वर्ष 1983 से हिक्किम गांव में यह डाकघर एक घर में चल रहा था। अब इसे नए स्वरूप में तैयार किया गया है। दुनिया के सबसे ऊंचे लेटर बॉक्स नुमा इस डाकघर में आज भी रोजाना औसतन 500 चिट्ठियां पहुंचती हैं।
14,567 फीट यानी 4,440 मीटर की ऊंचाई पर जहां सांस लेना भी मुश्किल होता है, वहां 1983 से दूरदराज के दुर्गम गांवों में आज भी चिट्ठियां पहुंचा रहा हिक्किम डाकघर। दुनिया के सबसे ऊंचे लेटर बॉक्स नुमा इस डाकघर में आज भी रोजाना औसतन 500 चिट्ठियां पहुंचती हैं। करीब 200 पत्र और पार्सल भी प्रतिदिन लोगों के घर तक पहुंचाए जाते हैं। यह डाकघर विश्व का सबसे ऊंचा पत्र पेटी की तरह दिखने वाला पहला डाकघर है
इस डाकघर को इसी साल लेटर बॉक्स नुमा बनाया गया है। यह न केवल देखने में आकर्षक है बल्कि इसके बनने से क्षेत्र के लोगों में डाक सेवा के प्रति रुचि भी बढ़ी है। वर्ष 1983 से हिक्किम गांव में यह डाकघर एक घर में चल रहा था। अब इसे नए स्वरूप में तैयार किया गया है। रामपुर डाक मंडल के अंतर्गत आने वाला यह डाकघर पूरी तरह डिजिटल है। सरकारी योजनाओं सहित लोगों की पेंशन घर-घर पहुंचाने में भी यह महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
आधुनिकता के दौर में दुर्गम क्षेत्रों में भी पार्सल पहुंचाने व अन्य बैंकिंग सुविधाओं को डाकघर से जोड़ा गया है। बेशक संचार के साधनों में वृद्धि के कारण डाक प्रणाली की उपयोगिता कम हुई है, लेकिन इसका महत्व खत्म नहीं हुआ है। नए स्वरूप में बना डाकघर सैलानियों को भी अपनी ओर खींच रहा है। रामपुर डाक मंडल के अधीक्षक सुधीर वर्मा ने कहा कि सड़क के पास बने लेटर बॉक्स नुमा इस डाकघर में डाक पत्रों के साथ सरकारी डाक सहित पार्सल की भी सुविधा है।
कई निजी कंपनियों के पार्सल इसी डाकघर से जरिये आम लोगों को पहुंचाए जा रहे हैं। इस डाकघर से जाने वाले पत्र 300 से बढ़कर 500 तक पहुंच गए हैं। अतिरिक्त उपायुक्त काजा अभिषेक वर्मा ने कहा कि 14567 फीट की ऊंचाई पर बना लेटर बॉक्स नुमा डाकघर से स्पीति में पर्यटन कारोबार को भी बढ़ावा मिल रहा है।
जून से अक्तूबर तक ही हो पाता है काम
हिक्किम के आसपास के गांवों में संचार का एकमात्र साधन चिट्ठियां ही हैं। इस डाकघर के जिम्मे हिक्किम के अलावा लांगचा-1, लांगचा-2 और कौमिक गांवों में चिट्ठियां पहुंचाना है। स्पीति के रास्ते साल में महज कुछ महीनों तक ही खुलते हैं। बर्फ पिघलने के बाद जून से अक्तूबर तक ही यहां आना संभव हो पाता है। बाकी महीनों में तो यहां बर्फ जमी रहती है।
जीवाश्म के लिए भी प्रसिद्ध है हिक्किम गांव
हिक्किम गांव सिर्फ डाकघर के लिए ही नहीं बल्कि यहां पाए जाने वाले फोसिल्स यानी जीवाश्म के लिए भी प्रसिद्ध है। यहां अक्सर पत्थरों पर अंकित कई जीवाश्म मिल सकते हैं। मान्यता है कि जिसे यह जीवाश्म मिलता है, वह भाग्यशाली होता है।
आज डाक दिवस
9 अक्तूबर को पूरी दुनिया में विश्व डाक दिवस के तौर पर मनाया जाता है। वर्ष 1874 में इसी दिन यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का गठन करने के लिए स्विट्जरलैंड की राजधानी बर्न में 22 देशों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। 1969 में जापान के टोकियो शहर में आयोजित सम्मेलन में विश्व डाक दिवस के रूप में इसी दिन को चयन किए जाने की घोषणा की गई थी। एक जुलाई 1876 को यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का सदस्य बनने वाला भारत पहला एशियाई देश था।