देश की राजधानी दिल्ली. इतिहास में कई शासकों ने इस शहर को अपनी राजधानी बनाया. दिल्ली की आबो-हवा ने कई वंशों को फलते-फूलते और मिट्टी में मिलते देखा है. दिल्ली की ऐतिहासिक इमारतों में भी अलग-अलग वास्तुकला के नमूने दिखते हैं. कुछ इमारतें शान-ओ-शौकत (जैसे-हुमायूं का मक़बरा) की गवाही देती हैं, तो कुछ क्रूरता और निर्दयता की.
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भागते-दौड़ते शहर के बीच में ऐसी ही एक इमारत है, नाम है चोर मीनार. हौज़ ख़ास रिहायशी इलाके के आर ब्लॉक में खड़ी ये मीनार आज लगभग लोगों की नज़रों से छिपी हुई है. ग़ौरतलब है कि कभी इस मीनार के आस-पास सिर्फ़ मृत्यु की बू आती थी.
अलाउद्दीन खिलजी ने बनवाई
13वीं शताब्दी में अलाउद्दीन खिलजी (1296ई से 1316ई तक) के शासनकाल में चोर मीनार बनवाई गई. अलाउद्दीन खिलजी का नाम इतिहास के सबसे क्रूर शासकों में शामिल है.
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चोर मिनार दहशत और ख़ौफ़ की गवाही देता था. दुनियाभर में शासकों ने क़ौम में ख़ौफ़ पैदा करने के लिये ऐसी इमारतें बनवाईं.
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चोर मीनार क्यों बनवाई गई?
अलाउद्दीन खिलजी ने जलाउद्दीन खिलजी से तख़्त छीन लिया और ख़ुद अमीर-ए-तुज़ुक बन गया. खिलजी के शासनकाल में मंगोल भारत में घुसने और भारत की भूमि पर कब्ज़ा करने की कोशिश कर रहे थे. मंगोल दिल्ली की सीमा तक पहुंच गये. दिल्ली सल्तन ने मंगोल सेना को हराया. कहते हैं कि 1305 में अमरोहा स्थित सिरी किले में हुये युद्ध के बाद 8000 मंगोल सैनिकों की हत्या कर दी गई थी. चोर मीनार पर भी कुछ मंगोलों को मारा गया था और उनके सिर इस मिनार से टांगे गये थे.
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चोर मीनार को चोर, डकैत, घुसपैठियों को डराने के लिये बनाया गया था. इस मीनार में 225 छेद थे और हर छेद से मृतकों के सिर लटकाये जाते थे. आम जनता के लिये बहुत बड़ा संदेश था कि ग़लत गतिविधियों में हिस्सा लेने से ये हश्र हो सकता है.
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राना सफ़वी के मुताबिक़, इस मीनार का इतिहास में कहीं ज़िक्र नहीं मिलता और शायद ये जान-बूझकर ही किया गया था. पश्चिम बंगाल के मालदा में भी ऐसी ही एक मीनार है, जहां से मुग़ल गवर्नर विद्रोहियों को फांसी देते थे.
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चोर मीनार की ईंटें सैंकड़ों मौतों की गवाह हैं. आज इस मीनार से गुज़रने पर ये एहसास नहीं होता. ये इमारत भी इतिहास की कई बदनसीब इमारतों में से है, जो ज़िन्दा तो हैं लेकिन अपना रुतबा खो चुकी हैं.