भी ऐसा कर चुके थे। अगस्त में आए एक पोल के मुताबिक 71 फीसदी वर्कर्स लेबर यूनियन को सपोर्ट करते हैं। यह 1965 के बाद सबसे ज्यादा संख्या है।
1930 की दशक में आई महामंदी के बाद अमेरिका में यूनियन मेंबरशिप में सबसे ज्यादा तेजी आई है। रिपोर्ट्स के मुताबिक अक्टूबर 2021 से जून 2022 के दौरान यूनियन एक्टिविटी में पिछले साल की समान अवधि की तुलना में 58 फीसदी तेजी आई है। दिलचस्प बात यह है कि यूनियन बनाने में नए जमाने की कंपनियों के वर्कर्स आगे हैं। इस साल अप्रैल में जब ऐमजॉन के एक बड़े वेयरहाउस के वर्कर्स ने यूनियन बनाने फैसला किया तो अमेरिका का कॉरपोरेट जगत ने इसे गंभीरता से लेना शुरू कर दिया।
क्या है वजह
जानकारों का कहना है कि पढ़े-लिखे युवाओं को कम वेतन मिल रहा है। यही वजह है कि उनमें असंतोष पनप रहा है। सैन फ्रांसिस्को स्टेट यूनिवर्सिटी में लेबर एंड एम्प्लॉयमेंट स्टडीज के प्रोफेसर जॉन लोगान ने कहा कि ये वर्कर ओवरवर्क्ड, अंडरपेड एंड ओवर-एजुकेडेट हैं। कोरोना महामारी ने भी इसमें अहम भूमिका निभाई है। कम वेतन पाने वाले वर्कर्स को नौकरी जाने का डर लगा रहता है। वर्कप्लेस पर सुविधाओं की कमी भी इसकी एक वजह है। ऐमजॉन के वेयरहाउस के वर्कर्स ने यूनियन बनाने के बाद फेस मास्क और दूसरे सेफ्टी गेयर्स की कमी का हवाला देते हुए वॉकआउट किया था।
लेबर एक्सपर्ट और सिटी यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क में प्रोफेसर रूथ मिल्कमैन ने कहा कि वर्कर्स न केवल सम्मानजनक वेतन चाहते हैं बल्कि अपने लिए सम्मान भी चाहते हैं। महामारी के कारण बड़ी संख्या में लोगों ने नौकरी छोड़ी है। इससे लोग ज्यादा मुखर हो गए हैं। जो बाइडेन प्रशासन ने भी वर्कर्स की मांगों से हमदर्दी जताई है। इससे भी यूनियनबाजी को हवा मिली है। 1970 के दशक से अमेरिकी में वेतन की तुलना में प्रॉडक्टिविटी कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ी है। जानकारों का कहना है कि स्थाई इकनॉमिक ग्रोथ के लिए दोनों के बीच तालमेल जरूरी है।