दो धर्मों की समानता को दर्शाता किला –
यह किला 1200 ईसवी में बना था। किला शहरी की पहाड़ी पर स्थित है। दो धर्मों की समानता को दर्शाने वाले इस किले के भीतर एक मंदिर और एक मस्जिद है। भोपाल शहर में स्थित 800 साल पुराने किले में 9 प्रवेश द्वार और 13 टॉवर हैं। इसके अलावा यहां कई गुंबद और मध्यकाल की कई इमारतों के अवशेष भी मौजूद हैं। हालांकि, अब यह महल सैकड़ों चमगादड़ों का घर है।
किले का इतिहास है गौरवशाली –
इस किले का इतिहास गौरवशाली रहा है। यहां कई राजाओं ने शासन किया था। इनमें से एक थे शेरशाह सूरी। बताया जाता है कि शेरशाह सूरी ने इस किले को जीतने के लिए अपना सब कुछ दाव पर लगा दिया। उन्होंने किले पर राज करने के लिए तोप बनाने के लिए तांबे के सिक्कों को पिघलाया था। अपनी इस मेहनत की बदौलत ही वह किले को जीतने में कामयाब हो पाए।
धोखे का सहारा लिया –
यह भी कहा जाता है कि 1543 ईस्वी में शेरशाह सूरी ने इस किले को जीतने के लिए धोखे का सहारा लिया। बताते हैं कि उस समय इस किले पर राजा पूरणमल का शासन था। जब उसे पता चला कि उसके साथ छल या धोखा किया गया है, तो उसने अपने दुश्मनों से अपनी पत्नी को बचाने के लिए उसका ही गला काट दिया।
यहां सोने में बदल दिया जाता है लोहे का पत्थर भी –
इस किले के बारे में एक और दिलचस्प तथ्य है, जिसके बारे में शायद कोई नहीं जानता। कहते हैं कि राजा राजसेन के पास एक पारस पत्थर है, जो लोहे को भी सोने में बदल सकता है। यह एक रहस्यमय पत्थर है, जिसके लिए काफी लड़ाइयां भी हुईं। जब राजा राजसेन हार गए, तो उन्होंने इसे झील में फेंक दिया। हालांकि अन्य राजाओं से इस पत्थर को तलाशने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह पत्थर कभी नहीं मिला।