World Mental Health Day 2022: हम कोविड-19 के मुश्किल दौर से गुजरे है, महामारी के दौर के रिस्पांस की योजनाओं में मानसिक स्वास्थ्य और मनोवैज्ञानिक समर्थन और निवेश को बढ़ना ही चाहिए. खासतौर पर बच्चों और युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी के लिए. तथ्य बततो हैं कि बच्चों की मानसिक सेहत पर अतिरिक्त ध्यान देने की जरूरत है
हम जीवन में शांति चाहते हैं, खुशी, प्यार, दोस्ती, मुस्कुराहट, समस्याओं का समाधान चाहते है, लेकिन जब अपनी जीवन यात्रा को देखते है तो इस यात्रा की अवधि में थोड़े समय के लिए होता इससे उलट ही है, जिसका प्रभाव लम्बे समय के लिए हमारे शरीर, बुद्धि, भावनाओं और हमारे जीवन के उद्देश्यों पर पड़ता है. तो दुख, अशांति, उग्रता, घृणा, दुश्मनी, द्वंद मुश्किल में डाल देते है. गुस्सा आता है, तनाव बढ़ता है, तनाव की अधिकता से अवसाद की स्थिति बन जाती है. यह और भी अधिक घातक होता है जब हमारे पास इन सबका सामने करने के लिए कोई तरीका, कोई साथी और मदद नहीं हो पाती. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद की 2017 की रपट के अनुसार हर सात में से एक भारतीय किसी ना किसी मानसिक विकार से ग्रसित रहा.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा था कि कुछ ही साल में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी बीमारी अवसाद दुनिया की दूसरी बड़ी बीमारी बन जाएगी. सामान्य जानकारी और पिछले दो-तीन सालों के बच्चों, शिक्षकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ बातचीत में यही उभरता है, कि मानसिक तनाव की स्थिति में बहुत अकेले हो जाते है और अलग-अलग तरह से तनाव के दौर में अपनी प्रतिक्रिया करते है. कईं स्थितियों में घातक कदम भी उठा लेते है. इसकी भयावहता का अंदाज हमें राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की सालाना रिपोर्ट्स से मिलता है. इनके अनुसार हमारे देश में वर्ष 2020 में 1,53,052 और 2021 में 1,64,063 लोगों ने खुद से ही अपनी जान गंवाई है. इन दोनों साल में 18 साल से कम उम्र के बच्चों द्वारा की गई आत्महत्या की संख्या दस हजार से अधिक थी, जो कि हमारे समाज की मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति एक बुरा दृश्य दिखाती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मानसिक स्वास्थ्य “सलामती की एक स्थिति है जिसमें किसी व्यक्ति को अपनी क्षमताओं का एहसास रहता है, वह जीवन के सामान्य तनावों का सामना कर सकता है, लाभकारी और उपयोगी रूप से काम कर सकता है और अपने समाज के प्रति योगदान करने में सक्षम होता है.”
मानसिक स्वास्थ्य एक आधारभूत मानव अधिकार है और व्यक्तिगत, सामुदायिक और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. हम कोविड-19 के मुश्किल दौर से गुजरे है, महामारी के दौर के रिस्पांस की योजनाओं में मानसिक स्वास्थ्य और मनोवैज्ञानिक समर्थन और निवेश को बढ़ना ही चाहिए. खासतौर पर बच्चों और युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतरी के लिए. सतत विकास लक्ष्यों की 2022 की रिपोर्ट के अनुसार केवल 20 प्रतिशत देशों ने विद्यार्थियो की मानसिक स्वास्थ्य और मनोवैज्ञानिक मदद के लिए अतिरिक्त प्रयास किए है, विद्यार्थियों के बीच बढ़ रही चिंता और अवसाद की बढ़ोतरी को देखते हुए यह परेशान करने वाला है.
भारत में वर्ष 2022-23 के बजट में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी कहा था कि महामारी के कारण सभी आयुवर्ग के लोगों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधित मुश्किल बढ़ी है, केंद्र सरकार ने नेशनल टेली मेंटल हेल्थ प्रोग्राम की घोषणा की थी. हाल ही में मिली जानकारी के अनुसार जल्द ही यह कार्यक्रम की शुरू होने जा रहा है, जिसमें टोल-फ्री हेल्प-लाईन नंबर के माध्यम से काल करने वाले व्यक्ति की भाषा में देशभर में बड़े स्तर पर लोगों के मानसिक स्वास्थ्य संबंधित मदद दी जा सकेगी. इस दिशा में मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के प्रावधानों को सभी राज्यों में बेहतर तरीके से लागू करना चाहिए.
ऊपर दिए गए आंकड़ों के अनुसार बच्चों की मानसिक सेहत पर अतिरिक्त ध्यान देने की जरूरत है. बच्चों के लिए चाइल्ड हेल्पलाइन नंबर 1098 तो है ही. इसको भी स्कूलों में अधिक से अधिक प्रचारित करना चाहिए. मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धित जागरूकता कार्यक्रमों को नियमित किया जाना चाहिए. विद्यालयों में शिक्षकों पालकों की मदद से सुरक्षित माहौल बनाने की भी जरूरत है, ताकि बच्चों को मुश्किल वक्त में तुरंत सहायता मिल सके. स्कूलों में काउंसलर की व्यवस्था की जाना चाहिए, बच्चों को यह आश्वस्त करें कि वे अकेले नही है किसी भी परिस्थिति में शिक्षक, स्कूल का सहयोग और समर्थन हमेशा मिलता रहेगा. शिक्षकों को काउंसिलिंग सपोर्ट स्किल को भी विकसित करने के सत्र किए जाना चाहिए.
जब कहा जा रहा है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से कोविड-19 महामारी में सबसे अधिक जीवन प्रत्याशा की कमी आई है, इन मुश्किल हालातों से निकलने में बहुत समय लगेगा. ऐसे में विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 10 अक्टूबर 2022 की थीम ‘मानसिक स्वास्थ्य एवं सभी के कल्याण को एक वैश्विक प्राथमिकता बनाना’ प्रासंगिक है. इसको वैश्विक प्राथमिकता बनाने में व्यक्ति से लेकर शासन प्रशासन की भी जिम्मेदारी है. ऐसे में सरकार, प्रशासन से भी मदद की उम्मीद बढ़ रही है. मानसिक स्वास्थ्य और सभी के कल्याण का काम एक खास दिवस की औपचारिकता नही बल्कि हर दिन हर पल का काम है.
आज हम सबको भी एक दूसरे के साथ की जरूरत है, हम साथ देकर एक दूसरे को संबल दे सकें, इससे बेहतर आज के हालातों में मानवता का और भला क्या काम होगा. तो अपने अंदर और आसपास ध्यान से देखिए जहां भी मदद की जरूरत हो मदद मांगिए, मदद दीजिए, ऐसा ना हो कि कोई अंदर ही अंदर घुट रहा हो और उसकी आवाज़ हमको सुनाई ना दे. बात करते रहिए, अपने आसपास लोग ना भी बोलें तो उनके मौन को सुनिए, समझिए. विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा ज़ारी एक छोटी फिल्म I have a black dog, his name of depression के अंत में कहा है कि अगर आप मुश्किल में है तो मदद मांगने से ना डरिए, इसमें बिल्कुल भी शर्म की बात नही, शर्म की बात केवल यह है कि जीना छोड़ दें.