बॉक्सर नीतू घंघस (Boxer Nitu Ghanghas) का नाम बॉक्सिंग इतिहास की किताब में अमर हो गया है. बीते शनिवार को नीतू घंघस ने महिला बॉक्सिंग चैंपियनशिप्स (Women’s Boxing Championships) में 48 किलोग्राम वर्ग में गोल्ड मेडल जीता. नीतू घंघस ने मंगोलिया की Lutsaikhan Altansetseg को 5-0 से मात दी. इस जीते के साथ ही नीतू ने अपने गृह राज्य हरियाणा का भी गौरव बढ़ाया. हरियाणा के मुक्केबाज़ी जगत के इतिहास में गोल्ड जीतने वाली पहली बॉक्सर बन गई हैं नीतू.
नीतू घंघस ने रच दिया इतिहास
ANI
दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में बीते शनिवार को हरियाणा की छोरी, नीतू घंघस ने इतिहास रच दिया. ज़िला भिवानी के धनाना गांव की नीतू ने इतिहास रचने के साथ ही दूसरे बॉक्सर्स के लिए नए रास्ते भी बना दिए. गौरतलब है कि हरियाणा के छोटे से गांव से निकलकर वर्ल्ड चैंपियन बनने का नीतू का सफ़र मुश्किलों से भरा हुआ था. उन्होंने कदम कदम पर कई परिक्षाएं देनी पड़ी.
12 साल की उम्र में रिंग में उतरी
Twitter
NDTV के लेख के अनुसार बचपन से नीतू छोड़ी गर्ममिजाज़ी थीं. अक्सर स्कूल में उनकी लड़ाई हो जाती थी, पिता, जय भगवान ने बेटी में हुनर देखा और 12 साल की नीतू को बॉक्सिंग रिंग में भेजने का निर्णय लिया. BBC के लेख के अनुसार, 2008 में बीजिंग ओलंपिक में विजेंदर को बॉक्सिंग में कांस्य पदक जीतता देख नीतू की आंखें चमक गईं. उनके अंदर भी बॉक्सिंग का पैशन जागा.
कड़ी मेहनत और रिंग में पसीना बहाने का परिणाम ये हुआ कि 2 साल बाद ही हरियाणा के राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में नीतू ने पदक जीतकर सबको हैरान कर दिया.
पिता की नौकरी पर बन आई
पिता जय भगवान को पता था कि जो रास्ता उन्होंने चुना है, बेटी ने जो सपना देखा है वो आसान नहीं होगा. इशके बावजूद उन्होंने अपनी बेटी को बॉक्सर बनाने का निर्णय लिया.
नीतू के पिता हरियाणा विधान सभा में नौकरी करते थे. बेटी को मुक्केबाज़ बनाने के लिए वो चार साल तक बिना वेतन की छुट्टी पर रहे. बॉक्सिंग के लिए नीतू को भिवानी मुक्केबाज़ क्लब ले जाना पड़ता था. रोज़ाना 20 किलोमीटर का सफ़र तय करके वो बेटी को प्रैक्टिस करवाने ले जाते थे. जब बेटी को जूनियर लेवल पर नेशनल मेडल मिला, तब पिता ने दोबारा नौकरी जॉइन की.
Wiki Bio
मां ने सुने ताने
गांव की लड़की रिंग में छोटे कपड़े पहनकर पंच लगा रही थी, ये गांववालों से बर्दाशत नहीं हुआ. नीतू की मां को बहुत ताने सुनने पड़े. नीतू की मां, मुकेश देवी नीतू को बॉक्सर बनाने के पक्ष में नहीं थी. उन्हें लगता था कि बेटी के चेहरे पर चोट लग जाएजी, चेहरा बिगड़ने पर उससे शादी कौन करेगा, मां को ये चिंता सताती थी. मां ने अपने डर पर काबू करके बेटी का साथ देने की पूरी कोशिश की.
दो साल तक रिंग से बाहर रही
Sports Krazy
2017 और 2018 में नीतू ने विश्व यूथ चैंपियनशिप में गोल्ड जीता. 2018 के एशियन यूथ चैंपियनशिप में भी उन्होंने गोल्ड जीता. नीतू अपने करियर में सफ़लता के मकाम हासिल कर रही थीं कि तभी उन्हें कंधे में चोट लग गई. कंधे को सही आकार देने के लिए लंबा इलाज चला और वो दो साल तक रिंग से दूर रही. इसके बावजूद नीतू का मनोबल नहीं टूटा.
बता दें कि भारत की 7 बेटियों ने महिला वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप्स में गोल्ड मेडल जीता है. मैरी कॉम ने 2002, 2005, 2006, 2008, 2010 और 2018 में, सरिता देवी ने 2006 में, जेनी आर एल ने 2006 में, लेखा केसी ने 2006 में, नीखत ज़रीन ने 2022 में, नीतू घंघस ने 2022 में और स्वीटी बूरा ने 2022 में ये खिताब जीतकर पूरे देश को गर्व करने की वजह दी.