योगी सरकार ने बड़ा ऐक्शन लेते हुए पिछले साल जून में ही उत्तर प्रदेश पुलिस की बागडोर संभालने वाले DGP मुकुल गोयल को पद से हटा दिया है। सीएम योगी आदित्यनाथ की कार्यप्रणाली, रात-दिन काम, छोटी से छोटी घटना की खबर और उस पर हुई कार्रवाई पर नजर रखना, ये कुछ ऐसी बातें थी, जिनसे मुकुल गोयल कदमताल नहीं कर पाए।
योगी सरकार ने बड़ा ऐक्शन लेते हुए पिछले साल जून में ही उत्तर प्रदेश पुलिस की बागडोर संभालने वाले DGP मुकुल गोयल को पद से हटा दिया है। सीएम योगी आदित्यनाथ की कार्यप्रणाली, रात-दिन काम, छोटी से छोटी घटना की खबर और उस पर हुई कार्रवाई पर नजर रखना, ये कुछ ऐसी बातें थी, जिनसे मुकुल गोयल कदमताल नहीं कर पाए। यही उनको हटाए जाने की सबसे बड़ी वजह भी बनी। इसके साथ ही शासकीय और विभागीय कार्यों की अवहेलना और पुलिसिंग में ध्यान नहीं देने जैसी वजहें उन्हें पद से हटाये जाने का कारण बनीं।
1987 बैच के IPS अधिकारी मुकुल यूपी पुलिस के महानिदेशक के तौर पर एक साल भी कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। दरअसल सीएम की पसंद हमेशा वह अफसर रहे जो मिशन मोड पर काम करते हों। लेकिन केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से करीब पांच साल बाद यूपी लौटे मुकुल गोयल सीएम योगी आदित्यनाथ की चाल से कदमताल नहीं कर पाए। साथ ही उनके पूर्ववर्ती सपा सरकार के करीबी होने, उनकी तैनाती के बाद अखिलेश द्वारा उनके पक्ष में किए गए ट्वीट ने भी उन्हें योगी सरकार के बीच असहज कर दिया। इसके साथ ही कुछ और भी मामले रहे, जिसकी वजह से मुकुल को हटा दिया गया।
डीजीपी ने चार्ज संभालने के बाद जब लखनऊ की सबसे प्रमुख कोतवाली हजरतगंज का निरीक्षण किया तो उस दिन उनका दौरा खूब चर्चा में रहा। कोतवाली के निरीक्षण के बाद उन्होंने इंस्पेक्टर हजरतगंज श्याम बाबू शुक्ला को लापरवाह पाते हुए हटाए जाने की घोषणा कर दी। डीजीपी मुख्यालय ने इस संबंध में प्रेसनोट भी जारी कर दिया।
हालांकि डीजीपी के बयान और मुख्यालय के प्रेस नोट के बाद भी जब इंस्पेक्टर हजरतगंज को नहीं हटाया गया तो यह पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन गया। इसके बाद सीएम योगी ने कानून-व्यवस्था की बैठक में ताकीद भी दी कि डीजीपी मुख्यालय या सीएम ऑफिस के कहने पर कहीं किसी इंस्पेक्टर की तैनाती नहीं की जाएगी।
पिछले साल अक्टूबर में लखीमपुर जिले के तिकुनिया में हुई हिंसा के बाद भी डीजीपी मुकुल गोयल ने निष्क्रियता दिखाई। लखीमपुर के साथ ही अन्य जिलों में भी कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने पर ADG (कानून व्यवस्था) प्रशांत कुमार ने खुद आगे आकर मोर्चा संभाला। उन्होंने 2 दिनों तक जिले में कैंप भी किया। लेकिन मुकुल ना तो लखीमपुर गए और ना ही कहीं और पुलिसिंग करते नजर आए।
बीते एक महीने के दौरान सीएम योगी के यहां हुई दो प्रमुख बैठकों में डीजीपी की गैरमौजूदगी भी खूब चर्चा का विषय रही। इसे भी डीजीपी के खिलाफ ही देखा गया। इसके पीछे एक बड़ी वजह यह भी थी कि अपराध की बड़ी घटनाओं के बाद जिस तरह से सक्रियता या मौके पर पहुंचने की अपेक्षा थी, उस पर भी वह खरे नहीं उतर रहे थे। इन दो बैठकों के बाद ही डीजीपी की विदाई की चर्चाएं तेज हो गईं।
यह भी चर्चा है कि विधानसभा चुनाव की मतगणना से एक दिन पहले कुछ अफसरों को किए गए फोन भी डीजीपी को हटाए जाने की एक बड़ी वजह हैं। मुकुल सपा सरकार में उस दौरान एडीजी एलओ बनाए गए थे, जब पश्चिम यूपी मुजफ्फरनगर दंगे की आग में झुलस रहा था। करीब डेढ़ साल तक वह एडीजी एलओ के पद पर रहे। हालांकि बाद में सपा सरकार ने उन्हें हटाकर दलजीत चौधरी को एडीजी एलओ बना दिया था।
दरअसल चुनाव के दौरान करीब एक दर्जन पुलिस अफसरों के नाम इस बात को लेकर चर्चा में आए थे कि वे सपा मुखिया और उनके करीबियों के संपर्क में हैं। इनमें से ज्यादातर अफसरों को सरकार के दोबारा सत्ता में आने के बाद एकदम किनारे लगा भी दिया गया।