‘मंडे मोटिवेशन’ में जानिए उस शख्स की कहानी जो कभी वेटर और गाइड की नौकरी करता था, लेकिन 30 और 40 के दशक में वह बॉलीवुड का सबसे तगड़ी कमाई करने वाले कॉमेडियन बना। यह थे याकुब खान, जिन्होंने जॉनी वॉकर को भी टक्कर दी।
नवभारत टाइम्स ऑनलाइन की ‘मंडे मोटिवेशन’ सीरीज में हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने गुजारे के लिए वेटर से लेकर गाइड तक कई छोटी-मोटी नौकरियां कीं और फिर बॉलीवुड का टॉप कॉमेडियन बना। यह थे एक्टर याकुब खान। याकुब का पूरा नाम याकुब महबूब खान था। उन्होंने 30 और 40 के दशक में बॉलीवुड में अपनी कॉमेडी से तहलका मचा दिया था। याकुब खान को विलेन के किरदारों में भी खूब पसंद किया गया। याकुब खान ने एक मामूली वेटर से बॉलीवुड के टॉप कॉमेडियन तक का जो सफर तय किया, वह किसी प्रेरणा से कम नहीं है।
याकुब का जन्म 3 अप्रैल 1903 को जबलपुर में हुआ था। याकुब के पिता का लकड़ी का काम था और वह चाहते थे कि बेटा भी वही काम संभाले। लेकिन याकुब की इसमें जरा भी दिलचस्पी नहीं थी। बताया जाता है कि याकुब यह सोचकर एक दिन घर से भागकर लखनऊ चले गए कि कहीं पिता उन्हें लकड़ी के काम में ही न झोंक दें। लखनऊ जाने के बाद याकुब गुजारे के लिए अलग-अलग काम करने लगे। दिनभर की खाक छानने और इधर-उधर भटकने के बाद याकुब महबूब खान ने एक मोटर मैकेनिक के रूप में काम करना शुरू किया।
पहले बने मैकेनिक, फिर की वेटर और गाइड की नौकरी
याकुब ने कुछ समय तक मैकेनिक के तौर पर काम किया और जब बात नहीं जमी तो वह वेटर की नौकरी करने लगे। बाद में वह एक शिप पर रसोई में काम करने वाले कारीगर के रूप में जुड़ गए। इस शिप पर काम करने की बदौलत याकुब को लंदन से लेकर पेरिस जैसे कई देशों में घूमने का मौका मिला। याकुब कुछ समय बाद कोलकाता लौट आए और यहां वह एक टूरिस्ट गाइड बन गए। याकुब जब शिप पर नौकरी कर रहे थे तो उस दौरान उन्हें अलग-अलग फिल्में देखने का मौका भी मिला। बताया जाता है कि याकुब ने खूब अमेरिकन फिल्में देखीं। इसी से उनके मन में एक्टर बनने का सपना पैदा हुआ।
‘बाजीराव मस्तानी’ थी याकुब की पहली फिल्म
इसी सपने के साथ याकुब महबूब खान सबकुछ छोड़कर मुंबई (तब बॉम्बे) आए गए और शारदा फिल्म कंपनी से जुड़ गए। उन्होंने इस कंपनी की फिल्म ‘बाजीराव मस्तानी’ में काम किया, जोकि एक साइलेंट फिल्म थी। यह फिल्म 1925 में आई थी। इस फिल्म के पांच साल बाद याकुब ‘मेरी जान’ में नजर आए, जोकि उनकी पहली बोलती फिल्म थी। इस फिल्म में याकुब ने एक राजकुमार का किरदार निभाया था। लेकिन 1940 में आई फिल्म ‘औरत’ में निभाए बिरजू के किरदार ने याकुब के करियर की दिशा ही पलट दी। याकुब की इस परफॉर्मेंस को भारतीय सिनेमा की सबसे दमदार परफॉर्मेंस में से एक माना जाता है। बिरजू के इसी किरदार को ‘मदर इंडिया’ में सुनील दत्त ने निभाया था।
दिलीप कुमार की फिल्म में खास तवज्जो, थे बड़े स्टार
तीस के दशक में याकुब ने करीब 34 फिल्मों में काम किया। इनमें से कुछ में वह विलेन के रोल में नजर आए। बाद में याकुब डायरेक्टर बन गए। उन्होंने ‘बे खराब जान’, ‘उसकी तमन्ना’ और ‘सागर का शेर’ जैसी फिल्में डायरेक्ट कीं। उस दौर में याकुब की लोकप्रियता कितनी थी, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जाता सकता है कि दिलीप कुमार स्टारर ‘हलचल’ में याकुब को स्पेशल मेंशन दिया गया था। इस फिल्म के क्रेडिट में लिखा गया था- आपका फेवरेट याकुब।’
जॉनी वॉकर जैसे कॉमेडियंस को टक्कर, फिल्मे भी कीं डायरेक्ट
याकुब ने उस दौर में जॉनी वॉकर, आगा और गोप जैसे कॉमेडियंस के बीच अपनी एक अलग जगह बनाई थी। याकुब की पॉपुलैरिटी इतनी थी कि उन्हें अपनी फिल्मों में लेने के लिए मेकर्स बेताब रहते थे। वह 1930 से लेकर 1950 तक बॉलीवुड के सबसे ज्यादा फीस पाने वाले कॉमेडियन रहे। लेकिन याकुब को जितनी पॉपुलैरिटी कॉमेडी और विलेन के किरदारों से मिली थी, उतनी पॉपुलैरिटी वह डायरेक्टर बनकर हासिल नहीं कर पाए। उनकी कई फिल्में नहीं चलीं। याकुब ने 1949 में आखिरी फिल्म ‘आई’ डायरेक्ट की, जो बुरी तरह पिट गई। इस कारण याकुब को बहुत नुकसान उठाना पड़। उन्होंने अपना काफी पैसा इस फिल्म में गंवा दिया। 24 अगस्त 1958 को याकुब महबूब खान की मौत हो गई। उस समय वह 55 साल के थे।