हिमाचल प्रदेश के वन विभाग में वनरक्षकों (Forest Guard) की वरिष्ठता सूची को लेकर उच्च न्यायालय (HP High Court) ने अहम फैसला सुनाया है। 2007 में नियुक्त वनरक्षकों की 2019 तक वरिष्ठता सूची नियुक्ति की तिथि के आधार पर की जाती रही है। ये प्रक्रिया भर्ती व पदोन्नति नियम 1978 के मुताबिक सही थी।
विभाग में 1978 से 2019 तक इन्हीं नियमों के तहत पदोन्नतियां हुई, लेकिन 2019 में 8 अगस्त को प्रधान मुख्य अरण्यपाल ने वरिष्ठता सूची व भर्ती व पदोन्नति नियम 1978 को दरकिनार करते हुए मेरिट के आधार पर वरिष्ठता का फरमान जारी कर दिया। इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई। 2022 में उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने विभाग के निर्णय को कायम रखा। इसके बाद विभाग ने 15 दिन के भीतर पदोन्नतियां भी दे दी।
एकल पीठ के फैसले को वनरक्षक संदीप, योगेश, इंतजार व सतीश इत्यादि ने उच्च न्यायालय की दोहरी पीठ के समक्ष अपील की। डबल बैंच ने 22 मार्च 2023 को एकल पीठ के आदेश को निरस्त कर दिया। साथ ही 5 व 7 सितंबर 2022 को पदोन्नत वनरक्षकों की पदोन्नतियां नियुक्ति की तिथि के आधार पर देने का निर्णय सुनाया, लेकिन वन विभाग द्वारा आदेश को न मानकर पदोन्नत वनरक्षकों को निर्णय आने के बाद भी पदोन्नत वनरक्षकों को नियुक्ति आदेश जारी किए थे। उच्च न्यायालय के आदेशों की सरासर अवहेलना की गई थी। डबल बैंच के निर्णय पर पुनर्याचिका भी दायर की थी।
31 मई को न्यायधीश ज्योत्सना रेवाल दुआ व न्यायाधीश सत्येन वैद्य की दोहरी पीठ ने तथ्यहीन करार दिया। साथ ही वन विभाग को नियुक्ति की तिथि के आधार पर पदोन्नतियां देने को भी कहा। अदालत ने ये भी कहा कि मुकदमेबाजी की प्रक्रिया पूरी होने पर पुनर्विचार याचिका दायर करने का हक नहीं है।
22 मार्च 2023 के आदेश को भी सही ठहराया गया। प्रेस विज्ञप्ति में ये भी बताया गया कि वन विभाग ने 22 मार्च 2023 के आदेश की पालना दो महीने बीत जाने के बाद भी नहीं की है। वन विभाग में पदोन्नति विसंगतियों के खिलाफ अधिवक्ता देवेन खन्ना व बीसी नेगी ने पैरवी की थी।